Kanpur: हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छेकहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए बयां और... मिर्जा असदुल्लाह खां गा़लिब. वो नाम जिसे उर्दू शायरी में वो मुकाम हासिल है जो अंग्र्रेजी लिटरेचर में विलियम शेक्सपियर का है. पीढ़ी दर पीढ़ी उर्दू को मोहब्बत और दर्द की जुबान बनाए रखने में मिर्जा गा़लिब की शायरी का बड़ा योगदान है. फ्राइडे को ग़ालिब का जन्मदिवस था. पर इस शहर में ग़ालिब के अंदाज की चर्चा भी न हुई. एक भी सरकारी या गैरसरकारी आयोजन ग़ालिब के जन्मदिवस पर कानपुर में नहीं हुआ. पर गा़लिब आयोजनों के मोहताज नहीं. वो लोगों के दिलों में बसते है.

मिर्जा गालिब एक नजर में
मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ ‘गालिब’ उर्दू और फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। इनको उर्दू का सर्वकालिक महान शायर माना जाता है और फ़ारसी कविता के प्रवाह को हिन्दुस्तानी जबान में लोकप्रिय करवाने का भी श्रेय दिया जाता है। हालांकि उनसे पहले मीर तक़ी मीर भी इसी वजह से जाने जाते हैं।
गालिब (असद) नाम से लिखने वाले मिर्जा मुगल काल के आखिरी शासक बहादुर शाह जफ़ऱ के दरबारी कवि भी रहे थे।

 

मिर्जा गालिब साहब के शेर और शायरी सुनते हुए हम बड़े हुए हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि शहर के मौजूदा हालातों पर नजर जाती है तो गालिब साहब के तमाम मशहूर शेर खुद ब खुद जुबान पर आ जाते हैं।
पारस मेहरोत्रा

गालिब साहब ने एक विधा पर नहीं लिखा बल्कि अनेकों विधाओं पर लिखकर शायरी में जो वैरायटी पेश की, उसे बयां करना मुश्किल है। रोजमर्रा की जिंदगी से निकली हुई बातों को इतनी सहजता से शायरी में बदल देने में उन्हें महारत हासिल थी।
अमित खंडेलवाल

मैं मिर्जा गालिब का बहुत बड़ा फैन हूं। मुझे उर्दू का बहुत ज्यादा ज्ञान नहीं है लेकिन गालिब साहब की शायरी दिल में घर कर जाने वाली होती हैं। इसलिए उनकी शायरी सुनकर मन को शांत करता हूं।
पंकज शर्मा

मिर्जा गालिब साहब के शेर और शायरी में जिंदगी की हकीकत झलकती है। शायद इसलिए मेरे दिल के बेहद करीब हैं। मुझे इस बात की जानकारी नहीं थी कि आज उनकी जयंती है लेकिन गालिब साहब मेरे फेवरेट हैं।
आकाश कुमार

जिस तरह हर क्षेत्र में गिरावट महसूस की जा रही है। शेर और सुखन शायरी के मामले में भी यही बात कही जा सकती है। शायद इसी का परिणाम है कि उर्दू के मुशायरों में भी तमाम कचरा देखने और सुनने को मिलने लगा है। जहां तक मिर्जा गालिब साहब की बात है तो किसी को शेर ओ शायरी से मतलब हो या न हो लेकिन वो गालिब के नाम से वाकिफ रहता है। ऐसी शोहरत आज तक शायद ही किसी को मिली हो। आज भी हर तरफ बस गालिब ही गाए जा रहे हैं, भले ही गाने वाले को ये पता न हो कि वो गालिब का लिखा शेर पढ़ रहा है।
प्रमोद तिवारी, शायर

 

Posted By: Inextlive