Gorakhpur : पूरी सिटी में मां के जयकारे गंूज रहे हैं. ऐसे में आज हम आपको सिटी की सबसे खास दुर्गा पूजा के बारे में बताने जा रहे हैं. यहां बंगाल की पूजा जीवंत रूप में देखी जा सकती है. हम बात कर रहे हैं सिटी की सबसे पुरानी पूजा समिति स्व. रमानाथ लाहिड़ी बंगाली समिति दुर्गाबाड़ी की. हर साल की तरह इस बार भी दुर्गाबाड़ी प्रांगण में बंगाली कम्यूनिटी द्वारा दुर्गापूजा का भव्य आयोजन किया जा रहा है.

आज भी कायम है परंपरा
सिटी में लगभग 9000 बंगाली फैमिली है जो दुर्गा पूजा की प्राचीन परंपरा को आज भी निभा रही है। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या यूथ सभी का उत्साह देखते ही बनता है। महालया से शुरू होने वाली शारदीय नवरात्र विजय दशमी को मां की प्रतिमा विसर्जन के साथ संपन्न होता है। कलश स्थापना, चंडी पाठ, धुनुची डांस (एक प्रकार की आरती), संधि पूजा, भोग लगाना (डिफरेंट डिशेज), सिंदूर खेला बंगाली पूजा की खासियत होती है।
कैसे मनाई जाती है
हर साल दुर्गाबाड़ी में पूजा अर्चना करने आने वाली तिवारीपुर निवासी आरती चटर्जी ने बताया कि सैटर्डे (अष्टïमी) को पूड़ी, हलवा और फल का भोग लगाया गया है। संडे (नवमी) को पुलाव, पायस (खीर), पांच प्रकार के सब्जियों की भाजी और फल मां को चढ़ाया जाएगा। संडे को ही नौ कन्याओं का पूजन करूंगी। वहीं मंडे (दशमी) को दही, चूड़ा (दोधी कर्म) का भोग लगाया जाएगा। बंगाली महिलाएं लाल पार (बॉडर) की साड़ी और पुरुष कुर्ता और धोती पहनकर पूजा अर्चना करते हैं। उन्होंने बताया कि हालांकि अब काफी हद तक कपड़ों पर आधुनिकता हावी होती जा रही है।
धुनुची डांस है खास
बंगाली समिति दुर्गाबाड़ी में शायनकाल पूजा पंडाल में होने वाली धुनुची (धूप बत्ती लेकर) डांस खासा आकर्षण का केंद्र होता है। सैटर्डे (अष्टïमी) को भी मां दुर्गा की प्रतिमा के सामने श्रद्धालुओं ने हाथों में धुनुची लेकर ढाक (ढोलक) की ताल पर जमकर डांस किया। यदि आप भी इस पारंपरिक डांस को देखना चाहते हैं तो संडे (नवमी) को देख सकते हैं.   
सिंदूर की होली
दुर्गा पूजा पंडाल में बंगाली सुहागिन महिलाओं द्वारा सिंदूर की होली बंगाली पूजा की खास पहचान है। आरती चटर्जी बताती हैं कि जिस प्रकार पूर्ण शृंगार कर हमलोग बेटी को विदा करते हैं उसी प्रकार मां दुर्गा को भी ससुराल विदा किया जाता है। इस दौरान हम मां की गोद भराई कर पान व मिठाई खिलाते हैं। इसके बाद सुहागिन महिलाएं मां को सिंदूर लगाती हैं। मंडे (दशमी) को आपको यह सीन देखने को मिल जाएगा.   
राघव शक्ति मिलन है अनोखा
बंगाली समिति दुर्गा बाड़ी में स्थापित मां दुर्गा की एक खासियत है जो उन्हें दूसरों से एकदम अलग खड़ी कर देती है। वह खासियत है शक्ति का राघव से मिलन। मंडे (दशमी) को प्रतिमा विसर्जन की शोभा यात्रा के दौरान यह विहंगम दृश्य आपको एक बार फिर देखने को मिलेगा। मंडे को बर्डघाट रामलीला के राम रावण का वध कर बसंतपुर में आकर दुर्गाबाड़ी की मां दुर्गा की पूजा अर्चना करेंगे। मान्यता है कि लंका विजय कर जब श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के साथ लौटे थे तो सबसे पहले मां की आराधना की थी। इसी का जीवंत रूप सिटी में भी देखने को मिलता है। इसे देखने के लिए दूर दराज से लोग आते हैं। पूरे देश में ऐसा कहीं भी नहीं देखा जाता। यही कारण है कि जब तक दुर्गा बाड़ी की प्रतिमा का विसर्जन नहीं हो जाता तबतक सिटी की किसी दूसरी प्रतिमा का विसर्जन नहीं होता।  
हर साल की तरह इस साल भी बंगाली समिति शारदीय नवरात्र को उत्सव के रूप में सेलिब्रट कर रही है। सबसे प्राचीन पूजा होने के कारण यहां की पूजा की धार्मिक मान्यता बहुत अधिक है।
एमके चटर्जी, अध्यक्ष, बंगाली समिति दुर्गाबाड़ी
विसर्जन के दिन दुर्गाबाड़ी की मां दुर्गा का राघव से मिलन आकर्षण का केंद्र होता है। राघव शक्ति मिलन को दूर दराज से लोग देखने आते हैं।
डॉ। अशोक रतन बनर्जी, मेंबर, बंगाली समिति दुर्गाबाड़ी
दुर्गाबाड़ी में फैमिली और फ्रेड्स के साथ मिलकर दुर्गा पूजा सेलिब्रेट कर रहे हैं। इसके लिए हमलोग पूरे साल तैयारी करते हैं।
शरबानी चटर्जी, हाउस वाइफ
पूरे साल दुर्गा पूजा का इंतजार करती हूं। हर साल की तरह इस साल भी पूरे परिवार के लिए नए कपड़े खरीदी हूं। घर में डिफरेंट डिशेज भी बनाती हूं।
संचिता विश्वास, हाउस वाइफ

 

report by : rakesh.kumar@inext.co.in

Posted By: Inextlive