- बांसथान मेले में लग रही भूतों की बोली

- प्रेत बाधा दूर कराने को रामनवमी में जुटते हैं लोग

GORAKHPUR : जैसे-जैसे साइंस तरक्की कर रही है, वैसे-वैसे कई नई खोज हो रही हैं। साथ ही लोगों की परेशानी भी बढ़ती जा रही है। परेशानियां दूर न होने पर लोगों को लगता है कि उनपर या उनकी फैमिली पर कोई बुरा साया है। किसी ने जादू, टोना-टोटका कर दिया है। उनके इसी वहम का फायदा उठाकर सोखा, गुनिया लोगों को ठग रहे हैं। पूजा-पाठ के बहाने सिटी के आसपास चैत्र रामनवमी में लगने वालें मेले में भूत प्रेत भगाने का बाकायदा ठेका तय होता है। गुलरिया एरिया के बांसथान मेले में तो भूत-प्रेत भगाने के नाम पर क्0 हजार से लेकर बड़ी रकम वसूली जा रही है।

तीन सौ साल पुरानी है बांसथान मंदिर की कहानी

क्षेत्र के लोगों का कहना है कि बांसथान मंदिर करीब तीन सौ साल पुराना है। पहले यहां एक घना जंगल था। जंगल किनारे बहने वाले चिलुआताल के किनारे चरवाहे भैंस लेकर जाते थे। वहां एक देवी की पिंडी थी। एक बार गुनई नामक चरवाहे की भैंसे खो गई। वह परेशान होकर ताल में पीने गया तो उसने कहा कि यहां पर देवी होंगी तो उसकी भैंसे मिल जाएंगी। पानी पीकर लौटा तो उसकी भैंसे चरती मिलीं। उसे ये सारी बात हास्यास्पद लगी, उसे लगा कि भैंसे यूं ही भटककर कहीं चल गई होंगी। उसने अपनी लाठी ताल में धंसाकर देवी को चुनौती देते हुए कहा कि यदि देवी में शक्ति होगी तो उसकी लाठी फिर बांस बन जाएगी। जब दूसरे दिन वो वहां गया तो देखा कि लाठी की जगह हरे-भरे बांस लहलहा रहे थे। ये सब देखकर उसकी मौत हो गई। तभी से लोगों ने वहां पर पूजा पाठ शुरू कर दिया। अंग्रेजी हुकूमत में यह पूरा इलाका अंग्रेजों की रियासत का हिस्सा था।

भूत कोई हो, खुलेआम बोली लगाकर करते हैं मुक्त

चैत्र रामनवमी पर हर साल बांसथान के वामंत मंदिर में मेला लगता है। इस मेले में गोरखपुर, महराजगंज, देवरिया, कुशीनगर सहित कई दूर दराज से लोग आते हैं। मेले में एक तरफ जहां दुकानें सजी होती हैं। डांस, झूला, जादू के मनोरंजक प्रोग्राम चलते हैं। वहीं दूसरी तरफ मंदिर के आसपास भूतों के ठेकेदार एक्टिव होते हैं। ये ठेकेदार भूत-प्रेत की बाधाओं को दूर करने के नाम पर बोली लगाकर ठेका लेते हैं। क्0 हजार से लेकर बड़ी रकम तक पीडि़त से वसूलते हैं। सोखा दावा करते हैं कि वे भूतों को बांध देंगे जिससे फ्यूचर में कोई दिक्कत नहीं आएगी।

प्रेतात्मा हो या जादू टोना यहां तो सबका इलाज

बांसथान में रामनवमी से शुरू होकर मेला पूर्णिमा तक चलता है। मेले में पहले दिन भूत-प्रेत की बांधाओं को दूर कराने वाले ज्यादा पहुंचते हैं। दूसरे दिन आम पब्लिक मेला देखने जाती है, लेकिन अलग-अलग जगहों पर भूत-प्रेत भगाने का धंधा चलता रहता है। यहां जुटने वाले सोखा देवताओं को नचाने का दावा करते हैं। वे कभी जमीन में पिंडी बनाकर तो कभी पानी में खप्पर जलाकर उनको दफन कर देते हैं। मेले में मिर्जा सोखा, सूर्यमन, दीनानाथ, राजकुमार, तूफानी सहित कई सोखाओं की दुकान खूब चल रही है।

