MEERUT : दिल्ली रोड पर रेलवे लाइन पार करने के बाद सडक़ के दोनों तरफ बनी इमारतें आपसे सिटी की सबसे बदनुमा तस्वीर छिपा लेती हैं. मेवला फाटक के पास दो चीजें पिछले कुछ अर्से में उग आई हैं. एक कूड़े का पहाड़ और दूसरी इसके साए में बसी झोपड़-पïट्टी. नशा जुर्म देहव्यापार बैगिंग की ये मिली-जुली दुनिया मेरठ की धारावी है.

भ्रम में मत रहना
बाहर का दृश्य देखने पर तो दिल में करुणा का भाव आता है। कैसे ये लोग इतनी गंदगी और गरीबी के बीच बीमारियों और तमाम अभावों से जूझते हुए जिंदगी बसर कर रहे होंगे। क्या कभी इन्होंने टीवी देखा होगा। जो सुविधाएं मेट्रो सिटी का यूथ लेता है क्या कभी इनके बच्चे उसकी कल्पना भी कर पाएंगे। ये सब सोचकर किसी भी इनसान के दिल में दया आ जाएगी। पर जैसे ही कुछ कदम आगे बढ़ते तो ये भ्रम टूट जाता है।

हाई फाई
ईंट और गारा से चिनी इनकी छोटी छोटी झुग्गियों में ऐसे तमाम गेजेट्स और ऐशो आराम की सुविधाएं मौजूद है। जिनके बारे में मेट्रो का यूथ सोचता है या जिनके साथ वो जीता है। यही नहीं। इन झुग्गियों में वो तमाम अवैध नशे भी आसानी से उपलब्ध है। जिनके लिए किसी को भी पापड़ बेलने पड़ सकते है।

बड़ी आबादी है
दिल्ली रोड़ पर मेवला फाटक से कुछ सौ मीटर की दूरी पर बसी इस बस्ती में सैैंकड़ों झुग्गी हैं। हर झुग्गी में औसतन दस से 12 लोग रह रहे हैं। जिसकी पुष्टि यहां रहने वाले लोगों और झुग्गियों की मालकिन ने की। इस पूरे इलाके में फैली झुग्गियों को शायद जनगणना में शामिल न किया गया हो, लेकिन यहां की आबादी आठ से दस हजार के बीच है।

क्या है रुटीन
यहां रहने वाले इन लोगों का रुटीन भी आप-हम से कहीं जुदा है। आप सुबह सात बजे जगते होंगे। अखबार पढ़ते होंगे। चाय पीते होंगे। ब्रश करना, नहाना, ब्रेक फास्ट करके काम पर निकल जाना या फिर घर की साफ सफाई करना। लेकिन इनके लिए इस तरह की तमाम औपचारिकताएं एक ढकोसला मात्र है। ये सुबह चार बजे उठते है। अपने घर के कपड़े बदलते है और फील्ड जॉब के हिसाब से फटे पुराने, गंदे से कपड़े पहन लेते है। मां बाप छोटे बच्चों को भी तैयार कर देते है। ताकि भीख मांगने वाले आकर बच्चों को किराए पर लेकर जा सके। बच्चे तो बच्चे बुजुर्गों को भी किराए पर दिया जाता है।

होता है जश्न
छह बजे से सब लोग अपने अपने ठिये की तरफ चल पड़ते है। दिन भर काम करने के बाद ये लोग शाम पांच बजे से वापस झुग्गी में आना शुरू  हो जाते है। दिन भर की कमाई को परिवार के सभी लोग एक जगह जमा करते है। चोरी का सारा सामान रखने के लिए एक अलग ब्रीफ केस बनाया गया है। जिसमें ये सारा सामान रखा जाता है। इसके बाद सभी लोगों की पसंद का खाना बनता है। चाहे चिकन हो या मटन या कुछ और शराब और नशे के अन्य सामान भी इनके लिए यहीं पर उपलब्ध रहते है। खाना बनने के बाद सभी लोग अपने-अपने हिसाब से रोज शाम को जश्न के माहौल में खो जाते है।

दुकाने भी हैं
ऐसा नहीं कि बस्ती में सिर्फ दुकाने नहीं है। बाकायदा यहां एक छोटा सा बाजार भी है। जिसमें करीब दस से पंद्रह खोखा नुमा दुकाने हैं। इन दुकानों पर बीडी, सिगरेट, पान, तंबाकू, चाय, ब्रेड, टोस्ट, दाल, चीनी, आटा और जरूरत की अन्य चीजें भी मिलती हैं। मतलब ये कि जो समुदाय खुद दूसरों के भरोसे है उसके भरोसे भी कई दुकान वालों के परिवार चलते है।

Posted By: Inextlive