इसरो के अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत भारत मंगलवार को अपना यान मंगल ग्रह पर भेज रहा है. भारत का यह मंगल अभियान वहां जीवन की तलाश करेगा.


साथ ही ये भी जानने की कोशिश होगी कि वहां वायुमण्डल का ख़ात्मा किस तरह से हुआ.इस कार्यक्रम पर चर्चा के साथ ही एक बहस भी छिड़ गई है. कोई इसे अंतरिक्ष कार्यक्रम के क्षेत्र में भारत की ऊंची छलांग मान रहा है तो कोई संभ्रांत तबक़े का भ्रामक अभियान मात्र. सवाल है कि यह अभियान भारत और दुनिया के लिए क्या मायने रखता है?हालांकि मंगल ग्रह पर एक छोटा मानवरहित उपग्रह भेजे जाने को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है.अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो भारत सफल मंगल मिशन शुरू करने वाले चंद देशों में शामिल हो जाएगा. ऐसा होने पर भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो अमरीका, रूस और यूरोपीय यूनियन की अंतरिक्ष एजेंसी के बाद चौथी ऐसी एजेंसी बन जाएगी जो मंगल पर यान भेजने में कामयाब होगी.10 करोड़ डॉलर का मिशन


भारत का 1350 किग्रा का रोबोटिक उपग्रह लाल ग्रह की 2000 लाख किलोमीटर की 10 महीने की यात्रा पर रवाना होगा. इसमें पांच ख़ास उपकरण मौजूद हैं जो मंगल ग्रह के बारे में अहम जानकारियां जुटाने का काम करेंगे.

चीन ने अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत को लगभग हर तरीक़े से पछाड़ रखा है. चीन के पास ऐसा रॉकेट है जो भारत के रॉकेट के मुक़ाबले चार गुना ज़्यादा वज़न उठा सकता है."भारत का मंगल मिशन सुपरपावर बनने के उसके भ्रामक खोज को पूरा करने वाले मिशन का हिस्सा है."-ज्यां द्रेजः अर्थशास्त्री और कार्यकर्ताइसी तरह साल 2003 में, चीन अपना पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष यान सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर चुका है, जो भारत के लिए अब तक अछूता रहा है. चीन ने साल 2007 में अपना पहला चंद्र अभियान शुरू किया था. इस मामले में भी वह भारत से आगे है.साल 1960 से अब तक लगभग 45 मंगल अभियान शुरू किए जा चुके हैं. और इनमें से एक तिहाई असफल रहे हैं.हालांकि भारत का दावा है कि उसका मंगल अभियान पिछली आधी सदी में ग्रहों से जुड़े सारे अभियानों में सबसे कम ख़र्चे वाला है. मगर कुछ लोग ने इसके वैज्ञानिक उद्देश्य पर सवाल उठ रहे हैं.दिल्ली साइंस फ़ोरम नामक थिंक टैंक के डॉ. रघुनंदन का कहना है, "यह अभियान उच्च गुणवत्ता वाला नहीं है. विज्ञान से जुड़े इसके उद्देश्य भी सीमित हैं."

तो दूसरी ओर अर्थशास्त्री-कार्यकर्ता ज्यां द्रेज़ ने कहा कि यह अभियान "सुपरपावर बनने के भारत के भ्रामक खोज को पूरा करने वाले मिशन का हिस्सा है."इन बातों को ख़ारिज़ करते हुए एक बड़े सरकारी अधिकारी का कहना है, "हम 1960 के दशक से ही सुनते आ रहे हैं कि भारत जैसे ग़रीब देश को अंतरिक्ष अभियानों की ज़रूरत ही नहीं है."वे आगे कहते हैं, "अगर हम बड़े सपने देखने की हिम्मत नहीं करेंगे तो बस मज़दूर ही बने रह जाएंगे. भारत आज इतना विशाल देश है कि उच्च तकनीक उसके लिए बेहद ज़रूरी है."'मार्स एक्सप्रेस' के अलावा जिसे यूरोप के 20 देशों का प्रतिनिधित्व हासिल है, कोई भी देश पहली बार में मंगल अभियान में सफल नहीं रहा है.

Posted By: Subhesh Sharma