शहर के निचले लेवल वाले रिहायशी इलाकों में जलभराव बना दर्द

पुराने शहर समेत कई पॉश एरिया में भी घरों में घुस जाता है गंदा पानी

नालों पर अवैध निर्माण, सीवर नालों का एक कनेक्शन भी बड़ी वजह

BAREILLY: तीन महीने गर्मी के तीखे तेवर और तपिश से झुलसने के बाद भले ही देश के हर हिस्से को मानसून की आस रहती हो, लेकिन बरेली में बादलों की गरज कइयों के चेहरे पर खुशी से ज्यादा परेशानी की लकीरें उभारती है। यह चेहरे बरेली शहर के उन म्0 फीसदी से ज्यादा इलाकों के बाशिंदे हैं, जो बारिश की दुआ से ज्यादा उससे होने वाली तकलीफों से बचने की फिक्र करती हैं। यह वह इलाके हैं जहां बारिश का पानी अपने साथ गंदगी, बीमारी और परेशानियां अपने साथ बहाकर इनके घरों के अंदर ले जाने का रिवाज कई साल से बदस्तूर निभा रहा है। शहर की इस जनता को इस तकलीफ से बचाने के लिए नगर निगम के पास भी कोई ठोस उपाय नही है। नतीजन आधे शहर की जिंदगियां साल दर साल मानसून में जलभराव की तकलीफों से जूझने को मजबूर हैं।

म्0 फीसदी िनचले इलाके

नगर निगम की जद में आने वाले शहरी इलाके के म्0 फीसदी से ज्यादा सामान्य से निचले लेवल पर बसे हैं। इन इलाकों में मानसून के दौरान जलभराव की दिक्कत सबसे ज्यादा है। इनमें पुराने शहर के अलावा सिटी के कुछ पॉश इलाके भी शामिल हैं। पुराने शहर के रोहिली टोला, बाकरगंज सूफी टोला, लोधी टोला, स्वाले नगर, काजी टोला, बिहारीपुर, जसौली, जखीरा, हजियापुर समेत राजेन्द्र नगर, संजय नगर और सुभाषनगर समेत कई इलाके निचले लेवल पर होने से जलभराव की मुसीबत से हर साल जूझते हैं।

नालियां ऊपर, सड़क नीचे

पुराने शहर की बनावट और बसाहट मौजूदा शहरी मानकों पर बिल्कुल फिट नहीं बैठती। पुराने शहर के ज्यादातर हिस्सों में सड़कें या तो धंस गई हैं या उन्हें कई साल से सुधारा नहीं गया। यहां नालियों का लेवल सड़क के लेवल से नीचे होने के बजाए ऊपर है। इससे बारिश के दौरान सड़क का पानी नालियों के रास्ते बाहर निकल नहीं पाता। उल्टा नालियों का पानी सड़कों पर फैल जाता है। प्रॉपर ड्रेनेज न होने से इलाकों में जलभराव की समस्या बन जाती है, जो कई घंटों से लेकर दिनों तक बनी रहती है। गंदी चोक नालियां ऐसे हालात को और भी बदतर बनाते हैं।

नालों से जोड़े सीवर

मानसून सीजन में शहर के लिए नासूर और निगम के लिए सरदर्द बनी जलभराव की समस्या की एक बड़ी वजह कई इलाकों में नालों का सीवर से जोड़ दिया जाना है। हर साल बारिश का दौर शुरू होते ही शहर में चोक नाले पानी के फ्लो को बनाने और ड्रेनेज सिस्टम दुरुस्त रखने में नाकाम होते हैं। ऐसे में निगम कई बार ज्यादा जलभराव वाले इलाकों में समवेल लगाकर पानी की निकासी करता है, लेकिन निर्माण विभाग की लापरवाही के चलते शहर के कई इलाकों में नालों को सीवर से ही जोड़ दिया गया है। जिससे नालों पर पानी के निकासी का बोझ बढ़ जाता है और ड्रेनेज में दिक्कत होती है। निगम की समवेल मशीने भी इस बढ़े बोझ को हटाने में नाकाफी रहती हैं। जिसका खामियाजा एक बार फिर इलाके की जनता भुगतती है।

घरों में घुसता है पानी

मानसून की पहली बारिश जहां कइयों को राहत देती है तो वहीं पुराने शहर के लोगों के लिए यह आफत के बराबर है। महज डेढ़ से दो घंटे की लगातार मूसलाधार बारिश शहर के निचले इलाकों में बाढ़ का माहौल बना देती है। नालियों से सड़क और फिर दरवाजे से होते हुए घरों के अंदर तक गंदा पानी अपनी पैठ बना लेता है। सड़क से ख्-फ् फीट ऊपर घर होने के बावजूद पानी कमरों में घुस जाता है, जिससे इन इलाकों में जिंदगी ठहर जाती है। घरों की महिलाएं व बच्चे अगले कई घंटे बर्तनों से पानी को घर के बाहर निकालने की मशक्क्त में जुट जाते हैं। निगम की ओर से कोई कारगर व्यवस्था न होने से यहां हालत बदतर हो जाते हैं। पानी उतरने के बाद गंदगी, कीचड़ और बीमारियों का डर इलाके में अपना डेरा डालते हैं।

-प्रॉपर ड्रेनेज सिस्टम न होना मानसून में इस शहर की सबसे बड़ी समस्या बनता है। बेतरतीब तरीके से डेवलप की गई कॉलोनी भी परेशानी है। निचले इलाकों में पानी निकालने को समवेल पंप लगाए जाते हैं, लेकिन कई जगह यह नाकाफी है। शहर को वॉटलॉगिंग प्रूफ बनाने को कम से कम ख्000 करोड़ रुपए की जरूरत है। साथ ही पब्लिक को भी सफाई के लिए अवेयर होना होगा।

- डॉ। आईएस तोमर, मेयर

Posted By: Inextlive