pranay.priyambad@inext.co.inPATNA : अभी तक वाल्मीकि नगर राष्ट्रीय उद्यान और भीमबांध के जंगलों में भारी संया में मोर देखे जाते हैं लेकिन बिहार का एक गांव ऐसा भी है जहां घरों की छत पर छप्पर पर पेड़ों पर मोर दिख जाते हैं. यह गांव है पश्चिम चंपारण में. गांव का नाम है -माधोपुर गोविंद. लगभग 60 सालों से यह गांव राष्ट्रीय पक्षी के संरक्षण का गवाह है. यहां के ग्रामीण बिना प्रसिद्धि या लोभ के नुकसान सहकर भी मोरों के संरक्षण में लगे हैं. लेकिन अब यहां मोरों पर खतरा है.

 

2011 में रिसर्च करने का निर्देश 

मई, 2011 में इस गांव में मुयमंत्री नीतीश कुमार गए थे। उन्होंने निर्देश दिया कि यहां के मोरों की वर्तमान स्थिति पर शोध कर रिपोर्ट दें। यह भी कहा था कि यहां मोरों को और बेहतर तरीके से कैसे संरक्षित किया जाए यह भी बताएं। लगभग एक माह बाद ही इंडियन बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क के बिहार राज्य के स्टेट को-ऑर्डिनेटर ने रिपोर्ट सौंप दी।

 

घूमते दिख जाते हैं गांव

रिपोर्ट में बताया कि पूरा गांव मोरों के आकर्षक रंगों से चटख दिखाई पड़ता है और गांव वाले इन अद्भुत नजारे को पल-पल जाते हैं। माधोपुर गोविंद एवं इसके इर्द-गिर्द लगभग 1000 एकड़ के क्षेत्र में करीब 60-70 मोर चरते और प्रजनन करते हैं। इस गांव की दूरी मुजफरपुर से 50 किमी, चकिया से 7 किमी और हरपुरनाग से 3 किमी है। मोर इस गांव में कभी पेड़ों पर, कभी आंगन में, कभी छत पर तो कभी छप्पर पर दिखाई देते हैं। कभी खेतों में काम करती महिलाओं और बच्चों के साथ चलते और मवेशियों के बीच घूमते हैं।

 

सब नुकसान झेल लेते हैं लोग

यहां के बुजुर्ग ग्रामीण मोहन सिंह ने तो अपने घर के पास इन मोरों के पानी पीने के लिए एक छोटा सा तालाब ही खुदवा रखा है जो चारों ओर पेड़ ओर बांस के झुरमुटों से घिरा है।

 

ये सुझाव दिए गए रिपोर्ट में

प्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा चौकसी करवाने की जरूरत है। गांव के लोगों को प्रशिक्षण दिया जाए।

मोर गांव को पर्यावरण मित्र रूपी गाव में विससित किया जाए जहां रासायनिक खाद और कीटनाशकों की जगह केंचुए एवं गोबर की खाद को प्राथमिकता दी जाए।

गांव में सौर ऊर्जा के प्रचलन को बढ़ावा दिया जाए। कम से कम तीन या चार, पांच फुट ऊंचाईï वाले बाड़े बनाने चाहिए जो बांस या अन्य लताओं से बने हों। इन घेरों में झाड़ और सजियों के पौधे उगाने चाहिए और इनके चारों ओर बबूल और बेर जैसे झाड़दार पेड़ लगाने चाहिए।

पेड़ों के काटे जाने पर निगरानी रहनी चाहिए।

तालाबों की जरूरत पूरी की जाए जिनमें बोरिंग और पंप से पानी भरने की व्यवस्था हो।

Posted By: Inextlive