मिलेनियल्स स्पीक जेनरल इलेक्शन- 2019 का मकसद 18 से 38 साल के वोटर्स के नब्ज को टटोलना है.

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RANCHI : लोकसभा चुनावों का औपचारिक ऐलान होना बाकी है पर तमाम राजनीतिक दलों ने बिगुल फूंक दिया है। एक ओर जहां उनके बीच जुबानी जंग हो रही है तो दूसरी तरफ वोटर्स को लुभाने के लिए वे लोक-लुभावन वादे कर रहे हैं। ऐसे में वोटर्स खासकर युवा क्या चाहते हैं की नब्ज टटोलने के लिए दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के मिलेनियल्स स्पीक जेनरल इलेक्शन- 2019 के सफर का गुरुवार को आगाज हुआ। सिटी के मोरहाबादी स्थित एथलेटिक्स स्टेडियम में हुए इस कार्यक्रम में कलाकारों समेत दर्जनों मिलेनियस ने एजुकेशन और अनइंप्लाईमेंट जैसे कई ज्वलंत मुद्दों पर बेबाक राय रखी।

बेरोजगारी पर अटैक
मिलेनियल्स स्पीक जेनरल इलेक्शन- 2019 का मकसद 18 से 38 साल के वोटर्स के नब्ज को टटोलना है। आखिर इस समय क्या सबसे बड़े मुद्दे हैं और किस तरह की चुनौतियां सामने आ रही है और इसका कैसे समाधान हो, इसपर उनके विचार लेना है। इस सिलसिले में डिस्कशन के दौरान जो मुद्दा उभरकर सामने आया वह सीधे बेरोजगारी का था। यह वह मुद्दा है जो विगत 25 वर्षो से अधिक समय से यहां के युवाओं की परीक्षा ले रहा है। मिलेनियल्स ने साफ-साफ कहा कि चुनाव से आम लोगों की अपेक्षाएं और विभिन्न पार्टियों के द्वारा अब तक भोगी जा चुकी उपेक्षा बर्दाश्त के बाहर हो चुकी हैं। आगामी चुनाव में बेरोजगारी एक ज्वलंत मुद्दा बनकर सभी राजनीतिक पार्टियों की नींद उड़ाने वाली है। यूथ में गुस्सा है। सालों-साल से युवाओं को छला जा रहा है, कभी प्रशिक्षण देकर स्किल बनाने का वादा कर उपयुक्त रोजगार न प्रदान करके तो कभी रोजगार तलाश रहे युवाओं को प्रलोभनों के मझधार में फंसा कर छोड़ देने से। लेकिन, इस चुनाव में ऐसे प्रलोभन देने वाले नेताओं को सबक सिखाया जाएगा।

उच्च शिक्षा लेकर भी नौकरी नहीं
मिलेनियल्स ने कहा कि देश में उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं की तादाद साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। लेकिन, उन्हें अपने पढ़ाई के अनुकूल नौकरी नहीं मिल रही है। वे पढ़े-लिखे बेरोजगारों की श्रेणी में आते जा रहा हैं, लेकिन ज्यादातर राजनीतिक दलों को इससे बहुत ज्यादा मतलब नहीं है। ऐसे में इनकी टीस बढ़ती ही जा रही है। नौकरी की तड़प से वे जितने परेशान हैं उतने ही उनके परिजन भी। ऐसे में इस चुनाव में कहीं न कहीं मिलेनियल्स अहम रोल निभाएंगे, ताकि स्वार्थी नेताओं को सबक सिखाया जा सके।

महंगाई ने मार डाला
बढ़ती महंगाई के बीच परिवार की जरुरतों से तालमेल बना पाने में भी मीडियम क्लास फैमिली को खासी परेशानियों को सामना करना पड़ रहा है। मिलेनियल्स ने कहा कि पेट्रोल से लेकर गैस सिलेंडर तक के दाम में इजाफा रुकने का नाम नहीं ले रहा है। इन सबके बीच आगामी चुनाव में तमाम पार्टियां फिर से अपने लुभावने वादों के साथ वोटर्स को गोलबंद करने की जुगात भिड़ाने में जुट गई है। लेकिन, युवा वोटर्स इस बार इनके किसी भी झांसे में नहीं आएंगे। इस बार अगर बेरोजगारी दूर करने व महंगाई को कंट्रोल करने का ठोस प्लान राजनीतिक दल नहीं देंगे तो मजबूरन ईवीएम में नोटा का बटन दबाना पड़ेगा।

