माना जाता है कि एस्टेरायड्स के चलते धरती पर डायनासोर ख़त्म हो गए..लेकिन क्या आप मानेंगे इन्हीं एस्टेरायड ने मंगल और जूपिटर के चंद्रमा पर ज़िंदगी की सौगात भेजी. अमरीकी शोधकर्ता यही मानते हैं. वो गणना करते हैं कि पिछले 3.5 अरब वर्षों में धरती से अंतरिक्ष की ओर गईं बड़ी चट्टानें जीवन को शरण देने में सक्षम थीं.


एस्ट्रोबॉयोलॉजी में वो लिखते हैं कि इसके लिए चिक्सुलब का उदाहरण ही काफी है, जिसके चलते बड़े पैमाने पर धरती का चट्टानी मलबा यूरोपा जा पहुंचा. शोधकर्ता कहते हैं कि ज़िंदगी की संभावनाओं को संजोए रखने वाली बहुत सी चट्टानों ने मंगल को बनाया, हो सकता है जिन पर कभी जीवन रहा हो. पेन स्टेट यूनिवर्सिटी की मुख्य लेखक राचेल वार्थ कहती हैं, '' हमने पाया कि ये चट्टानें जीवन का वाहक रही होंगी, जो पृथ्वी और मंगल से एक दूसरे के ग्रहों और सोलर सिस्टम और जूपिटर तक पहुंची होंगी.'' उन्होंने आगे कहा, '' टाइटन या जूपिटर के चंद्रमा पर जीवन की तलाश कर रहे अभियान में देखना होगा कि वो मिल रहे जैविक पदार्थ क्या स्वतंत्र हैं या उनका जुड़ाव पृथ्वी के परिवार वृक्ष से रहा है.''


पैंसपर्मिया – यानि वो विचार, जिसमें माना गया है कि जीवाणु धूमकेतुओं और उल्का पिंडों के टकराने से उत्पन्न मलबे के जरिए अंतरिक्ष में सैर करते रहते हैं. ये बात लंबे समय से खगोलविदों को आकर्षित करती रही है.

नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पहले अनुमान लगाया कि बड़े बदलावों में पृथ्वी से अंतरिक्ष की ओर गईं चट्टानें तीन मीटर से कहीं ज्यादा बड़ी रही होंगी.उनका अनुमान था कि दस मिलियन वर्षों से हो रही इन यात्राओं में शामिल कम से कम तीन मीटर की चट्टानें सूर्य के विकिरण से जीवाणुओं की रक्षा करने में सक्षम रही होंगी.उसके बाद उन्होंने इन यात्राओं के भाग्य को तय किया होगा. इनमें कई चट्टानें आमतौर पर पृथ्वी की कक्षाओं में पहुंची होंगी तो कुछ नीचे गिर गई होंगी. कुछ या तो सूर्य की ओर खींच ली गई होंगी या पूरी तरह से सोलर सिस्टम से बाहर निकल गई होंगी.वार्थ कहती हैं, '' कम लेकिन महत्वपूर्ण संख्या ने एलियन जगत के लिए रास्ता भी बनाया होगा, हो सकता है कि इससे वहां ज़िंदगी का स्वागत हुआ हो. इन सबका मतलब तो है.''जूपिटर के उपग्रह यूरोपा पर कम से कम छह ऐसी चट्टानें देखी गई हैं जो बर्फ के कणों और समुद्र के द्रव से लिपटी हुई थीं. यहां ये भी अनुमान लगाया जा सकता है कि जीवाणु यूरोपा के समुद्र तक भी पहुंचे हों. पृथ्वी के मलबे और चट्टानों के  मंगल तक पहुंचने को अब आमतौर पर स्वीकार किया जा रहा है. शोधकर्ताओं के अनुसार करीब 360,000 चट्टानें लाल ग्रह तक की यात्रा कर चुकी होंगी. बिग बैंग थ्योरी

