डिमांड-वसूली के आंकड़ों के बीच उलझ न जाए म्यूनिसिपल बांड!
- निगम लखनऊ के लिए म्यूनिसिपल बांड जारी करना बड़ी चुनौती
- सोमवार को प्रमुख सचिव नगर विकास की बैठक में तस्वीर आएगी सामने LUCKNOW: नगर निगम लखनऊ के लिए म्यूनिसिपल बांड जारी करना खासा चुनौती साबित हो रहा है। इसकी वजह डिमांड और हाउस टैक्स वसूली के आंकड़े में लंबा गैप है। अधिकारियों की ओर से इस गैप को भरने के लिए भरसक प्रयास तो किया जा रहा है, लेकिन इसके बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है। प्रमुख सचिव नगर विकास बांड की स्थिति को लेकर सोमवार को बैठक करने जा रहे हैं, जिसमें लूप होल्स पर गहन विचार विमर्श किया जाएगा। इसके साथ ही यह भी जानकारी सामने आई है कि जिम्मेदारों के खिलाफ एक्शन तक लिया जा सकता है। डिमांड की तुलना में वसूली सिर्फ 60 फीसदबांड को लेकर जारी होने वाली रेटिंग सुधारने के लिए 90 फीसदी हाउस टैक्स व यूजर चार्ज की वसूली होना अनिवार्य है। वर्तमान समय में नगर निगम के रिकार्ड में 1559 करोड़ रुपये की डिमांड चढ़ी है, लेकिन वसूली 192 करोड़ रुपये हो रही है। इस पर प्रमुख सचिव नगर विकास की ओर से सवाल भी उठाए गए हैं। 90 फीसदी वसूली के लिए डिमांड में संशोधन के निर्देश भी दिए गए हैं। पोस्ट डिमांड कलेक्शन बुक को वेबसाइट पर अपलोड किया जाना है। नगर निगम ने सारे भुगतान ऑनलाइन कर दिए हैं, लेकिन सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। विज्ञापन कर की वसूली भी नहीं हो सकी है। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर 90 फीसदी डोर टू डोर कवरेज व यूजर चार्ज की वसूली का प्रमाण पत्र दिया जाना है, जबकि हकीकत में सिर्फ 25 फीसदी ही वसूली है।
जमीनों का इस्तेमाल भी चुनौती नगर निगम 14 अरब की जमीनों का इस्तेमाल बांड के लिए करना चाहता है, लेकिन नए शासनादेश ने उसके सपने पर पानी फेर दिया है। दरअसल जमीनों का मालिकाना हक राजस्व विभाग के पास है। 18 अप्रैल 2018 को प्रमुख सचिव आवास की तरफ से जारी शासनादेश में यह स्पष्ट है कि सरकारी भूमि का संरक्षक राजस्व अधिकारी व जिला अधिकारी होता है, नगर निगम केवल प्रबंधक होता है। ऐसी स्थिति में निगम के सामने जमीन का इस्तेमाल भी चुनौती है। रेटिंग बेहतर नहींनगर निगम की संपत्तियों और देयताओं, राजस्व स्त्रोतों, पूंजी निवेश के लिए उपलब्ध संसाधनों, डबल एंट्री एकाउंटिंग सिस्टम, प्रोजेक्ट को समय पर पूरा कर पाने में अक्षमता तथा संपत्तियों का ई डाटा तैयार करने आदि के आधार पर क्रेडिट रेटिंग दी जाती है। इन मामलों में नगर निगम की रेटिंग फिलहाल बेहतर नहीं कही जा सकती है।