Meerut : कैंट बोर्ड की कार्यप्रणाली में कुछ उल्टा-पुल्टा है. आप कहीं भी चले जाइए वहां आपको खोखे और दुकानों के किराए में जमीन आसमान का अंतर मिलेगा. खोखो का कम और दुकानों का ज्यादा. जबकि कैंट में मामला उल्टा है. यहां खोखो का किराया ज्यादा है और दुकानों का कम. चौंकिए मत. अगर आप आंकड़ों पर नजर दौड़ाएंगे तस्वीर अपने आप साफ हो जाएगी.


दुकानों के मुकाबले में दोगुना मौजूदा समय में खोखों के किराए की बात करें तो हर महीने में खोखे का किराया 1800 रुपए प्रति माह है, जबकि दुकानों का किराया 500 रुपए तक है। इस बात की पुष्टि करने के लिए इसकी इंवेस्टीगेशन की गई तो बाउंड्री रोड पर खोखे का रेट हर महीने तकरीबन 1800 रुपए था। नाम न प्रकाशित करने शर्त पर कुछ बोर्ड मेंबर्स ने बताया कि जो कुछ खोखे हाल फिलहाल में हमारे द्वारा रिक्मंड किए गए थे, उनके किराए 1400 रुपए से 1800 रुपए के आसपास हैं। जब दुकानों के बारे में बातचीत की गई तो कैंट जनरल हॉस्पिटल की दुकानों का सबसे कम किराया 501 रुपए था। वहीं अधिकतम किराया 947 रुपए था। इस हिसाब से खोखो के किराए में दोगुने का अंतर है। साइज में पांच गुने का अंतर


ताज्जुब की बात तो ये है कि इन दुकानों के साइज में पांच गुना से भी अधिक अंतर है। अगर बाउंड्री रोड, रजबन, सदर, कैंट स्टेशन, सिटी स्टेशन, लालकुर्ती और जीरो माइल में मौजूद खोखों की बात करें तो इनका साइज 100 से 150 स्क्वायर फिट है। वहीं कैंट जनरल हॉस्पिटल की 15 दुकानों के साइज की बात करें तो 500 से 700 स्क्वायर फिट है। इसके बाद भी इनके किराए में इतना अंतर समझ से परे है। करोड़ों का घाटा मार्केट एनालिस्ट की माने तो बेगमपुल और आबूलेन के नजदीक का एरिया पूरी सिटी के सबसे क्रीम लोकेशन में गिना जाता है। खासकर कमर्शियल यूज के लिए इससे बेहतर कोई बेहतर जगह नहीं। अगर मौजूद रेंटल वैल्यू की बात करें तो इन दुकानों का रेट 1.25-1.50 लाख से कम नहीं होनी चाहिए। इस हिसाब से कैंट बोर्ड के रेवेन्यू को हर माह 20 से 22 लाख रुपए का घाटा उठा रहा है। यानि हर 2.5 करोड़ का सालाना घाटा कैंट बोर्ड उठा रहा है। सबसे बड़ा सवाल कैंट जनरल हॉस्पिटल की दुकानें सेल्फ फाइनेंस स्कीम के तहत 1972 में बनाई गई थी, जिन्हें 30 सालों की लीज पर दिया गया था। लीज खत्म होने के बाद भी इन दुकानों पर कब्जा पुराने लीज धारकों के पास है, जबकि कैंट बोर्ड के अधिकारियों ने इन खोखों का किराया वर्ष 2008-09 30 फीसदी तक बढ़ाया था। सबसे बड़ा सवाल ये है कि लीज का टेन्योर खत्म होने के बाद इनका दोबारा ऑक्शन क्यों नहीं किया गया? आखिर इन दुकानों का मामला सामने आते ही कैंट बोर्ड के अधिकारी चुप्पी क्यों साध लेते हैं?

"खोखो का किराया दुकानों से कैसे हो सकता है। अगर ऐसा है तो बहुत गलत है। वैसे भी इन दुकानों पर मौजूदा कमर्शियल रेंटल वैल्यू वसूली जानी चाहिए। इस मुद्दे को बोर्ड में उठाया जाएगा."- शिप्रा रस्तोगी, उपाध्यक्ष, कैंट बोर्ड "नियम और कानूनों के हिसाब से काफी गलत है। इन दुकानों का किराया स्टैंडर्ड टैबुलर रेट के हिसाब से काफी कम है। इन दुकानों और खोखों के किराए में कुछ तो अंतर होना चाहिए."- सुनील वाधवा, पूर्व उपाध्यक्ष, कैंट बोर्ड "इन दुकानों ऑक्शन होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। वैसे उनसे किराया वसूला जा रहा है। 2009 में इनका किराया भी बढ़ाया गया था." - एमए जफर, पीआरओ, कैंट बोर्ड

Posted By: Inextlive