कैट आईआईटी सीपीएमटी जैसे कॉम्पटीटिव एग्जाम जादू की छड़ी हिलाकर पास कराने वाले कोचिंग संस्थानों से छुटकारा कैसे मिले? इस वक्त देश का थिंक टैंक इसी सवाल से जूझ रहा है. आईआईटी जेईई में तो कोचिंग का जाल काटने के लिए बदलाव भी कर दिया गया है. आने वाले सालों में बारहवीं के अंकों को व्हेटेज मिलेगा. एंट्रेंस टेस्ट एप्टीट्यूड टेस्ट में बदल जाएगा. लेकिन कोचिंग ट्यूशन का ये जाल तो कॉम्पटीशन से बहुत पहले छात्रों को घेर लेता है. पहली-दूसरी से लेकर 12वीं तक स्कूल में कम और ट्यूशन में ज्यादा समय देता है...


- कोचिंग सेंटर्स से निजात दिलाने की कोशिश में थिंक टैंक- कॉम्पटीशन ही नहीं प्राइमरी क्लास से शुरू होता है ट्यूशन मेरठ। कुछ सालों में कोचिंग सेंटर्स के कारोबार ने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की की है। अपने शहर की बात करें तो कुछ बड़े ब्रांड्स के साथ-साथ लोकल कोचिंग सेंटर्स को मिलाकर करीब एक हजार सेंटर खुले हुए हैं। ये कोचिंग सेंटर्स मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग, मेडिकल, सीए एंट्रेंस टेस्ट की तैयारी कराते हैं। बेहतर फैकल्टी, कोर्स कंटेंट, पढ़ाने का तरीका, गेस पेपर जैसी बातें छात्रों को बताकर सेंटर तक खींचने का काम किया जाता है। किसी भी एंट्रेंस टेस्ट का रिजल्ट निकलने के बाद कमोबेश सब कोचिंग सेंटर अपने-अपने संस्थान के छात्र को टॉपर बताते हुए प्रचार करते हैं। इसी गलाकाट प्रतिस्पर्धा की वजह से कोचिंग सेंटर उद्योग सरकार के निशाने पर हैं। सिर्फ कॉम्पटीशन नहीं


सिर्फ कॉम्पटीशन ही नहीं ट्यूशन का सिलसिला बहुत पहले से शुरू होता है और बच्चे को इसकी आदत पड़ जाती है। पहली-दूसरी के बच्चे भी आजकल ट्यूशन जाते हुए दिखाई दे जाते हैं। दसवीं, 11वीं और 12 वीं के 90 से 95 प्रतिशत छात्र ट्यूशन का सहारा लेने को मजबूर हैं। करियर काउंसलर भास्कर निगम बताते हैं कि कोचिंग तो रगों में उतर गई है। इसकी वजह ये है कि पेरेंट्स के पास समय नहीं है। स्कूल के टीचर्स भी घर पर ट्यूशन ले रहे हैं। नौवीं तक बच्चे को पास कराने के लिए पेरेंट्स ट्यूशन में भेजने को मजबूर होते हैं। हालत ये है कि 80-90 प्रतिशत लाने वाला छात्र भी ट्यूशन पढ़ता है। कोर्स करिकुलम कोचिंग सेंटर्स पर रुख करने की बड़ी वजह इनकी ब्रांडिंग भी है। ब्रांडेड संस्थान का कोर्स करिकुलम कॉम्पटीटिव परीक्षा के हिसाब से डिजाइन किया जाता है। इन संस्थानों से छात्रों को पेपर का पैटर्न समझने में काफी मदद मिल जाती है। यहां पर छात्रों को पुराने वर्षों में आए पेपर्स की भी जानकारी मिल जाती है। स्टूडेंट प्रॉपर गाइडेंस के लिए इन कोचिंग सेंटर्स की तरफ खिंचे चले जाते हैं। इससे भी कहीं बड़ी वजह ये है कि एक्स आईआईटीयंस, एक्स आईआईएम स्टूडेंट्स इन कोचिंग संस्थानों को चला रहे हैं।इनमें भी एंट्रेंसबड़े ब्रांड्स में कोचिंग लेने के लिए छात्रों को एंट्रेंस देना होता है। ये एंट्रेंस टेस्ट स्टूडेंट की जांच करता है कि उसमें आईआईटी, जेईई या कैट क्रैक करने की कुव्वत भी है या नहीं। इन सेंटर्स की तरफ छात्रों को रुझान ज्यादा होता है। कुछ सेंटर कॉम्पटीशन क्रैक कराने की गारंटी तक देते हैं। रजिस्ट्रेशन नहीं

गली-मोहल्ले में खुले कोचिंग सेंटर्स का रजिस्ट्रेशन भी कहीं नहीं है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने इन संस्थानों पर नकेल कसने की कोशिश की थी। शिकायत थी कि इनकी आय का ब्योरा डिपार्टमेंट को नहीं मिलता है। न ही इनके पास से इस बाबत कोई सूचना दी जाती है। रजिस्ट्रेशन नहीं होने से सरकार इन पर नजर रखने में नाकामयाब रही है। यही वजह है कि बड़े कॉम्पटीटिव एग्जाम्स के पेपर आउट कराने की साजिश में भी इनका हाथ सामने आया है।कोचिंग हबमेरठ को एजुकेशन हब की संज्ञा दी जाती है। यहां चार यूनिवर्सिटीज के अलावा इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट, मेडिकल कॉलेजों की अच्छी-खासी संख्या है। लेकिन मेरठ को कोचिंग हब भी कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यहां बड़े ब्रांड्स के अलावा लोकल कोचिंग सेंटर्स भी हैं। इनका सालाना कारोबार करोड़ तक पहुंचता है। आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में युवा कोचिंग आते हैं।प्वाइंट टू बी नोटेड- मेरठ में करीब एक हजार ब्रांडेड- नॉन ब्रांडेड कोचिंग संस्थान- एक विषय की फीस एक हजार प्रति माह तक- सालभर कोचिंग की फीस 50 हजार रुपए तक - 11 वीं से शुरू हो जाती है कॉम्पटीटिव एग्जाम की कोचिंग

Posted By: Inextlive