उत्‍तर प्रदेश के अमरोहा जिले में एक दगाह है जहां ये सांप बिच्‍छू भी संत हैं। कहते हैं बिच्‍छू का काटा पानी मांगे बिना मर जाता है पर यहां के बिच्‍छू को आप हथेली पर लेकर घूम सकते हैं।

घर भी ले जा सकते हैं बिच्छ़
अमरोहा की हजरत शाह विलायत की दरगाह में हर कोने में बिच्छ़ छुपे हैं किसी दीवार, किसी पेड़ या किसी भी कोने की मिट्टी जरा सी हटाते ही सैंकड़ों की तादाद में बिच्छ़ निकल आते हैं। लेकिन मजे की बात ये है कि ना तो ये किसी को काटते हैं ना परेशान करते हैं। आप इन्हें हाथ में भी उठा सकते हैं। यहां तक कि अपने साथ घर भी ले जा सकते हैं। लेकिन एक निश्चित अवधि के भीतर इन्हें वापस दरगाह लाना जरूरी होता है वरना ये अपने असली रंग में आ सकते हैं और काफी खतरनाक हो सकते हैं।
800 साल पुरानी है कहानी  
इस दरगाह में बिच्छ़ कैसे आये और पालतू बने इसकी कहानी करीब 800 साल पुरानी बतायी जाती है। कहते हैं कि उस दौर में ईरान से सैयद सरबुद्दीन शाह विलायत भारत में अमरोहा आये और वहीं अपना मुकाम बनाने का फैसला किया। जिस पर वहां पहले से मौजूद बाबा शाह नसरुद्दीन आपत्ति की, वे नहीं चाहते थे कि हजरत शाह विलायत वहां मुकाम करें। इसी क्रम में पहले उन्होंने एक कटारे में पानी हजरत शाह विलायत के पास भेजा जिसका जवाब उन्होंने कटोर में पानी के ऊपर फूल रख कर दिया। एक दूसरे को पीछे हटने के लिए मजबूर करने का ये सिलसिला ही बिच्छ़ओं के आने का जरिया बना। 

शाप को बदला चमत्कार में
शाह नसरुद्दीन ने सबसे आखीर में शाह विलायत को शाप दिया कि उनके निवास स्थान में सांप बिच्छु रहेंगे और गांव के खोये हुए घोड़े, गाय आदि जानवार उनके यहां ही पाये जायेंगे। इस पर शाह विलायत ने ये चमत्कार किया कि उन्होंने घोषणा कर दी कि उनके इलाके में रहने वाले सांप बिच्छु किसी को नहीं काटेंगे और जानवार आसपास लीद नहीं करेंगे। हैरानी की बात ये कि उनके दोनों आदेश स्वीकृत हो गए और तभी से हजरत शाह विलायत बिच्छु वाले बाबा के नाम से भी मशहूर हुए।

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Posted By: Molly Seth