पूर्व के आधा दर्जन से अधिक मामलों का नहीं हो सका पर्दाफाश

इंटरनेट कालिंग से बात कर रहे बदमाश, फेल हो रहा सर्विलांस

GORAKHPUR: शहर में हाईटेक होते बदमाशों ने पुलिस की नाक में दम करना शुरू कर दिया है। ज्यादातर मामलों में सर्विलांस के जरिए शातिरों तक पहुंचने वाली पुलिस को छकाने के लिए बदमाश इंटरनेट कॉलिंग का इस्तेमाल कर रहे हैं। पहले से ही व्हाट्सअप कॉल से परेशान पुलिस के लिए इंटरनेट के वर्चुअल नंबर मुसीबत का सबब बनते जा रहे। एक लाख के ईनामी राघवेंद्र की तलाश में जुटी पुलिस किसी नंबर को सर्विलांस पर लेकर लोकेशन नहीं ट्रेस कर पा रही। पूर्व में बम ब्लास्ट की धमकी देने के मामले में पुलिस की कार्रवाई ठप है। इंटरनेट कॉल से धमकाने वाले तक पुलिस नहीं पहुंच सकी। एसटीएफ और क्राइम ब्रांच से जुड़े लोगों का कहना है कि हाईटेक होते शातिरों से निपटने के लिए पुलिस भी टेक्नीकली रिच होना पड़ेगा। सीओ क्राइम ब्रांच ने कहा कि कई बार इंटरनेट कॉलिंग कर बदमाश एक दूसरे से संपर्क साध्ा रहे हैं।

आसान नहीं पता लगा पाना, करते इस्तेमाल

इंटरनेट के जरिए किए जाने वाले कॉल में वर्चुअल नंबर का यूज किया जाता है। इसे आसानी से ट्रेस नहीं किया जा सकता है। पूर्व में सामने आई धमकियों में किसी फोन करने वाले का पता नहीं लग सका है। टेक्नीकल एक्सप‌र्ट्स का कहना है कि ऐसे नंबरों से मैसेज और वीडियो भेजने की सुविधा होती है। इसका इस्तेमाल ज्यादातर साइबर क्रिमिनल करते हैं। बिना सिम कार्ड के इस्तेमाल के होने वाली कॉल में मोबाइल हैंडसेट की जरूरत नहीं पड़ती। सिमकार्ड का इस्तेमाल न होने से पुलिस टॉवर लोकेशन सहित अन्य जानकारी ट्रेस करने में नाकाम रह जाती है। इंटरनेट के जरिए कुछ साफ्टवेयर के जरिए वर्चुअल नंबर जनरेट करते हैं। इसका इस्तेमाल इंटरनेट कॉलिंग, व्हाट्सअप सहित अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर मैसेज भेजने में होता है। गोरखपुर में तीन साल के भीतर करीब एक दर्जन धमकियां मिली है। जिनमें इंटरनेट से आई काल को पुलिस ट्रेस करने में नाकाम रही। 2016 में मिली धमकी पर आईएनए की मदद से जांच का भरोसा तत्कालीन एसएसपी ने दिलाया था। बाद में पुलिस किसी सिरफिरे की हरकत बताकर टालने लगी। बताया जाता है कि 2007 में इसी तरह की धमकियों के बाद सीरियल ब्लास्ट की घटना सामने आई थी।

पुलिस के लिए मुसीबत, ट्रेस करने में प्रॉब्लम

शहर के अंदर क्राइम करने वाले बदमाश भी हाईटेक तरीके अपनाने लगे हैं। 21 फरवरी को शाहपुर पुलिस ने 18 मोबाइल फोन के साथ सात लोगों को अरेस्ट किया। इस गैंग के लोग राह चलते लोगों का मोबाइल फोन छीनकर ईएमआई नंबर बदल देते थे। उनकी टीम में शामिल मोबाइल मैकनिक कई दुकानों पर काम कर चुका था। इस वजह से वह ऐसे काम में माहिर हो गया था। कुछ अन्य घटनाओं में पुलिस को जानकारी मिली कि बदमाश सीधे कॉल करने के बजाय इंटरनेट कॉलिंग कर रहे हैं। यू-ट्यूब, फिल्म, वेबसीरिज और सीरियल्स के जरिए नई-नई जानकारी लेकर वारदात कर रहे हैं। पुलिस मान रही है कि कई हाईटेक हो रहे बदमाशों से निपटने के लिए साइबर एक्सपटर््स की जरूरत पड़ने लगी है।

बचाव के उपाय, आसानी से नहीं िमलता सुराग

इंटरनेट से कॉल करने पर तीन चार अंकों का फेक नंबर जनरेट होता है।

फोर रिसीव करने वाले के मोबाइल पर यही नंबर शो करता है।

इस नंबर के आधार पर कालर की सूचना जुटा पाना बेहद कठिन होता है।

सोशल मीडिया में किसी अंजान व्यक्ति को अपने साथ न जोड़े।

मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटॉप की सिक्योरिटी और प्राइवेट सेटिंग्स को अपडेट रखें।

सोशल मीडिया पर अपना नाम, पता, जन्मतिथि सहित अन्य जानकारी किसी से शेयर न करें।

सोशल मीडिया, इंटरनेट काल के जरिए किसी से बात करने पर कोई शक हो तो ब्लाक करें।

हैकिंग से बचने के लिए प्राइवेट फोटो और वीडियो मोबाइल फोन में सेव करके न रखें।

इन मामलों में नहीं मिली कोई जानकारी

23 जनवरी 2017: रेलवे स्टेशन को उड़ाने की धमकी किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को दी। चेकिंग के बाद कैंपस की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी।

अप्रैल 2016 :कैंट थाना के सामने खड़ी बस में बम विस्फोट की धमकी चौरीचौरा एसओ के सीयूजी नंबर पर दी गई।

28 मार्च 2016:इंटरनेट काल के जरिए शहर में 25 जगहों पर सीरियल ब्लास्ट की धमकी से पुलिस हलकान रही।

26 मार्च 2016: गोरखनाथ मंदिर में बम रखे होने की सूचना पुलिस को दी गई। जबकि इसके पूर्व तीन मार्च को दिल्ली से गोरखपुर आ रही फ्लाइट को उड़ाने की धमकी दी जा चुकी थी।

समय के साथ बदमाशों के काम करने के तौर-तरीके भी बदल रहे हैं। पढ़े-लिखे बदमाश टेक्नालॉजी का इस्तेमाल करके इंटरनेट कालिंग कर रहे हैं। फेक नंबर से आने वाली काल को ट्रैक कर पाना आसान नहीं होता है। कुछ मामलों में इंटरनेट काल यूज किए जाने की बात सामने आई है।

प्रवीण कुमार सिंह, सीओ क्राइम ब्रांच

पुलिस अपने पारंपरिक टेक्नालॉजी का इस्तेमाल कर रही है। व्हाट्सअप से होने वाली कालिंग को ट्रेस कर पाना काफी मुश्किल है। इंटरनेट के थ्रू होने वाली काल में डेटा का इस्तेमाल होता है। ऐसे एप्स को प्रतिबंधित किए जाने की जरूरत है। इंटरनेट के सर्विस प्रोवाइडर के लिए चेक प्वाइंट्स होने चाहिए। टेक्नालॉजी का इस्तेमाल करके अपराधी आसानी से पुलिस को चकमा दे रहे हैं।

निशांत त्रिपाठी, डिप्टी डायरेक्टर नाइलेट

Posted By: Inextlive