अपने छतरीनुमा गुंबद के कारण छतरमंजिल के नाम से मशहूर यह इमारत European और Mughal architecture के fusion का नायाब नमूना है. कई दिनों पहले ही इसमें दरार पडऩे की सूचना पुरातत्व विभाग को दी गई थी और मंगलवार को इसका एक हिस्सा ढग गया.


अपने छतरीनुमा गुंबद के कारण छतरमंजिल के नाम से मशहूर यह इमारत European और Mughal architecture के fusion का नायाब नमूना है। कई दिनों पहले ही इसमें दरार पडऩे की सूचना पुरातत्व विभाग को दी गई थी और मंगलवार को इसका एक हिस्सा ढग गया। इसके साथ ही खड़ा हो गया एक बड़ा सवाल कि हम अपनी धरोहरों को बचाने के लिए कितने serious हैं
नहीं ली कोई सुध
Building में Building की सूचना 20 दिन पहले ही archaeology department को दी गई थी पर किसी न नहीं दिया ध्यान
सीडीआरआई के साइंटिस्ट्स की जान खतरे में है। खास बात यह कि जब 20 दिन पहले बिल्डिंग में दरार का पता चल गया था तो साइंटिस्ट्स को वहां काम करने की परमीशन कैसे दी गई? यदि कोई अनहोनी होती तो यह देश की मेधा का बहुत बड़ा नुकसान हो सकता था।
लगा कि भूकंप आ गया
दिन के लगभग पौने 12 बजे थे। सीडीआरआई के सीनियर साइंटिस्ट्स लैब में अपनी रिसर्च में बिजी थे। अचानक बिल्डिंग हिलने लगी। सभी डर गए। लगा भूकंप आ रहा है, सभी बाहर की ओर भागे। बाहर आंखों के सामने धूल ही धूल नजर आ रही है। यह तो सिर्फ एक छज्जा गिरने की बात थी लेकिन यदि बिल्डिंग के अंदर कोई हादसा होता तो देश के बहुत से साइंटिस्ट्स की जान खतरे में पड़ सकती थी। छज्जा गिरने पर सभी साइंटिस्ट फील्ड में एक दूसरे से चर्चा करते नजर आए। दिन भर सभी की आंखों में खौफ था और एक दूसरे को जानकारी दे रहे थे।
20 दिन पहले ही किया था आगाह
सीडीआरआई के पीआरओ विनय कुमार त्रिपाठी ने बताया कि छज्जे में लगभग 20 दिन पहले से ही दरार पड़ी थी। जिसके बाद इसके नीचे जाने पर सभी को रोक लगा दी गई। इसे चारो तरफ से घेर भी दिया गया था। ताकि कोई भी इसके नीचे न जाए। पुरातत्व विभाग को भी इसकी सूचना दी गई थी ताकि हम कैसे इसे रीस्टोर कर सकें इसके बारे में जानकारी मिल सके क्योंकि हमारे इंजीनियर्स ऐतिहासिक इमारत में कोई चेंज नहीं कर सकते। पुरात्तव विभाग से आज से पहले कोई नहीं आया। सिर्फ बातचीत चल रही थी। सोमवार को बिल्डिंग गिरने पर आर्कियोलॉजिकल डिपार्टमेंट की टीम डैमेज की जानकारी लेने के लिए आई। बिल्डिंग गिरने पर हमने बिजली काट दी। मंगलवार को बिल्डिंग में साइंटिस्ट पहले की तरह फिर से काम करेंगे।
बाद में बना था
सीडीआरआई में काम करने वाले साइंटिस्ट्स की मानें तो छतर मंजिल का जो हिस्सा गिरा है वह मेन बिल्डिंग के बनने के काफी बाद बनाया गया था। नवाबों के बाद यह बिल्डिंग अंग्रेजों ने क्लब के रूप में इस्तेमाल करनी शुरू कर दी थी। 1951 में इसमें सीडीआरआई को शिफ्ट किया गया था। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसका इनागरेशन किया था। पहले इसका मेन गेट गोमती नदी की तरफ था। लेकिन अंग्रेजों ने इसका रास्ता नदी की तरफ से बदलकर रोड की तरफ कर दिया। इसीलिए गिरे हुए हिस्से का निर्माण मेन बिल्डिंग के गिरने के बाद किया गया था. 
विदेशी भी काम करते हैं
जहां पर छज्जा गिरा छतर मंजिल के उस पोर्शन में डायरेक्टर ऑफिस और ऑडीटोरियम वहीं है। इसी छज्जे के नीचे से दोनों जगहों में प्रवेश का रास्ता है। इसके साथ इसी बिल्डिंग में माइक्रोबायोलॉजी, इंडोक्राइनोलॉजी, पैरासिटोलॉजी, टॉक्सिकोलॉजी की लैब और एकाउंट सेक्शन है। जहां पर 100 से ज्यादा साइंटिस्ट्स व अन्य कर्मचारी काम करते हैं। साथ ही यहां पर कई विदेशी साइंटिस्ट भी काम करते हैं। इससे पहले भी सीडीआरआई के ई2 डिपार्टमेंट में डॉ। लता के सामने ही ईंटे गिरने की घटनाएं हो चुकी थीं।
1987 की ईंटे
जो छज्जा गिरा है वह 100 साल से ज्यादा पुराना है। क्योंकि इसमें जो इंटे लगी है उनमें 1887, 1903 और 1905 लिखा हुआ था.

Posted By: Inextlive