ALLAHABAD : करीब दो साल बीतने को हैं. आगे और कितना समय लगेगा? यह तो काम कराने वाले भी नहीं बता सकते. शहर की तमाम समस्याओं का समाधान बनने वाले जेएनएनयूआरएम प्रोजेक्ट के तहत हो रहे विकास कार्य ने लोगों की मुसीबतें बढ़ा दी हैं. घरों में घुस रही डस्ट लोगों को सांस का मरीज बना रही है. शुद्ध हवा में सांस लेना तो सपने जैसा हो गया है.


सांस की बीमारीहवा में तैरते धूल के महीन कण फेफड़े में पहुंचकर सांस की बीमारी पैदा कर रहे हैं। तेजी से बढ़ते अस्थमा के पेशेंट इसका जीता-जागता एग्जाम्पल हैं। डॉक्टर्स तो चेतावनी देते हैं कि साल भर यही स्थिति और रही क्र(जिसकी संभावना ज्यादा हैक्र) तो शहर में सांस की बीमारी से पीडि़तों का आंकड़ा दोगुना से अधिक तक बढ़ सकता है।जाएं तो जाएं कहां
सिटी में सीवर और पाइप लाइन बिछाने के नाम पर सड़कों की खुदाई का काम करीब दो साल पहले शुरू किया गया था। कई मुहल्लों में यह काम काफी हद तक निबट भी चुका है लेकिन खोदी गई सड़कों की मिट्टी सूख गई है। सड़कों की मरम्मत स्थाई रूप में नहीं कराए जाने के चलते इस पर बिछाया गया तारकोल कुछ ही दिनों में गायब हो गया और धूल का गुबार लोगों लोगों के लिए मुसीबत बनने लगा। इन दिनों भी सिविल लाइंस, अशोक नगर, सोहबतियाबाग, अलोपीबाग, मेडिकल कॉलेज समेत कई अन्य मुहल्लों में खुदाई का काम जारी है। खुदी हुई सड़कों पर 24 ऑवर्स धूल की घनी चादर फैली  रहती है। यहां से गुजरने वालों को न चाहते हुए भी इसका सामना करना पड़ता है। सिटी का शायद ही ऐसा कोई एरिया हो जहां धूल का गुबार ना देखने को मिले।


ये भी दिक्कतधूल से होने वाले इंटरनल इफेक्ट के अलावा एक्सटरनल नुकसान भी हो रहे हैं। घर से सज संवरकर निकलने के बावजूद कपड़े गंदे हो जाते हैं। सिर और आंखों में धूल जमा हो रही है। इतना ही नहीं इसकी वजह से स्किन प्रॉब्लम भी क्रिएट हो रही है। डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ। एके श्रीवास्तव कहते हैं कि बालों में धूल जमा हो जाने से वे गंदे हो जाते हैं और इसकी वजह से बालों के झडऩे की प्रॉब्लम भी तेजी से बढ़ रही है। हॉस्पिटल्स की ओपीडी में ऐसे पेशेंट तेजी से आ रहे हैं। अल्लापुर के रहने वाले सौरभ कहते हैं कि सुबह शैम्पू करके भी निकलने पर शाम को घर पहुंचने पर बालों की स्थिति ऐसी हो जाती है कि मन करता है नहा लूं। बाल रूखे-सूखे और बेजान लगने लगते हैं।

20 percent की बढ़ोतरी


धूल के महीन कण सांस के जरिए लोगों के फेफड़ों बैठ रहे हैं और इसकी वजह से अस्थमा जैसी खतरनाक बीमारी तेजी से फैल रही है। डॉक्टरों की मानें तो पिछले एक साल के दौरान सिटी में सांस की बीमारी के पेशेंट्स में 20 परसेंट की वृद्धि हुई है। इनमें अस्थमा, एलर्जी, रेस्पेरेटरी एलर्जी शामिल है। इसके अलावा मरीजों के उम्र का रेशियो घट रहा है। यंगस्टर्स में भी अस्थमा के अटैक के मामले बढ़ रहे हैं। धूल में शामिल पांच माइक्रॉन के छोटे कण सांस के जरिए बॉडी के रेस्पेरेटरी सिस्टम में पहुंचकर बीमारियों को जन्म दे रहे हैं। धूल के छोटे कण आसानी से बॉडी के रेस्पेरेटरी सिस्टम को इफेक्ट करते हैं। इसकी वजह से अस्थमा और एलर्जी के पेश्ेांट्स में काफी बढ़ोतरी हुई है। खासतौर से टू व्हीलर्स वालों को ज्यादा प्रॉब्लम हो रही है। बचना है तो घर से हेलमेट लगाकर निकलें। मुंह पर कपड़ा बांधने के बावजूद धूल से बचना मुश्किल है। डॉ। आशीष टंडन, चेस्ट एंड स्लीप स्पेशलिस्ट

Posted By: Inextlive