पूर्वोत्तर राज्य मिज़ोरम में विधानसभा की सभी 40 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं.


चुनाव में कुल 142 उम्मीदवार हैं. इनमें कांग्रेस के 40, मिज़ो डेमोक्रेटिक एलायंस (एमडीए) के 40, ज़ोरम नेशनलिस्ट पार्टी (ज़ेडएनपी) के 38, भाजपा के 17, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के दो और चार निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं.मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ), मिज़ो पीपुल्स कांफ्रेंस (एमपीसी ) और मिज़ो डेमोक्रेटिक फ्रंट (एमडीएफ़) मिज़ो डेमोक्रेटिक एलायंस (एमडीए) एकजुट होकर चुनाव लड़ रहे हैं.इस चुनाव में मुख्यमंत्री लालथनहावला और पूर्व मुख्यमंत्री पी ज़ोरमथांगा की सीटों पर सबकी नज़र होगी. ज़ोरमथांगा दो जगह से चुनाव लड़ रहे हैं.लाल थनहावला चार बार मुख्यमंत्री रहे हैं और देखना होगा कि वह पांचवीं बार जीत पाते हैं या नहीं.पिछली बार कांग्रेस ने 40 सीटों में से 32 सीटों पर जीत हासिल कर लालथनहावला के नेतृत्व में सरकार बनाई थी.ब्रू कर चुके हैं मतदान
त्रिपुरा के ब्रू शरणार्थी शिविर में आठ हज़ार लोगों ने 19, 20 और 21 नवंबर को ही पोस्टल मतदान कर दिया है.1997 में मिज़ोरम में जातीय संघर्ष के कारण रियांग समुदाय के 35,000 लोगों ने पड़ोसी राज्य त्रिपुरा में शरण ले रखी है. इन्हें ब्रू शरणार्थी भी कहा जाता है.स्थानीय पत्रकार डेज़ी वानललडिकनुमि ने बताया कि प्रदेश में किसी एक पार्टी के बहुमत पाने की संभावना नहीं है.


हालांकि  कांग्रेस अभी भी मज़बूत स्थिति में है और पार्टी का दावा है कि वो अधिकतम सीटें हासिल करेगी.कांग्रेस को एमडीए से कड़ी टक्कर मिलने की संभावना है.पिछले चुनाव में भारी मतदान हुआ था. पर्यवेक्षकों को उम्मीद है कि इस बार भी लोग भारी संख्या में मतदान के लिए निकलेंगे.नोटा का इस्तेमाल गोरखा करेंगेशांतिपूर्ण मतदान के लिए प्रदेश में पांच हजार से ज़्यादा सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया है.अल्पसंख्यक ओबीसी की मांग को लेकर  गोरखा समुदाय ने किसी भी पार्टी को मतदान न देने का ऐलान किया है.इस समुदाय के 9000 से ज़्यादा मतदाता हैं. राजनीतिक दलों की तरफ से कोई आश्वासन न मिलने के कारण इन्होंने नोटा यानी 'इनमें से कोई नहीं' का विकल्प चुनने की बात कही है.इससे लगता है कि चुनाव का माहौल थोड़ा तनावपूर्ण रहने वाला है.विकास और रोज़गारराज्य के सरकारी कर्मचारी हों या आम लोग, सबको लगता है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी अपने घोषणा पत्र पर खरी नहीं उतरी.राज्य के कई हिस्से हैं, जहां बिजली और सड़क नहीं है. दूरसंचार की सुविधा का भी अभाव है.

हालांकि राजनीतिक पार्टियां दुर्गम इलाकों में जेनरेटर से बिजली और संचार के लिए वायरलेस मुहैया कराने का वादा कर रही हैं.
लेकिन जनता राज्य के सुस्त सामाजिक-आर्थिक विकास से नाखुश है. इसीलिए बदलाव की भी हवा चल रही है.राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि यहां चुनाव में रोज़गार, विकास और बिजली प्रमुख मुद्दे बनकर उभरे हैं.

Posted By: Subhesh Sharma