- करोड़ों के आयुर्वेद घोटाले के दोषियों को बचाने का विभाग पर ही लग रहा आरोप

- प्रदेश भर में कई सौ करोड़ के घोटाले में भी आरोपियों पर कार्रवाई नहीं

- 90 के दशक में पकड़ में आया था घोटाला

- 2017 में कर्मचारियों पर कार्रवाई के आदेश

- 16 लाख 68 हजार रुपए की रिकवरी के भी निर्देश

sunil.yadav@inext.co.in

LUCKNOW : राजकीय आयुर्वेद निदेशालय में 90 के दशक में अधिकारियों कर्मचारियों ने मिलकर स्वीकृत बजट से कई गुना अधिक धनराशि ट्रेजरी निकाल जमकर घोटाला किया। विजिलेंस ने मामले जांच की और करोड़ों के घोटाले में अधिकारियों, कर्मचारियों दोषी भी पाया। 2017 में शासन ने कुछ कर्मचारियों को दोषी मानते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई करने और उनसे 16 लाख 68 हजार रुपए की रिकवरी करने के आदेश आयुर्वेद निदेशक को दिए। लेकिन आयुर्वेद विभाग के अधिकारियों ने फाइल ही दबा ली और आज तक एक भी आरोपी के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई।

दोषियों पर कार्रवाई के आदेश

तत्कालीन संयुक्त सचिव ऋषिकेश दुबे ने आदेश जारी कर आधा दर्जन से ज्यादा कर्मचारियों व अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई और उनसे वसूली के आदेश दिए थे। आदेश में ऋषिकेश दुबे ने कहा था कि इन दोषी पाए गए अधिकारियों, कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई करने के साथ ही उनसे शासकीय क्षति की धनराशि भी वसूल के निर्देश भी दिए थे। साथ ही जिन दोषी अधिकारी या कर्मचारी का निधन हो गया हो उनकी चल अचल संपत्ति से उत्तराधिकारियों से धनराशि की वसूल की जाए।

इन पर था आरोप

आदेश के अनुसार इनमें निदेशालय आयुर्वेद/यूनानी सेवाएं में तैनात तत्कालीन वरिष्ठ लिपिक अखिलेश बाजपेई, वरिष्ठ संप्रेक्षक श्यामा प्रसाद, संप्रेक्षक विजय प्रकाश जैन, लखनऊ के वरिष्ठ सहायक क्षेत्रीय आयुर्वेद/यूनानी अधिकारी सत्येंद्र बाबू अग्निहोत्री, लखीमपुर में तैनात वरिष्ठ सहायक राधेलाल, वरिष्ठ लिपिक सत्येंद्र कुमार पांडेय, और हरदोई के आयुर्वेद/यूनानी अधिकारी रामा नंद चौरसिया, सीतापुर के योगेंद्र सिंह और रायबरेली के रविशंकर शामिल थे। अधिकारियों के अनुसार इनमें से कई अधिकारी इस समय रिटायर होने वाले हैं तो कुछ पिछले एक वर्ष के दौरान रिटायर भी हो गए हैं, लेकिन इनमें से किसी पर घोटाले की कार्रवाई नहीं की जा सकी।

होनी थी 16 लाख की वसूली

मामले में आयुर्वेद निदेशक ने 21 मई 2018 को पत्र जारी कर निदेशक ने प्रधान सहायक जितेंद्र कुमार झा को पटल सहायक के रूप में प्राप्त पत्र पर कार्रवाई न करते हुए, तथ्यों को छुपा कर राजकीय कोषागार से 16 लाख 68 हजार 882 रुपए की धनराशि के भुगतान में संलिप्तता के दोषी पाए जाने पर अनुशासनिक कार्रवाई करते हुए सस्पेंड कर दिया गया। उन्हें राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज वाराणसी से संबध कर दिया। लेकिन ठीक 20 दिन बाद ही आयुर्वेद निदेशक डॉ। आरआर चौधरी ने एक अन्य आदेश जारी कर उनके निलंबन आदेश को समाप्त कर दिया। साथ ही जांच के लिए वित्त नियंत्रक संजय कुमार राय को जांच अधिकारी नामित कर दिया। लेकिन असली दोषियों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी।

कोट-

मुझे अभी मामले की जानकारी नहीं है। मामले की जानकारी की जाएगी ऐसा है तो नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।

- जयंत नर्लीकर, सचिव, आयुष विभाग

Posted By: Inextlive