- इलाहाबाद रही है गणेश शंकर विद्यार्थी की जन्म और कर्मभूमि

- सांप्रदायिकता को मिटाने के लिए गणेश शंकर विद्यार्थी ने दिया जीवन का बलिदान

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ALLAHABAD: सरकार के काले कारनामे लोगों तक पहुंचाने, जनता पर किए जा रहे जुल्मों का भंडाफोड़ करने, किसानों, मजदूरों को उनका हक दिलाने वाली जिस तरह की पत्रकारिता की आज लोग उम्मीद करते हैं इस तरह के क्रांतिकारी और मिशन रूपी पत्रकारिता की शुरुआत इलाहाबाद में ही पैदा हुए गणेश शंकर विद्यार्थी ने की थी। जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में पत्रकारिता के जरिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। अपने लेखों और आक्रामक तेवर के कारण कलम की ताकत के बल पर सत्ता की दिशा-दशा बदल दी। लेकिन कुछ ही लोग उनके योगदान को याद करते हैं। आज हम गणेश शंकर विद्यार्थी के कार्य और योगदान का जिक्र कर रहे हैं।

जन्मभूमि यही, कर्मभूमि भी यही

गणेश शंकर विद्यार्थी जी का जन्म क्890 में अतरसुईया स्थित ननिहाल में हुआ था। परिवार तो फतेहपुर में रहता था। लेकिन विद्यार्थी जी ननिहाल में ही रहते थे। यहीं उनकी पढ़ाई हुई और यहीं से उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत की। स्वतंत्रता आंदोलन का असर तो पूरे देश में था, लेकिन इलाहाबाद में आंदोलन का माहौल कुछ अलग था। यहां के वातावरण का असर गणेश शंकर विद्यार्थी पर भी पड़ा। आंदोलन कल में सर सुंदरलाल जी का एक अखबार कर्मयोगी निकलता था, जिसमें गोरी सरकार के खिलाफ तीखी आलोचनाएं छपती थीं। इससे गणेश शंकर जी काफी प्रभावित थे।

हिल गई गोरी सरकार

क्909 तक गणेश शंकर अच्छे लेखक बन चुके थे। उनके लेख कर्मयुग, स्वराज और अभ्युदय समाचार पत्रों में छपा करते थे। अपनी लेखनी के बल पर गणेश जी मासिक पत्रिका सरस्वती में काम करने लगे। अभ्युदय में सहायक संपादक बने। इसके बाद गणेश जी ने इलाहाबाद से कानपुर पहुंच कर अपना साप्ताहिक पत्र प्रताप निकाला। प्रताप ने ऐसा तहलका मचाया कि गोरी सरकार भी हिल गई।

कई बार दिखाया बगावती तेवर

विद्यार्थी जी अपने बगावती तेवर के कारण जाने जाते थे। बागी पत्रकारिता के कारण प्रताप पर कई मुकदमे दायर किए गए, जिसकी वजह से विद्यार्थी जी को कई बार जेल जाना पड़ा। जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद उन्होंने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बगावती तेवर दिखाया। अन्य अखबारों ने जहां डरते-डरते हृदय विदारक घटनाओं को छापा, वहीं प्रताप ने निर्भीकता का परिचय दिया। ऐसी खबरें छापीं जिससे अंग्रेजी सरकार हिल गई। सरदार भगत सिंह भी प्रताप और विद्यार्थी जी से प्रभावित थे, इसलिए प्रताप से जुड़ कर बलवंत के नाम से कई लेख लिखे, जो प्रताप में छपे।

मौत से मिलाया था आंख से आंख

क्9क्फ् में भगत सिंह और उनके साथियों को जब फांसी पर लटकाया गया तो कई जगह दंगे हुए। जिसने सांप्रदायिकता का रूप लिया। विद्यार्थी जी से नहीं रहा गया और वे लोगों को बचाने अपने घर से निकल पड़े। कानपुर में बचाव कार्य के दौरान कुछ लोग हथियार लेकर उन पर हमला करने के लिए दौड़े लेकिन वे डरे नहीं बल्कि आंख से आंख मिलाया। इसमें गणेश शंकर विद्यार्थी जी को मौत की नींद सुला दिया गया। साम्प्रदायिकता को मिटाने और ंिहंदू मुसलमानों में प्रेम बनाए रखने के लिए उन्होंने अपना जीवन कुर्बान किया।

आज तक नहीं लग सकी विद्यार्थी जी की प्रतिमा

डा। रामनरेश त्रिपाठी कहते हैं पत्रकारिता के जरिये स्वतंत्रता संग्राम में अपना अहम योगदान देने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी जी को सरकारें भले ही भूल गई। लेकिन इलाहाबाद ही नहीं बल्कि पूरे देश के पत्रकारों के जेहन में विद्यार्थी जी आज भी जिंदा हैं। इलाहाबाद में विद्यार्थी जी की स्मृति में न्यूज रिपोर्टर क्लब को गणेश शंकर विद्यार्थी भवन का नाम दिया गया। गणेश शंकर विद्यार्थी सभागार बनाया गया। लेकिन उनकी प्रतिमा शहर में लगाने की मांग आज तक पूरी नहीं हुई। इलाहाबाद से उनके जीवन की शुरुआत हुई,

पत्रकारिता के योद्धा थे गणेश शंकर जी

वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रेस क्लब के अध्यक्ष रतन दीक्षित कहते हैं गणेश शंकर विद्यार्थी नवजागरण काल की पत्रकारिता के सशक्त योद्धा थे। वे पत्रकारिता को केवल शौक नहीं बल्कि मिशन मानते थे और उनका मिशन उनके कलम से निकले शब्दों में दिखाई देता था, जो लोगों के मन मस्तिष्क पर गजब का प्रभाव डालता था। उन्होंने अन्याय के साथ ही सांप्रदायिकता के खिलाफ भी आवाज उठाई। आक्रामक और मिशन के रूप में पत्रकारिता के कारण ही आज भी गणेश शंकर विद्यार्थी जी पत्रकारों के प्रेरणास्रोत हैं।

Posted By: Inextlive