सफल तो हर इंसान होना चाहता है लेकिन इस सफलता को पाने का मंत्र सबके पास नहीं होता। जो खुद को समझते हैं विचार करते हैं और सही समय पर सही डिसीजन लेते हैं वही सफल हो पाते हैं। कुछ ऐसा ही मानना है एजुकेशनिस्ट डॉ। दीपक मधोक का। फर्श से अर्श तक का सफर तय करने वाले सनबीम ग्रुप ऑफ एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन्स के चेयरमैन डॉ। दीपक मधोक की कहानी अब दूसरों को रोशनी दिखाने का काम कर रही है।

डॉ. दीपक मधोक मानते हैं कि जिनकी सोंच सकारात्मक होती है उन्हें कभी पीछे मुडक़र नहीं देखना पड़ता। शायद यही कारण है कि उन्होंने जब अपनी इसी सोच के साथ मंजिल की ओर कदम बढ़ाए तो लक्ष्य नजदीक नजर आने लगा। 23 मार्च 1955 को बीएचयू फारसी डिपार्टमेंट के हेड डॉ. अमृतलाल इशरत मधोक के घर पैदा हुए दीपक बचपन से ही होनहार रहे। समाज में भीड़ से अलग अपना मुकाम बनाने का लक्षण उनमें बचपन में ही दिखायी देने लगा था। यही कारण है कि उनकी फैमिली भी मानती थी कि दीपक अपने नाम की तरह खानदान का नाम रोशन करेंगे। ऐसा दिखने भी लगा। दीपक मधोक ने 21 साल की कम उम्र में ही प्रतिष्ठित सिविल सर्विस एग्जाम क्रैक कर लिया था। कुछ दिन नौकरी करने के बाद उन्हें अहसास हुआ कि ये शायद उनकी मंजिल नहीं है। जिस नौकरी को पाना लोगों का स्वप्न होता है, उसे छोडऩे का डिसीजन भी आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने ऐसा ही डिसीजन लिया। उनकी सफलता में पैरेंट्स के अलावा उनकी पत्नी भारती का विशेष योगदान रहा।

डॉ. दीपक मधोक, चेयरमैन (सनबीम ग्रुप ऑफ एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन्स) - जिंदगी के अहम पड़ाव

- प्रारम्भिक शिक्षा देहरादून व शिमला से हासिल करने वाले दीपक ने बीएचयू से बीएससी और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बायोकेमेस्ट्री में पीजी किया है।
-
फर्स्ट अटेम्प्ट में ही सन् 1976 में पीसीएस एग्जाम पास कर लिया।
-
सन् 1982 में आईपीएस तथा 83 में आईएफएस व आईआरएस में सलेक्शन हुआ.
-
नौकरी छोड़ी और सन् 1992 में 1400 बच्चों के साथ स्कूल शुरू किया।
-
वर्तमान समय में डॉ. दीपक के सनबीम ग्रुप के स्कूल्स में लगभग 20,000 स्टूडेंट्स पढ़ाई कर रहे हैं।
-
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रेरित होकर गंगा किनारे के अस्सी घाट की सफाई में अहम भूमिका निभाई है।

अचीवमेंट्स
-
राजीव गांधी शिक्षा शिरोमणि
- इंडिया एचीवर्स अवार्ड
- इंटरनेशनल एचीवर्स अवार्ड
- संगीत व खेल साथ-साथ

1400 बच्चों से 20 हजार तक का सफर
अब बारी थी सबसे बड़ा डिसीजन लेने की। बनारस जैसे शहर में इंग्लिश स्कूल चलाने जैसा फैसला न सिर्फ कठिन था, बल्कि चैलेंजिंग भी बहुत था। डॉ. दीपक मधोक की नजर में सही डिसीजन लेने का यही सही समय था। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने निर्णय को सही साबित करके दिखा दिया है। सन् 1992 में 1400 बच्चों के साथ शुरू हुआ उनका इस स्कूल का चुनौतियों भरा सफर आज विशालकाय हो गया है। वर्तमान समय में सनबीम ग्रुप के स्कूल्स में लगभग 20,000 स्टूडेंट्स पढ़ाई कर रहे हैं। इस ग्रुप के 19 स्कूल्स सिटी और पूर्वांचल के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में संचालित हो रहे हैं। कई जल्द ही खुलने वाले हैं। इसमें अगले साल तक लगभग सभी स्कूल्स में वीमेंस डिग्री कॉलेज की भी शुरुआत हो जाएगी। यहां के हॉस्टल में भी 2500 से अधिक बच्चे रहकर पढ़ाई कर रहे हैं।

क्वालिटी एजुकेशन का बना सेंटर
डॉ. दीपक मधोक का एजुकेशनल ग्रुप आज केवल एक स्कूल भर नहीं है। यहां बच्चों को न सिर्फ प्रोफेशनल एजुकेशन और डिग्री दी जाती है, बल्कि उन्हें सफल इंसान बनने का रास्ता भी दिखाया जाता है। क्योंकि डॉक्टर दीपक मानते हैं कि डिग्री तो कहीं भी मिल सकती है, लेकिन सफल होने का मंत्र हर जगह नहीं मिल सकता। सनबीम स्कूल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां माडर्न एजुकेशन के साथ बच्चों को संस्कार भी सिखाए जाते हैं।

ग्रामीण बच्चों को दे रहे फ्री शिक्षा
कई बार लोग काबिल तो होते हैं लेकिन कुछ अभाव में सफल होने से रह जाते हैं। ऐसे ही अभाव वाले लोगों की मदद के लिए भी डाक्टर दीपक आगे आते रहे हैं। सनबीम ग्रुप ने ग्रामीण इलाके के बच्चों को भी शिक्षित करने का बीड़ा उठा रखा है। गु्रप का ग्रामीण स्कूल करसड़ा में संचालित होता है। उसमें 800 बच्चे फ्री में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। बच्चों को यूनिफार्म व बुक्स भी स्कूल की ओर से प्रोवाइड कराई जाती हैं। यही नहीं अर्बन एरियाज के गरीब बच्चों के लिए भी स्कूल्स खोले गए हैं। नई रोशनी नाम से संचालित ये स्कूल सनबीम लहरतारा और वरुणा में संचालित होते हैं। यहां 200 से अधिक बच्चों को फ्री एजुकेशन दी जा रही हैं।

डॉ. दीपक को म्यूजिक और गेम में भी बराबर का इंटे्रस्ट है। स्कूल में पढ़ाई करने के दौरान ही क्रिकेट और बैडमिंटन को साथी बना चुके दीपक आज तक उसके दीवाने हैं। यूनिवर्सिटी की टीम में वो अच्छे बॉलर के तौर पर शामिल किए जाते रहे। आज भी मौका मिलते ही वो क्रिकेट व बैडमिंटन पर हाथ आजमाने से नहीं चूकते हैं। दुनिया की सैर करना उन्हें खूब भाता है। छुट्टियों में वो देश ही नहीं दुनिया की अच्छी जगहों पर घूमते रहते हैं।

DAINIK JAGRAN I NEXT CONNECT MARKETING INITIATIVE

Posted By: Chandramohan Mishra