कड़क बात
आज के डेट में वोटर आईडी ज्यादातर यूथ के लिए महज पहचान पत्र बनकर रह गया है। यूथ वोट ही नहीं डाल रहा इसे सीधे तौर पर हाल के चुनाव में हुए मतदान के प्रतिशत में देखा जा सकता है। बुजुर्गो की लोकतंत्र में आस्था है और वह लोग तो वोट दे रहे हैं, लेकिन यूथ का सरकारी नौकरी की ही तरह चुनाव और सरकार गठन से भी विश्वास उठ चुका है। सामान्य कोटि के स्टूडेंट्स के साथ खिलवाड़ हो रहा है। जबतक क्षमता और टैंलेंट दरकिनार रहेंगे तब तक यूथ भी बगावत के मूड में ही दिखाई देगा।
- प्रीति रागिनी

मेरी बात
मुद्दे बनते- बिगड़ते रहते हैं, लेकिन इन सबके बीच यूवाओं को चुनाव में बढ़चढ़कर भागीदारी निभानी चाहिए। यह लोकतंत्र का आधार है, हमारा अधिकार है और वह मौका है जब हम अपने विवेक से सही निर्णय लेकर उसके इंप्लीमेंट के लिए प्रयास कर सकते हैं। खुद को किनारे करने से सिस्टम नहीं बदलेगा अगर सिस्टम से शिकायतें हैं और सिस्टम बदलना है तो सिस्टम का पार्ट बनकर इतिहास रचना होगा।
- प्रणव कुमार बब्बू, संरक्षक, झा। आर्टिस्ट एसो।

शिक्षा और रोजगार यह दो ऐसे मुद्दे हैं जो आजादी के बाद से हर सरकार पर हावी रहे हैं, लेकिन किसी सरकार की योजना धरातल पर नहीं उतर सकी हैं। यहां दिखावा ज्यादा है जबकि काम कम।
- राजेश साहू

आखिर रोजगार कैले मिले जब बाहरी कंपनियां कहती हैं कि आपके भीतर टैलेंट नहीं हैं, आप योग्य नहीं है जबकि अपना कॉलेज और अपनी यूनिवर्सिटी ने टॉपर, फ‌र्स्ट क्लास समेत न जाने कैसी कैसी उपाधियां दे रखी हैं। पूरा सिस्टम लचर है बदलाव जरुरी है।
- बादल सिंह

रोजगार देने की लिस्ट तो बनती है लेकिन कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने उस रोजगार के लिए फार्म ही नहीं भरा लेकिन उनका नाम भी नौकरी पाने वालों में होता है।
- सत्यम कुमार प्रिंस

युवाओं में टैलेंट की कोई कमी नहीं है। लेकिन मौका नहीं मिलने की वजह से यूथ रास्ते से भटक जा रहे हैं। लोग प्राइवेट नौकरियों की तरफ अ्रग्रसर हो चुके हैं। इसे निगेटिव नहीं लेना चाहिए केवल सरकार से अपेक्षा करने के बजाय नए स्टार्ट अप पर ध्यान लगाना चाहिए।
- आशीष

केवल सरकार पर दोषारोपण कर हम अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते हैं। वक्त बदल गया है अब 18 साल का बच्चा अपने पैरेंट्स से कहता है कि किसको वोट देना है, कोई ट्रेनिंग कोई दवाब काम नहीं आता है।
- वसीम

यूथ अब किसी से इन्फ्लूएंस नहीं होते हैं। वह समझदार हैं और सही गलत का फैसला ले सकते हैं। बेबसी तो देखिए कि चपरासी के पोस्ट के लिए इंजीनियर आवेदन कर रहे हैं, यह दुखद है।
- शाहिद रहमान

पहले मैनुअल काम होता था इसलिए लोगों के लिए रोजगार के कई मौके हैं। लेकिन, अब ज्यादातर काम कंप्युटर से हो रहे हैं इसलिए मौके भी घटते जा रहे हैं। लेकिन तकनीक का विकास रोका नहीं जा सकता जरुरत है स्वयं को तेजी से विकसित करने का।
- रंजन साहू

एक तो वैकेंसी नहीं है उसपर जो थोड़ी बुहत नौकरी की उम्मीदें जगती हैं वह पैरवी, पहुंच, रसूख के आगे दम तोड़ देती हैं। नतीजा जेपीएससी की परीक्षा के रिजल्ट के तौर पर सामने आता है। बहाने नहीं चलेंगे काम तो करना होगा।
- अहमद शाले फारुकी

Posted By: Inextlive