इस वर्ष यह एकादशी सोमवार 19 नवंबर को उत्तराभाद्र नक्षत्र में मान्य है। दिन में 11 बजकर 55 मिनट के बाद देव पूजन एवं तुलसी-विवाह का शुभ मुहूर्त है।

सूर्य के वृश्चिक राशि में प्रवेश के उपरान्त कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु अपनी योग-साधना से निवृत्त होकर लोक हित हेतु जागृत होते हैं; इसीलिए इस एकादशी को हरिप्रबोधिनी या देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है।

शुभ मुहूर्त


इस वर्ष यह एकादशी सोमवार 19 नवंबर को उत्तराभाद्र नक्षत्र में मान्य है। दिन में 11 बजकर 55 मिनट के बाद देव पूजन एवं तुलसी-विवाह का शुभ मुहूर्त है। देव के उठते ही विवाह-शादी एवं समस्त शुभ कार्य सम्पादित होने लगते हैं।

नई फ़सल इसी समय आती है, इसलिए इक्ष्वाकु अर्थात् गन्ना, सिंघाड़ा, शकरकन्द जैसी प्राकृतिक वस्तुएं ईश्वर को प्रदान की जाती हैं। वेद में इसका प्रमाण इन शब्दों में प्राप्त होता है-

“ विष्टे: परम इक्षुरसपानम।।”

देवोत्थान का मन्त्र इस प्रकार है-


“ उत्तिष्ठो उत्तिष्ठ गोविंदो,उत्तिष्ठो गरुणध्वज।

उत्तिष्ठो कमलाकांत, जगताम मंगलम कुरु।।”

लोक-भाषा या लोकरीति में देवोत्थान का भाव-शब्द कुछ इस प्रकार प्रचलित है- “देव उठो, देव उठो! कुंआरे बियहे जाएं; बीहउती के गोद भरै।।”

वर्ष की चौबीस एकादशी में प्रमुख हरिप्रबोधिनी एकादशी ही शस्त्रोक्त मान्य है।

—ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट        

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Posted By: Kartikeya Tiwari