DEHRADUN : पौराणिक गाथाओं व कथाओं में कुश्ती-दंगल का जिक्र सुनने को मिलता है. उत्तराखंड में भी कभी द्धकुश्ती दंगल के लिए बकायदा कभी अखाड़े सजा करते थे. लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध में दंगल का यह खेल मानो विलुप्ति के कगार पर पहुंच गया हो. खैर संडे का दिन उत्तराखंड में कुश्ती दंगल के लिए बेहद ही ऐतिहासिक दिन कहा जाएगा. जिसका गवाह बना देहरादून का बड़ोवाला क्षेत्र. जहां राज्य में पहली मर्तबा महिला पहलवानी देखने को मिली. हालांकि इस दंगल में उतरने वाली महिलाएं उत्तराखंड की न होकर दिल्ली की नीलम व हरियाणा की तरसेम थीं लेकिन जैसे ही दोनों महिला पहलवान दंगल के लिए उतरी वैसे ही बहुप्रतिक्षित इस दांव पेंच के लिए यहां मौजूद भारी भीड़ ने तालियों के साथ दोनों का इस्तकबाल किया. यहीं नहीं इस दौरान ये दोनों महिला पहलवान राज्य की उभरती महिला पहलवानों को भी इंसपायर कर गई.


नीलम व तरसेम का मुकाबला


उत्तराखंड में आमतौर पर पुरूष दंगल ही देखने को मिलते हैं। राज्य गठन के बाद शायद अब तक राज्य के किसी भी हिस्से में महिला पहलवानों ने दंगल में भाग्य आजमाने की कोशिश की हो। लेकिन संडे को जब बड़ोवाला स्थित भारतीय अटल विराट कुश्ती दंगल में दिल्ली की नीलम और हरियाणा की तरसेम कौर महिला पहलवानों ने दंगल में अपने दांव पेंच आजमाए तो यह अपने आप में राज्य के लिए यह दिन ऐतिहासिक बन गया। दिल्ली व हरियाणा से दून पहुंची ये दोनों महिला पहलवान कई नेशनल चैंपियनशिप में बकायदा दर्जन भर मेडल जीत चुकी है। इस काम्पिटीशन में इन दोनों पहलवानों का इंतजार किया जा रहा था। वहीं देखने को मिला, दोनों महिला पहलवानों ने न केवल शानदार खेल का परिचय दिया। बल्कि महिलाएं भी दंगल में दो-दो हाथ आजमा सकते हैं, राज्य की महिलाओं को भी इंसपायर कर गए। करीब 10 मिनट तक कांटे की टक्कर से चले इन महिला पहलवानों के दंगल में जीत का सेहरा दिल्ली की नीलम के सिर बंधा। जीत-हार के बाद दोनों महिला पहलवानों को कैश अवार्ड देकर सम्मानित किया गया।3 साल में 7 नेशनल मेडल

दिल्ली की 18 वर्षीय नीलम पहलवान का करियर अपने आप में काबिलेगौर रहा है। नीलम ने महज 3 साल पहले दंगल की पारी खेलने की शुरुआत की। फिर नीलम ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। यही वजह रही कि आज नीलम की झोली में सात नेशनल मेडल हैं। जिनमें 2 गोल्ड मेडल भी शामिल हैं। चार साल पहले 2010 में शौकिया तौर पर कुश्ती की शुरुवात करने वाली नीलम को शायद इस बात का अंदाजा नहीं था कि यही खेल एक दिन उनकी लाइफ को बुलंदियों तक पहुंचा दे। नीलम का हुनर ही था कि कॅरियर के पहले साल में ही नीलम ने स्कूल नेशनल गेम्स में कुश्ती से गोल्ड मेडल की शुरुआत की।

