क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ :करमटोली स्थित रांची प्रेस क्लब के कैंपस में मिलेनियल्स स्पीक के तहत राजनी-टी का आयोजन किया गया. इस मौके पर युवाओं ने आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपने मुद्दों पर बातचीत की. अपनी राय रखने वालों ने अलग-अलग एजेंडे पर सरकार और विपक्षी दलों से अपना रुख साफ करने को कहा. महिलाओं ने सेफ्टी का इश्यू रेज किया तो पुरुष युवाओं का कन्सर्न बेरोजगारी को लेकर साफ दिखा. वैसे सभी इस बात पर एकमत थे कि महिलाओं की समस्याओं पर सरकारें केवल बयान ही देती आई हैं. इससे आगे कुछ होता नजर नहीं आता. बात मुद्दों की हो, तो युवा सबसे ज्यादा मुखर नजर आते हैं. इस बार के लोकसभा चुनाव को लेकर दैनिक जागरण आईनेक्स्ट, रेडियो सिटी और सतमोला की पहल पर आयोजित चर्चा में युवाओं ने व्यवस्था पर कई सवाल खड़े किए. चर्चा की शुरुआत करते हुए पिया बर्मन ने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा एक अहम मुद्दा है, जिसे लेकर चुनावी सभाओं में ही नेताओं से पूछना चाहिए कि आखिर उनके पास क्या प्लान है, जिसके तहत वे एक सुरक्षित माहौल खड़ा कर पाएंगे. वहीं पंकज कुमार ने कहा कि राज्य की ही नहीं, बल्कि देश की बड़ी समस्या सेफ्टी है. लेकिन, हमें वुमेन सेफ्टी जैसे व‌र्ड्स यूज नहीं करने चाहिए. इससे ऐसा लगता है कि महिलाएं नेचुरली अनसेफ हैं. हालांकि, उनसे कई अन्य युवाओं ने असहमति भी जताई और कहा कि पॉलीटिकल लीडरशिप में सेफ्टी को लेकर संजीदगी नहीं होगी तो कोई भी सुरक्षित कैसे होगा. पुलिस पर सबकुछ डाल कर हम शब्दों पर चर्चा करेंगे तो इसका हल नहीं निकलेगा. वुमेन सेफ्टी एक इश्यू तो है ही, जिस पर खुलकर बात होनी चाहिए. ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि किसी भी वारदात में विक्टिम ज्यादातर महिलाएं ही होती हैं. वहीं कुछ युवाओं का कहना था कि देश में रेप केसेज के आंकड़े गंभीर सवाल खड़े करते हैं. महिलाओं की स्थिति न तो शहर में बेहतर है और न ही गांवों में. इसे लेकर बातचीत करना जरूरी है, जिसकी पहल पॉलीटिकल पार्टीज को ही करनी होगी. युवाओं ने कहा कि आम लोगों के लिए सुरक्षा और रोजगार का सवाल सबसे अहम है. इन्हीं मुद्दों पर डिस्कशन हो तो एक बेहतर पार्टी को सत्ता में लाया जा सकता है.

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कड़क मुद्दा

इंडिया में एक बड़ी समस्या यह है कि लोग हर मामले में लड़कियों को ही दोष देने लगते हैं. राजनेता भी कई बार ऐसे बयान दे चुके हैं, जिससे किसी मामले में विक्टिम लड़की या महिला को ही कठघरे में खड़ा किया जाता हो. ऐसे नेताओं और उनकी पार्टी से बचकर ही रहना चाहिए. मेरी नजर में वुमेन सेफ्टी के मामले पर कुछ बड़ा फैसला लेना जरूरी है. जैसे, स्कूलों में सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग जरूर की जानी चाहिए और इसके मा‌र्क्स बकायदा बोर्ड एग्जाम में जुड़ने चाहिए. स्कूलों में ही स्टूडेंट्स को सेल्फ डिफेंस के लिए तैयार करना चाहिए. सरकार की ओर से ट्रेनर नियुक्त किए जाएं और फ्री ऑफ कॉस्ट ट्रेनिंग दी जानी चाहिए. इस ओर किसी पार्टी का न तो ध्यान जाता है और न ही इस तरह की डिमांड जनता करती है. यही वजह है कि आज पॉलीटिकल डिस्कशन से आम आदमी गायब है. उसके मुद्दे कहीं दूर छूट चुके हैं और हमें भ्रमित करने वाले गैर जरूरी बातों को सामने लाकर वोट की फसल काटने की तैयारी हो चुकी है.

