PATNA : बिहार न कल बदनाम था और न आज है. लेकिन यहां के लोग कल भी बेसिक्स के लिए जूझ रहे थे और आज भी यह जारी है. बिहारी अस्मिता के सवाल पर आई नेक्स्ट ऑफिस में हुई परिचर्चा में एक्सपर्ट की बेबाक राय ने ना सिर्फ बिहारी इमेज की जमीनी सच्चाई बताई बल्कि बिहारियों पर हंसने वालों को भी आईना दिखाया...


इंटरनल इमेज बिल्डिंग के प्रयासों के बावजूद बाहर में बिहारियों की निगेटिव इमेज ही है। आज भी एक आम बिहारी को वो सम्मान नहीं मिलता जिसका वो हकदार है। इंटरनेट के वर्चुअल वल्र्ड पर भी बिहारियों को मजाक बनाने वाली पांच लाख से अधिक वेबसाइट्स मौजूद हैं। लेकिन इनका काउंटर बिहार से क्यों नहीं होता, कब तक बिहारी इसे सहते रहेंगे? इसी इश्यू पर रविवार को आई नेक्स्ट में आयोजित डिस्कशन में पैनलिस्ट्स ने अपनी बातें रखीं। किसी ने खुद को सुधारने की बात की तो कोई इसके लिए पॉलिटिकल सिनारियो को दोषी मान रहा था। लेकिन सबकी बातों में एक बात कॉमन थी, बिहार भी उसी सम्मान का हकदार है जो दूसरे स्टेट्स के पास हैं। बिहार के खिलाफ भ्रामक बातों का दुष्प्रचार सहन नहीं किया जाएगा।

इमेज बदलने को एक्सपट्र्स के सुझाव
* बिहार में बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर की हालत बदतर है जिससे डिपेंडेंसी अधिक है। इस सेक्टर में बड़ा बदलाव जरूरी है।
* स्टेट के प्राइमरी और हायर एजुकेशन में सुधार की जरूरत है क्योंकि इसके बिना डेवलपमेंट अधूरा है।
* बिहार में टैलेंट की कमी नहीं लेकिन गॉडफादर नहीं मिलते। ऐसे में बिहारी टैलेंट को प्रोमोट किया जाना चाहिए।
* पॉलिटिकल सिस्टम ने बिहार को मजाक का पात्र बना दिया है। इस सिस्टम में संवेदनशील लोगों की जरूरत है।
* बिहार में एजुकेशन के साथ इंडस्ट्रीज सेक्शन में भी बदलाव की जरूरत हैं क्योंकि इसके बिना डेवलपमेंट संभव नहीं।
* बिहार की खराब छवि के लिए दूसरे लोगों को दोषी ना ठहराते हुए, खुद में बदलाव लाना चाहिए।
* लोगों को उनके अधिकारों के बारे में बताना चाहिए जिससे वे अवेयर हो सकें और अपने खिलाफ की बातों का अपोज कर सकें।
* बिहारियों को पहले खुद अपने कल्चर का रेस्पेक्ट करना होगा, तब दूसरे करेंगे।
* इंटरनेट की पहुंच बिहार के अधिकतर भागों में नहीं है जिससे लोग ये जान भी नहीं पाते उनके खिलाफ क्या दुष्प्रचार हो रहा है।
* बिहार का कल्चर दूसरों के लिए मजाक बनता है क्योंकि हम खुद इसका मजाक बनाते हैं। हमें खुद अपने कल्चर की रेस्पेक्ट करनी होगी।

* सोमा चक्रवर्ती, डांस टीचर।
बिहार की इमेज को बदलनी है तो शुरुआत घर से करनी होगी। टैलेंट की कमी नहीं है। लेकिन गॉड फादर नहीं होने के कारण बिहारियों को सही प्लेटफार्म नहीं मिल पाता। आज बाहर में बिहारियों को हीन भावना से देखा जाता है तो इसका एक बड़ा कारण है कि हमें यहां जरूरत की सारी चीजें नहीं मिल रहीं। अगर सबकुछ यहां मिलेगा तो बाहर जाने पर भी बिहारी कांफिडेंट रहेंगे.

* मुख्तार, स्टूडेंट लीडर
असली प्रश्न बिहार की नैतिक छवि का नहीं है। यह पॉलिटिकल मसला है। इमेज बिल्डिंग के प्रयासों के बाद भी हालात नहीं बदल रहे। बिहार की आज जो भी स्थिति है, उसके लिए बीती सरकारें जिम्मेदार हैं। बिहार में कई कमियां हैं तो हम बेहतर छवि की उम्मीद क्यों कर रहे हैं। पहले हमें अपने पॉलिटिकल सिस्टम और इसके लिए जिम्मेदार लोगों को बदलना होगा.

* नीलेश्वर मिश्रा, रंगकर्मी।
अपनी कमियों के लिए दूसरों को गलत ठहराना बिल्कुल गलत है। पिछले 40-50 सालों में बिहार में कुछ भी ऐसा नहीं हुआ जिस पर हमें गर्व हो सके। लेकिन इस बात में उलझने का कोई मतलब नहीं। बदलते समय में प्रयास तेज करना होगा कि बिहार की छवि बदले। अपनी बातों को सबके सामने लाना होगा, जिससे कम से कम लोग हमें जान तो सकें। अगर सबकी कोशिश रहेगी तो बिहार भी बदलेगा और छवि भी।

* मधु, एडवोकेट.
किसी को भी अपमानित करने के खिलाफ कानून तो कई हैं लेकिन इसका पालन नहीं होता। कुछ लोग अपने अपने स्टेट को ही सेपरेट देश बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो बिल्कुल गलत है। हमारा संविधान साफ कहता है कि हम सभी किसी स्पेसिफिक स्टेट के नहीं, भारत के नागरिक हैं। हम अपने कल्चर को डिफेंड नहीं कर सकें क्योंकि बड़ी अनइंप्लायमेंट ने हमें कांप्रोमाइज करने पर मजबूर किया।

* सुप्रिया, मॉडल.
हमारा रेस्पेक्ट दूसरे तब करेंगे जब हम खुद करेंगे। भोजपुरी मूवीज के नये रूप ने बिहार की इमेज को धक्का पहुंचाया है। आज भोजपुरी इंडस्ट्री में काम करने वालों को बॉलीवुड में चांस नहीं मिलता जबकि साउथ की इंडस्ट्री वालों के साथ यह एक कॉमन बात है। आज बिहार में टैलेंट के नाम पर सबकुछ होने के बावजूद इंडस्ट्री उस मुकाम पर नहीं है क्योंकि हम खुद अपने कल्चर की रेस्पेक्ट नहीं कर रहे।

* जयप्रकाश, रंगकर्मी.
बिहार की छवि में जो भी निगेटिविटी है उसे सुधारने की दूसरी कोशिश तब तक कामयाब नहीं हो सकती जबतक बिहार की बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर में बदलाव नहीं आएंगे। बिहार कभी बुरा नहीं रहा। लेकिन फुटबॉल में फारवर्ड प्लेयर तभी अच्छा खेलेंगे जब गोलकीपर अच्छा होगा। हमारे नेताओं ने पिछले कई दशकों में सिर्फ पुरानी बातें ही दुहराई हैं। नया कुछ नहीं किया। इसी की सजा भुगत रहा है बिहार।

Posted By: Inextlive