पिता का है राज मिस्त्री का काम


नीलम के पापा राज मिस्त्री का काम करते हैं और मम्मी-पापा के अलावा नीलम की सात बहने हैं। कड़ी मेहनत के बीच नीलम ने जो मुकाम हासिल किया है, उसमें कई बाधाएं भी उनके राह में रोड़ा भी नहीं बन पाई। पहलवानी के लिए नीलम के सामने परोपर डाइट मिलना तो दूर परिवार की आजीविका भी चल पाना चुनौती भरा हो जाता है। नीलम दिल्ली के संजय अखाड़ा में गुरु प्रेम नाथ से अब भी कुश्ती के दांव सीखा करती है। परिवार की माली हालत के बावजूद नीलम ने दिल्ली के लिए 7 नेशनल मेडल जीते, लेकिन नीलम को चिंता इस बात की है कि वहां की सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं हो पाई। फिर भी नीलम कहती है कि वह अपने मिशन में कामयाब होकर रहेंगी और वह ओलंपिक में मेडल जीतकर देश व सूबे का नाम रोशन करेंगी। योगेश्वर दत्त के गांव की तरसेममूलरूप से हरियाणा के ओलंपिक मेडलिस्ट पहलवान योगेश्वर दत्त के गांव की तरसेम कौर ने गांव के उसी अखाड़े से पहलवानी के गुर सीखें हैं, जहां कभी योगेश्वर दत्त दांव-पेंच लड़ाते थे। तरसेम की प्रारंभिक पाठशाला के गुरु गांव में बलराम पहलवान हुआ करते थे। यहां तक पहुंचने के बाद अब वह योगेश्वर पहलवान की राह पर बड़ा पहलवान बनना चाहती है। यही वजह है कि अब वह दिल्ली स्थित आजादपुर गुड़मंडी में रहती है। जहां वह बड्डल अखाड़े में अपने नए गुरु विक्रम कुमार से कुश्ती की कलाबाजियां तराशती हैं। 7 बहनें और 2 भाईपरिवार में 7 बहन और 2 भाईयों के बीच तरसेम पांचवे नंबर की हैं। तरसेम के पिता पीडब्ल्यूडी वाटर सप्लाई से रिटायर्ड हो चुके हैं। पिता के रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली पेंशन से ही परिवार का भरण-पोषण हो पाता है। लेकिन तरसेम के हौसले को उसके परिवार का पूरा सपोर्ट रहता है।
ओलंपिक में गोल्ड जीतने की तमन्ना18 साल की तरसेम ने का सपना है कि वह अपने गढ़ की परम्मपरा के आगे बढ़ाते हुए देश के लिए ओलंपिक में मेडल जीते। तरसेम ने हरियाणा में कुश्ती जरूर सीखी है, लेकिन वह खेलती दिल्ली के लिए है। दिल्ली के लिए वर्ष 2010 में स्कूल नेशनल में गोल्ड मेडल, 2013 में सब-जूनियर नेशनल में सिल्वर मेडल, सीनियर नेशनल चैंपियनशिप में फोर्थ प्लेस हासिल करना तरसेम की उपलब्धि रही है। लेकिन तरसेम की आपबीती यह है कि न हरियाणा और न ही दिल्ली सरकार की तरफ से उनकी महिला पहलवानी की कोई कद्र आंकी गई.  फिलहाल, तरसेम इस साल गोवा में होने वाली महिला जूनियर नेशनल पहलवानी चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने की तैयारी कर रही है। बादाम पीसती हैं ओखली मेंअपनी पहलवानी की डाइट के लिए तरसेम दाल-सब्जी, रोटी आदि सामान्य डाइट के अलावा हर सुबह ओखली में बादाम पीस कर उसका घोल बनाकर पीती हैं। इसके अलावा हर दिन 2 लीटर दूध पीना उनकी पहलवानी का राज है। मुकाबले में कोई आए तो डर नहीं
तरसेम की पहलवानी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह पुरुष पहलवानों से मुकाबले के लिए भी तैयार रहती हैं। बकौल तरसेम अखाड़े में मिलने वाले चैलेंज को स्वीकार करते हुए घबराने का नाम नहीं लेती। इस चैलेंज में चाहे वह महिला पहलवान हो या पुरुष।

Posted By: Inextlive