-पूर्व डीएम की योजना रंग लाए, तो गंगा में नहीं फैलेगी पालीथीन की गन्दगी

KANPUR : अगर आप गंगा तट स्थित किसी मंदिर जाएंगे, तो आपको वहां पर कागज के लिफाफे में प्रसाद मिलेगा। जिसमें जेल की मोहर भी लगी होगी। अब आप सोच रहे होंगे कि लिफाफे में जेल की मोहर का क्यों लगी है, तो बताते है कि शहर में गंगा को निर्मल बनाने और बंदियों को रोजगार देने के लिए एक संस्था ने सालों पहले यह काम शुरु किया था। संस्था घाट पर पालीथीन के यूज को रोकने के लिए बंदियों से कागज लिफाफे और कपड़े के बैग बनवाकर वहां पर सस्ते रेट पर बिकवाती है। जिससे होने वाली कमाई को बंदियों बांट दिया जाता है। यह योजना पूर्व डीएम ने शुरु की थी। उस समय तो गंगा तट पर पालीथीन का यूज कम हो गया, लेकिन प्रशासन की उपेक्षा के चलते फिर से पालीथीन का यूज ज्यादा होने लगा है।

नवाबगंज में रहने वाली देविका मुखर्जी ने इसकी शुरुआत की थी। वो मूलरूप से कोलकाता में रहने वाली थी। वो कुछ सालों पहले पति के कानपुर ट्रांसफर होने पर यहां आकर बस गई। जिसके बाद वो पति के साथ गंगा के दर्शन करने सरसैया घाट गई थी। जहां पर उन्होंने पालीथीन से फैली गन्दगी को देखकर इसकी सफाई कराने की ठान ली। इस दौरान घाटों को नो पालीथीन जोन घोषित कर दिया। जिसे जानकर उन्होंने तत्कालीन डीएम मुकेश कुमार मेश्राम से मुलाकात कर बंदियों से कागज के लिफाफे बनवाने का सुझाव दिया। उनकी हरी झण्डी मिलने के बाद वो संस्था के सदस्यों को लेकर जेल गई। उन्होंने वहां महिला बंदियों को लिफाफा बनाकर रुपए कमाने के बारे में बताया, तो तुरन्त तैयार हो गई। वो जेल में बंदियों को फ्री में कागज उपलब्ध करा देती है। जिससे वे लिफाफे बनाते है। इन लिफाफे और बैग को घाट और चिडि़याघर स्थित दुकानों में बेचा जाता है। जिससे होने वाली कमाई को बंदियों को बांट दिया है। देविका ने बताया कि इससे बंदियों को रोजगार मिल रहा है और घाट भी साफ हो रहे है। तत्कालीन डीएम मुकेश कुमार मेश्राम के सहयोग से यह योजना रंग लाई थी, लेकिन इस समय ध्यान न दिए जाने से लिफाफों की बिक्री कम हो गई है। उन्होंने बताया कि अगर सख्ती से घाट पर पालीथीन पर बैन लगाया जाए, तो इस योजना और सफल हो सकती है। जिससे गंगा तो निर्मल होगी। साथ ही बंदियों को रोजगार मिलेगा।

चिडि़याघर हो गया नो पालीथीन जोन

शहर में चिडि़याघर नो पालीथीन जोन है। यहां पर बंदियों के बनाए लिफाफों में ही सामान मिलता है। वहां पर भी देविका मुखर्जी ने पहल कर दुकानों में कागज के लिफाफे बिकवाए थे। जिसके बाद यह सिलसिला चलता रहा और यह नो पालीथीन जोन बन गया।

Posted By: Inextlive