क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ:झारखंड का इतिहास गवाह है कि चुनावों में बड़ी पार्टियों ने महिला उम्मीदवारों पर भरोसा नहीं जताया है. 2014 लोकसभा चुनाव में 240 उम्मीदवारों में महिलाएं सिर्फ 15 रहीं. महिला आरक्षण की बात करें या उन्हें समानता देने की सच्चाई यही है कि हर राजनीतिक दल उनका समर्थन हासिल करने के लिए तरह-तरह के आश्वासन और प्रलोभन देते रहे हैं. लेकिन, वास्तविकता में उन्हें नजरअंदाज किया जाता रहा है. मिलेनियल्स ने इस बार इस नब्ज को पकड़ लिया है. उनका कहना है कि केवल बयानबाज लोग बैठे हैं जो भाषण तो देते हैं लेकिन काम नहीं करते. महिलाओं को पार्टी में शामिल कर उनसे काम कराया जाता है, उन्हें आगे कर लड़ाइयां लड़ी जाती हैं लेकिन चुनाव के दौरान उन्हें नेगलेट कर दिया जाता है, जो सरासर गलत है.

कड़क मुद्दा

झारखंड गठन को 18 साल हो गए लेकिन एक-दो मामलों को छोड़ दें तो अभी तक लोकसभा चुनावों में न तो महिलाओं पर एक प्रत्याशी के रूप में बड़े राजनीतिक दल ने विश्वास जताया न ही जनता ने उन्हें जीत दिलाकर कुर्सी तक पहुंचाया. कुछ महिलाओं ने गाहे-बगाहे काफी संघर्ष करने के बाद अगर छोटी और स्थानीय पार्टियों से टिकट भी हासिल किया तो उनकी दावेदारी को जनता ने नकार दिया.

नीतिश

मेरी बात

लोकसभा चुनाव 2014 में कुल 240 महिला उम्मीदवारों ने मैदान में ताल ठोंका था जिनमें महज 15 महिलाएं ही प्रत्यासी के तौर पर चुनाव में उतरी थीं. विडंबना यह है कि एक भी महिला झारखंड से सांसद बनकर संसद में दस्तक नहीं दे पाई. लेकिन उन्हें मौका जरूर मिलना चाहिए साथ ही जनता को भी चाहिए कि अपने क्षेत्र से महिला दावेदारों के प्रति विश्वास जताएं.

संजीव

झारखंड से एक भी महिला न ही राज्यसभा और न ही लोकसभा में पहुंच सकी . हो भी कैसे, यहां की किसी बड़ी पार्टी ने महिलाओं को उम्मीदवारी करने का मौका दिया ही नहीं है. गौर करनेवाली बात यह है कि यहां महिलाएं सबसे ज्यादा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रही हैं जबकि यहां राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर की बड़ी पार्टियां हैं.

राजीव

झारखंड में बीजेपी, कांग्रेस और जेएमएम जैसी बड़ी पार्टियों ने एक भी महिला उम्मीदवार को मैदान में उतारा ही नहीं. स्थानीय पार्टियों में जेवीएम, आजसू ने भरोसा जताया भी लेकिन सीट फतह नहीं कर सके.

राजीव सिंह

जेवीएम ने 2014 के लोकसभा चुनाव में चतरा से नीलम देवी पर भरोसा जताया था, लेकिन वो 1,91,686 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रही थीं. इस बार बीजेपी और कांग्रेस से महिला उम्मीदवार दिये जाने की उम्मीद की जा रही है.

बीरु

जेएमएम से कोई भी महिला चेहरा उभरता हुआ नहीं दिखायी दे रहा है जो सरासर गलत है. हालांकि किसी पार्टी ने किसी का भी नाम आधिकारिक तौर पर फाइनल नहीं किया है. वैसे महिला उम्मीदवार 2019 लोकसभा चुनाव में उतरने के लिए लॉबिंग कर रही हैं.

बिशु

14 लोकसभा क्षेत्रों में बंटे झारखंड में 12 सीट पर बीजेपी और दो पर जेएमएम का कब्जा है. 2014 लोकसभा चुनाव में झारखंड में 240 उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमायी थी. इनमें से महिलाओं की संख्या सिर्फ 15 थी.

डॉ सुशांत

सिंहभूम से पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्‍‌नी गीता कोड़ा प्रदेश भर में सबसे मजबूत उम्मीदवार थी लेकिन अपने गढ़ में ही हार गई. लेकिन जनता के मन में नेता की छवि साफ होनी चाहि इसलिए उन्होंने उन्हें फिर से मौका दिया और जगन्नाथपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनाया हैं.

गौरव

महिलाओं के साथ भेदभाव वाला रवैया काफी पुराना है जो गलत तो है ही साथ ही इसपर लगाम भी लगनी चाहिए.मुझे लगता है कि इस बार शायद महिलाओं की दावेदार बढ़ेगी.

कैलाश

महिला नेताओं की बात कीजिए तो देश की रक्षामंत्री को देखिए, इंदिरा गांधी को याद कीजिए और वर्तमान में प्रियंका गांधी को कांग्रेस ने अपना पार्टी चेहरा बनाकर मैदान में उतारा है. जो काबिल हैं उन्हें मौका तो मिल ही रहा है.

सोनू

Posted By: Prabhat Gopal Jha