-इविवि में रात के अंधेरे में रद्दी बेचने के मामले में हुआ बड़ा खेल

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PRAYAGRAJ: इविवि के पूर्व परीक्षा नियंत्रक प्रो. एचएस उपाध्याय के कार्यकाल में बड़े पैमाने पर सरकारी राजस्व पर डाका डालने का काम किया गया है. कुछ समय पूर्व उनके हटने के बाद एक-एक करके सभी मामले सामने आ रहे हैं. इससे प्रो. उपाध्याय पर जांच का फंदा कसता जा रहा है. नया मामला परीक्षा विभाग में रद्दी के पैसे में बंदरबांट का है. बता दें कि विवि की कार्य परिषद ने पूर्व परीक्षा नियंत्रक प्रो. एचएस उपाध्याय के खिलाफ सख्ती से जांच का प्रस्ताव पास किया है.

2011 में सवा लाख ही मिला

परीक्षा नियंत्रक कार्यालय में पिछले कुछ सालों में रद्दी बेचने में कई वित्तीय अनियमितताएं बरती गई हैं. विवि द्वारा हर वर्ष वार्षिक परीक्षा ली जाती है. कुछ समय के बाद हर शैक्षणिक सत्र की कॉपी रद्दी में नीलाम की जाती है. विवि ने इस साल जब ऐसी कॉपियों को नीलाम किया तो विवि को राजस्व के रूप में 12,09,640 रुपए की आय हुई. इसमें 9,57,790 रुपए उत्तर पुस्तिकाओं की नीलामी से और 2,51,850 रुपए बुकलेट की नीलामी से मिला है. ये जानकारी विवि प्रशासन को सम्पत्ति अधिकारी राजीव मिश्रा द्वारा प्रदान की गई है. जबकि इससे पहले विवि को पूर्व के वर्षो में तीन लाख से अधिकतम छह लाख रुपए तक की आय ही प्राप्त हो सकी. मई 2011 में 108 कुंतल 35 किलोग्राम रद्दी से केवल 1,16,476.25 रुपए ही प्राप्त हो सके. परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या हर साल लगभग समान रहती है. यह प्रकरण बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितता की ओर इशारा करता है. बताया गया कि पहले जो रद्दी बेची जाती थी उसकी तौल रात के अंधेरे में होती थी. वहीं इस बार दिन के उजाले में और सबके सामने उस रद्दी की तौल हुई है.

इतना है अंतर

सत्र 2018-19

12,09,640 रुपए की विवि को राजस्व के रूप में कुल आय.

मई 2011 में

1,16,476.25 रुपए की कमाई हो सकी थी विवि प्रशासन को

छात्रों को कर्मचारी बना लिया काम

यही नहीं पूर्व परीक्षा नियंत्रक ने अपने कार्यकाल के दौरान 22 लोगों को दैनिक वेतन भत्ते पर रखा. आरोप है कि इसमें से दो कर्मचारी नवीन मिश्रा और रामजी चौरसिया विवि में एलएलबी के छात्र थे. ऐसे में सवाल है कि अध्ययनरत छात्र परीक्षा विभाग जैसे अति गोपनीय कार्यालय में कैसे कार्य कर सकता है? एक अन्य कर्मचारी पवन चौरसिया का प्रवेश विवि के तत्कालीन रजिस्ट्रार ने 08 जून 2016 को बैन किया था. लेकिन विवि में पवन चौरसिया की न सिर्फ एंट्री होती रही, बल्कि वह परीक्षा नियंत्रक कार्यालय में भी कार्यरत रहा. पवन चौरसिया को 31 जुलाई 2018 तक उसके कार्य का भुगतान किया गया है.

वर्जन

विगत कई वषरें से नीलामी बिना किसी निर्धारित मानक प्रक्रिया के होती रही. फलस्वरूप विवि को प्राप्त होने वाले राजस्व की भारी क्षति हो रही थी. इस बार नीलामी में परिवर्तन कर प्रक्रिया को पारदर्शी, नियम सम्मत एवं सरल बनाया गया है.

डॉ. चित्तरंजन कुमार, पीआरओ एयू

Posted By: Vijay Pandey