LUCKNOW: साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर के मुलाकात ऑडीटोरियम में चल रहे लखनऊ लिटरेरी फेस्टिवल ख्0क्भ् के दूसरे दिन व्यंगपूर्ण कविताएं पढ़ी गयीं। उनकी कविता का विषय था मेडिकल कॉलेज। 'बुखार, टायफाइड तो वार्डब्याय ही ठीक कर देता है, हमारी उपलब्धि है कोई व्यक्ति उस बीमारी से नहीं मरा जिसके लिए उसे भर्ती कराया गया, यह हमारी उपलब्धि है फिर भी मेडिकल कॉलेज की बुराई और बड़े अस्पतालों की तारीफ' पढ़ी। अनूप श्रीवास्तव ने आंख कितनी छोटी क्यूं न हो उसके देखने की क्षमता उतनी ही होती है इससे आगे की कविता पढ़नी शुरू की। उन्होंने 'घड़ी की टिकटिक अजीब है न रुकती है न रुकने देती है' सुभाष चंद्र ने प्यार पर व्यंग पढ़ा कि किस तरह आज इसकी परिभाषा बदली है।

चिट्ठियां के भाव छू जाते थे दिल को

हिंदी साहित्य की उपेक्षित विधाओं पर परिचर्चा चल रही थी। चिट्ठियों से बात शुरू हुई। रजनी गुप्ता ने कहा कि लोग दिल खोलकर चिटिठ्यां लिखा करते थे और भाव दिल को छू जाते थे। दयानंद पाण्डेय ने कहा कि हिंदी पाठ्यक्रम से गायब होती जा रही है और बात होती है कि हिंदी भाषी बनें। हल्दी घाटी का जिक्र हटाया गया सांप्रदायिकता के नाम पर और खत सिमट गए सोशल साइट्स तक।

बदल गया आज का 'गांव'

बदल गया है आज का गांव। आधार कार्ड हो, बीपीएल कार्ड हो या फिर सब्सिडी की योजना। जब भी इनका लाभ उठाने की बात आती है तो ग्रामीण व्यक्ति कहता है कि बिना जोर-जुगाड़ के काम नहीं बनेगा। यह कहना था कथाकार शिवमूर्ति का। उन्होंने 'कथा साहित्य-नए यथार्थ से' विषय को संबोधित किया। उनका कहना था कि हमने गांव देखा था वह अब नहीं रहा। गांव का यथार्थ बहुत जटिल है या फिर यूं कहें कि रचनाकार की कल्पना पिछड़ गयी है यथार्थ आगे निकल गया है।

Posted By: Inextlive