कौन देवी हो, क्या चाहिए चली जाओ यहां से

बांसथान में भूत बाधा दूर कराने आने वाले लोगों में महिलाओं की तादाद ज्यादा रहती है। किसी के घर में ब्रह्म तो किसी पर चुड़ैल का साया होता है। किसी को पड़ोसी तंग करता है तो किसी के बच्चे की बीमारी ठीक नहीं हो रही है। यहां आने वाले लोगों को भरोसा होता है कि सोखा उनकी समस्या दूर कर देंगे। कपूर जलाकर सोखा पूजा पाठ करते हैं तो महिलाएं थोड़ी देर बाद झूमने लगती है। सोखा कहते है कि कौन देवी हो, क्या चाहिए? जो चाहिए ले लो और यहां से चले जाओ। इस दौरान महिलाओं की आवाज बिल्कुल बदल जाती है। वे अजीब सी आवाज में बात करती है जिसको देखकर आसपास खड़े लोग डर जाते हैं। सोखा के प्रयास के बाद महिलाएं थोड़ी देर बाद खुद ही शांत हो जाती हैं। तब सोखा मुस्कुराकर कहते हैं कि फलां का प्रेत था, हमने बांध दिया।

आसपास के एरिया में भी फैला है सोखाओं का जाल

क्षेत्र के लोग बताते हैं तरकुलहा देवी मंदिर में जहां भूत-प्रेत भगाने का खेल चलता है। वहीं बांसथान में भी बड़े पैमाने पर यह खेल खेला जाता है। यहां आसपास एरिया में सोखाओं का जाल फैला हुआ है। क्षेत्र के दुर्गापुर में अंधेरे कमरे में महिलाओं से मिलने वाले सोखा संतान पैदा होने की गारंटी देते हैं। अहिरौली के पास एक सोखा ने भूत भगाने का सेंटर खोल रखा है। हफ्ते में दो दिन इनके यहां लग्जरी व्हीकल का तांता लगा रहता है। लोकल पब्लिक किसी समस्या के लिए इनके पास नहीं जाती, लेकिन दूर दराज के लोग जरूर पहुंचते हैं।

ठेकेदार-पुलिस की जेब में जाती है मेले की कमाई

बांसथान में भूतों को भगाने का ठेका लिया जाता है। शॉप्स, नौटंकी, ऑर्केस्ट्रा, झूला, जुआ और कच्ची का धंधा खूब चलता है। करीब एक महीने ही पहले शॉप्स का ठेका तय हो जाता है। इसमें पुलिस और प्रशासन के अफसर भी शामिल रहते हैं। मेला ठेकेदार की वसूली का एक पैसा प्रशासन के खाते में जमा नहीं होता है। मेले के लिए जगह देने वाले किसानों को मामूली रकम देने के बाद बाकी कमाई पुलिस और ठेकेदार के जेब में चली जाती है। मेले में ऑर्केस्ट्रा, कच्ची शराब की बिक्री और जुआ खेलने वालों से रोजाना हजारों रुपए वसूले जाते हैं। मेले में दुकान लगाने वालों से मनमानी वसूली होती है। किसी भी दुकान का कोई फिक्स्ड रेट नहीं है। जिससे जितना मन करता है, ठेकेदार के आदमी उससे उतना पैसा वसूल लेते हैं।

इस संबंध में मुझे पहले से कोई जानकारी नहीं थी। इसकी जांच करवाने के बाद कार्रवाई की जाएगी। मेले में किसी भी प्रकार की ठगी, जालसाजी रोकने का निर्देश पुलिस को दिया जाएगा।

अमित किशोर, एसडीएम-ज्वाइंट मजिस्ट्रेट, सदर गोरखपुर

Posted By: Inextlive