-भारी बस्ता कैंपेन के दौरान पैरेंट्स ने बयां किया अपना दर्द

-दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट के सिग्नेचर कैंपेन में लिया हिस्सा

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PRAYAGRAJ: बच्चों के नाजुक कंधों पर बस्ते के बोझ से पैरेंट्स भी खासे परेशान हैं। दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट के 'भारी बस्ता' कैंपेन के दौरान सिटी के विभिन्न स्कूलों के बाहर सिग्नेचर कैंपेन भी चलाई गई। इस दौरान कई पैरेंट्स ने सिग्नेचर करने के साथ ही मैसेज में अपना दर्द बयां किया। साथ ही यह भी कहा कि बैग के आइडियल वेट को लेकर रूल्स भले ही बने हों। लेकिन सच यह है कि इन इन रूल्स को फॉलो नहीं कराया जा रहा है।

रेगूलर हो मॉनीटरिंग

ब्वायज हाईस्कूल के बाहर कई पैरेंट्स ने रूल होने के बाद भी उसके नहीं फॉलो नहीं किया जाने पर ऑब्जेक्शन किया। इस दौरान पैरेंट्स ने कहा कि जब रूल बनाया गया है तो सरकार को इसकी मॉनीटरिंग करनी चाहिए। इसके साथ ही समय-समय पर जांच भी होनी चाहिए। इससे स्कूलों की मनमानी रोकी जा सकेगी। इस दौरान पैरेंट्स ने बताया कि स्कूल तक तो वह बच्चों का बैग अपने वाहन से लेकर आते हैं। लेकिन स्कूल गेट से क्लासरूम तक पैदल बैग लेकर जाने में उसकी गर्दन और कंधों पर बुरा असर पड़ता है। घर लौटने के बाद भी बच्चे अक्सर कंधे में दर्द की शिकायत करते हैं।

वर्जन

हकीकत में बच्चों के स्कूल बैग का वेट लगातार बढ़ता जा रहा है। स्कूल से लौटने पर बच्चे शिकायत करते हैं कि उनके कंधे में दर्द हो रहा है। ऐसे में बच्चों का मन पढ़ाई में भी कम लगता है। सरकार ने नियम तो बना दिया। उसको फॉलो कराने का कोई सिस्टम नहीं बनाया है।

-निशि अवस्थी

छोटी क्लास में ही स्कूल इतनी किताबें लेने के लिए कहते है। समझ में नहीं आता है कि बच्चा पढ़ेगा कैसे। बचपन में से ही उनका बोझ बढ़ जाता है। यह बात सरकार तक पहुंचनी चाहिए। दैनिक जागरण- आई नेक्स्ट का यह प्रयास वाकई सराहनीय है।

-नेहा श्रीवास्तव

गाइडलाइन है, लेकिन कोई फालो करें तब तो। बहुत से लोगों को तो इस गाइडलाइन के बारे में भी पता नहीं है। वैसे आपका इनीशिएटिव बहुत अच्छा है। बस सरकार नियम बनाने के बाद उसकी जांच भी करे कि नियम फॉलो हो भी रहा है या नहीं।

-एए अंसारी

बच्चों के भारी-भारी बैग देखकर काफी दुख होता है। लेकिन स्कूल की मनमानी को रोकने वाले कुछ करते ही नहीं। उम्मीद है कि इसमें सुधार होगा और आने वाले वक्त में बच्चों को इस बोझ से छुटकारा मिलेगा।

हरिओम अग्रवाल

Posted By: Inextlive