पिया बर्मन

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मेरी बात

एक नागरिक होने के नाते हमारा क‌र्त्तव्य बनता है कि हम पहले देश के प्रति सोचें. समस्या यह है कि हम सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं. नेताओं ने हमारी मानसिकता को ही आत्मकेंद्रित कर दिया है. यह पूरी तरह से गलत है. आज एजुकेशन सिस्टम में ही ऐसी समस्या खड़ी कर दी गई है कि हम चाह कर भी अपने बारे में ही सोचते हैं, न कि दूसरों के बारे में. अगर हर नागरिक अपने आसपास की एक महिला की सुरक्षा की जिम्मेवारी ले ले, कोई अनसेफ नहीं रहेगा. ठीक उसी प्रकार एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं. अहम यह है कि हमारे भीतर इस प्रकार की मानसिकता को डेवलप करने वाला कौन है. चूंकि, सत्ता में बैठे नेताओं को किसी प्रकार चुनाव जीत लेना है, इसलिए बौद्धिक स्तर को ऊंचा उठाने वाली बातें होती ही नहीं हैं. फालतू के बहस में लोगों को भ्रमित किया जाता है. यही वजह है कि हम आज बौद्धिक रूप से विकसित नहीं हो पाए हैं. मेरा वोट उसी पार्टी को, जो हमें अपनी जिम्मेवारियों को निभाने लायक माहौल तैयार करे.

पंकज कुमार

सतमोला खाओ, कुछ भी पचाओ

चर्चा के दौरान दिलचस्प आंकड़े भी प्रस्तुत किए गए, जिसे युवाओं ने माना कि यह पचाने लायक नहीं है. अंशिका ने कहा कि यह एक कड़वी सच्चाई है कि हमारा देश रेप केसेज में पाकिस्तान से भी आगे है. चुनाव में वायदे बड़े-बड़े किए जाते हैं लेकिन जब असलियत में महिलाओं को अधिकार देने की बात आती है तो सभी एक-दूसरे का मुंह ताकने लग जाते हैं. चर्चा के दौरान युवाओं ने कहा कि वुमेन रिजर्वेशन बिल को लेकर एक अर्से से बात हो रही है. एक सदन से दूसरे सदन घूमकर इस बिल का हश्र यह हुआ है कि अब इसे दूसरी सरकार भी पास करा ले, तो गनीमत है. युवाओं ने माना कि पॉलीटिकल विल की कमी के कारण ही महिलाओं को आरक्षण देने वाला कानून प्रभावी नहीं हो सका है. यह हजम होने वाली बात ही नहीं कि नेता चाह लें और कोई कानून संसद से पास न हो पाए.

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क्या कहते हैं मिलेनियल्स

हमें यह जरूर देखना चाहिए कि हमारे असल मुद्दे क्या हैं. अगर हम वुमेन सेफ्टी पर बात करते हैं तो मेरा मानना है कि इस मामले में कोई पार्टी ईमानदार नहीं है. इस बार वोट उसी को देंगे तो इस मुद्दे को जोरदार ढंग से उठाए.

अंशिका त्रिपाठी

संसद में नेता खुद को महिलाओं का सबसे बड़ा हितैषी बताते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि हर दल केवल महिलाओं का वोट चाहता है, उन्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त करने की ललक किसी में नहीं दिखती.

राजीव रंजन

बेरोजगारी और वुमेन सेफ्टी पर काम तो हुआ है, लेकिन अब भी बहुत कुछ होना बाकी है. वोटर्स को ईमानदार होना होगा, ताकि जिन्हें चुना जाए वे ईमानदारी के साथ पब्लिक इश्यूज पर काम करे, न कि पर्सनल इश्यूज में खो जाए.

डॉ प्रणव कुमार बब्बू

रोजगार का मुद्दा इस बार चुनाव में अहम होगा. इस समय देश में मिलेनियल्स की आबादी सबसे ज्यादा है और वही रोजगार को लेकर सबसे ज्यादा परेशान हैं. इस मुद्दे को एक मुकाम तक पहुंचाने वाली पार्टी को ही वोट देंगे.

राजेश साहू

गांव की औरतों पर भी ध्यान देना चाहिए. उनकी स्थिति आज भी वैसी ही है, जैसी चार-पांच दशक पहले थी. एक माहौल तो तैयार करना ही होगा, जिससे वुमेन के भीतर सुरक्षा का भाव पैदा हो. ऐसी ही पार्टी को मेरा समर्थन होगा.

पंकज

देश में चुनावी मुद्दे बिल्कुल अलग होते हैं और चुनाव के बाद के मुद्दे अलग. इस बार भी वैसा ही देखने को मिल रहा है. जनता भी भावनात्मक रूप से वोटिंग करती है. मैं उसी पार्टी को वोट दूंगा, जो तथ्यों के साथ बात करे.

शाहिद रहमान

चुनाव में मुद्दा भले ही सेफ्टी या रोजगार का हो, चुनाव के बाद इस पर कोई काम होता नजर नहीं आता. इसलिए यह देखना जरूरी है कि किस पार्टी के पास इन इश्यूज को लेकर बड़ा और कंक्रीट प्लान है. इसी आधार पर वोटिंग होगी.

चार्ली

Posted By: Prabhat Gopal Jha