सबसे प्रसिद्ध प्रभाव मैक्सिको में 66 मिलियन साल पहले हुए चिक्सुलब को ही माना जाता है, जब एक छोटे शहर जितना बड़ा एस्टेरायड पृथ्वी से टकराया.इसके प्रभाव के चलते बड़े पैमाने पर डायनासोर का ख़ात्मा हुआ. ज्वालामुखी सरीखे विस्फोट हुए. बड़े पैमाने पर जंगलों में आग लगी. धुएं और धूल ने पृथ्वी को आगोश में ले लिया.शोधकर्ताओं का मानना है कि चिक्सुलब प्रभाव से करीब 70 बिलियन किलो चट्टानें अंतरिक्ष में गईं, इसमें 20 हजार किलो यूरोपा तक पहुंची. ये संभावना ज्यादा है कि ये विशालकाय चट्टानें अपने साथ जीवन को भी वहां ले गईं.लेकिन क्या इन महाकाव्य सरीखी यात्राओं में वास्तव में जीवधारी बचे होंगे? वार्थ कहती हैं, '' मैं हैरान हूं कि इसके बावजूद  मंगल पर जीवन क्यों नहीं मिला." वो कहती हैं कि ये हमारे अध्ययन से परे है. लेकिन ये मानना तार्किक होगा कि कुछ हद तक पृथ्वी के जीवाणु वहां पहुंचे होंगे.ये देखा जा चुका है कि अत्यधिक छोटे जीवाणु अंतरिक्ष के मुश्किल माहौल का सामना कर सकते हैं. और बैक्टीरिया के बीजाणु तो लाखों सालों के बाद भी सुप्त अवस्था में बचे रह सकते हैं.
पृथ्वी की जद में अगर रहने लायक कोई जगह है तो वो यूरोपा, मंगल और टाइटन हैं-बेशक इन तीनों पर ही पानी की मौजूदगी संभव है, लेकिन वो यहां पहुंचने वालों को नजर नहीं आई है. मंगल में शुरुआत में गरम और गीला वातावरण था यूरोपा का समुद्र बर्फ़ीले कणों से ढका है, जिसकी सतह मोटी और अभेद्य भी हो सकती है.वार्थ कहती हैं कि हो सकता है कि वहां कभी द्रव रूपी पानी रहा हो लेकिन बाद में ये बर्फ के रूप में जम गया. वह कहती हैं, '' ये भी माना जाता है कि यूरोपा नाम का ये चंद्रमा अतीत में हाल में कुछ समय पहले तक कुछ गर्म भी रहा हो.''क्या मंगल से जीवन आयामंगल पर पिछले साढ़े तीन बिलियन बरसों में बहते हुए पानी को नहीं देखा गया-जो पृथ्वी के लोगों के लिए भविष्य में जिंदगी की सबसे बड़ी उम्मीद भी माना जा रहा है. लेकिन क्या ऐसा भी हो सकता है कि जीवन की यात्रा मंगल से पृथ्वी की ओर आई हो?शुरुआती मंगल का वातावरण पहले गरम और गीला प्रतीत होता है-जो जीवन के विकास की मुख्य स्थिति होती है. वार्थ कहती हैं, ''यदि मंगल के वातावरण में कभी जीवाणु रहे हों और तो संभव है कि वो भी उल्कापिंडों की दोनों ग्रहों के बीच भारी आवाजाही के ज़रिए पृथ्वी तक पहुंचे हों.''
हमारे ग्रहीय प्रक्रिया की शुरुआत के समय अरबों उल्काएं मंगल से पृथ्वी की ओर आकर गिरी होंगी. यहां तक कि ये भी संभव है कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति मंगल से हुई हो.प्रुड यूनिवर्सिटी के खगोलजैवकीय के प्रोफ़ेसर जे मेलोश कहते हैं कि हालांकि वार्थ की टीम पेंसपर्मिया के बारे में गणना करने वाली कोई पहली टीम नहीं है. उनकी दस लाख सालों की यात्रा अब तक की सबसे बड़ी है. वह कहते हैं, '' ये अध्ययन मज़बूती से इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि बड़े प्रभावों के जरिए कभी धरती और मंगल की सतह से बड़े पैमानों पर पदार्थों के निकलकर अंतरिक्ष के ज़रिए पृथ्वी और मंगल पर पहुंचने की बड़ी घटनाएं हुई हैं. और इनसे उत्पन्न मलबे ने आराम से एक ग्रह से दूसरे ग्रह का रास्ता पा लिया.''हांलाकि वह ये भी कहते हैं, '' चिक्सुलुब प्रभाव कोई बहुत बेहतर दावा नहीं है क्योंकि ये समुद्र में 50 मीटर से 500 मीटर नीचे हुआ. बेशक इससे समुद्र की तलहटी पर रहने वाले जीव-जंतु निकलकर अंतरिक्ष में पहुंचे हों, लेकिन इससे शायद ही ठोस चट्टानें अंतरिक्ष की ओर गई हों.''

Posted By: Bbc Hindi