- 2005 के अपने घोषणा-पत्र में जेडीयू ने राष्ट्रीय स्तर का एकलव्य पुरस्कार देने की घोषणा की थी

- सरकार बनाने के बाद वादा नहीं निभाया गया

PATNA: एकलव्य और द्रोणाचार्य की कथा आपको मालूम होगी। द्रोणाचार्य ने जब राजकुमार नहीं होने की वजह से उसे धनुर्विधा की शिक्षा नहीं दी तो एकलव्य ने द्रोणाचार्य की मूर्ति स्थापित कर धनुर्विधा में महारथ हासिल की, लेकिन द्रोण ने अर्जुन को महान धनुर्धर बनाने के लिए एकलव्य से गुरु दक्षिणा में दायें हाथ का अंगूठा ले लिया था, तो इस तरह से एकलव्य के साथ छल हुआ। एकलव्य नहीं रहा, वह कथाओं में अमर है। लेकिन अभी तक उसे छले जाने का सिलसिला जारी है। इस बार बिहार सरकार ने उस के साथ छल किया है।

एकलव्य से कैसे हुआ फिर छल

बिहार की सत्ता पर वर्ष ख्00भ् से ही जेडीयू का राज है। हां सहयोगी बदलते रहे। जनता दल यूनाइट जब सत्ता की लड़ाई लड़ रही थी। उसी साल अक्टूबर-नवंबर ख्00भ् में चुनाव घोषणा-पत्र जारी किया। इस घोषणा पत्र में कई तरह की घोषणाएं हैं। कई पूरी भी हुईं। घोषणा-पत्र के पेज नंबर ख्फ् पर खेल के बारे में कहा गया है कि खेल के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए प्रतिवर्ष एक विशिष्ट खिलाड़ी को एक लाख रूपए का एकलव्य पुरस्कार दिया जाएगा। ये एकलव्य पुरस्कार राष्ट्रीय स्तर का होगा।

लेकिन अब तक पुरस्कार नहीं

हद है ख्00भ् से अब तक लगभग साढ़े आठ साल बीत गए पर इसे सरकार ने शुरू नहीं किया। एकलव्य लोकतंत्र का प्रतीक है कि उसने गुरू के कहने पर अंगूठा काट कर दे दिया और बिहार सरकार कैसी है सोचिए उस एकलव्य के नाम पर राजनीत कर रही है। सत्ताधीश फिर से एकलव्य के साथ छल कर रहे हैं

घोषणा पत्र का क्या होगा

जब ख्00भ् का घोषणा पत्र जेडीयू ने जारी किया उसके बाद नीतीश कुमार सीएम बने। घोषणा पत्र के मुख पृष्ठ पर ही लिखा गया- धर्मनिरपेक्षता, जाति निरपेक्षता और समतामूलक समाज के लिए, आधुनिक, विकासशील और गौरवशाली बिहार के लिए, राजद-कांग्रेस कुशासन के खात्मे और एक तरक्की पसंद सरकार के निर्माण के लिए, जनता दल यू के उम्मीदवारों को विजयी बनाएं।

नीतीश कुमार से जीतनराम मांझी तक

एकलव्य आदिवासी था। वीर था। गुरू भक्त था। अर्जुन से बड़ा धनुर्धर था। ऐसे खिलाड़ी के साथ बिहार सरकार खेल कर रही है। अब जीतनराम मांझी बिहार के सीएम हैं। सवाल ये है कि क्या जीतन राम मांझी एकलव्य के साथ हो रहे छल को बर्दास्त करते रहेंगे या न्याय दिलाएंगे। एकलव्य के साथ अन्याय करना अर्जुन का पक्ष लेना नहीं तो और क्या माना जाए। एकलव्य राजकुमार नहीं था। जंगल में रहनेवाला था।

सरकार की प्राथमिकता और उसका सामाजिक सोच बदल गया। एकलव्य पुरस्कार दीनदयाल उपाध्याय पुरस्कार हो गया। सामाजिक न्याय का साइन बोर्ड लगाकर एकलव्य के साथ छल किया गया।

-प्रेम कुमार मणि, लेखक-आलोचक व एक्स एमएलसी

Posted By: Inextlive