माहे मोहर्रम से शुरू होता है मुस्लिम समुदाय का कैलेंडर

दशहरा और मोहर्रम साथ पड़ने से ताजिया नहीं उठाने का निर्णय लिया

ALLAHABAD: मुस्लिम समुदाय का नया साल 1438 हिजरी आज से शुरू हो रहा है। इसके साथ ही शुरू होता है माहे मुहर्रम यानी शहादत का महीना। शहादत के इसी महीने में पैगम्बर मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन, उनके परिवार और साथियों की शहादत अल्लाह के दीन की हिफाज़त करते हुए हुई थी। पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी इलाहाबाद के मुस्लिम समुदाय के लोग गंगा-जमुनी तहजीब की मिशाल कायम करेंगे। पूरे दस दिन तक इमाम हुसैन की याद में मातम करेंगे, लेकिन दसवें दिन दशहरा का मेला होने के कारण सामाजिक एकता व अखण्डता को कायम रखते हुए न ताजिया उठाएंगे और न ही जुलूस निकालेंगे। ताजिया के फूल ले जाकर कर्बला में दफन कर देंगे।

होगी मजलिस और मातम

शहादत को 1400 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन शिया और सुन्नी समुदाय अब भी उनकी शहादत को याद कर मातम करते हैं। शिया मुसलमान जगह-जगह मजलिस मातम करते हैं और सुन्नी अलम और जुलूस के जरिये गम जाहिर करते हैं। दरियाबाद, करेली, जीरो रोड और रानीमंडी में मजलिस और मातम के लिये बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं। अटाला, रसूलपुर, करेली, नखास कोना, बहादुरगंज से मेहंदी, जुलूस और अलम निकलता है। पिछले कई वर्ष से दशहरा और मुहर्रम साथ पड़ रहे हैं।

नौवीं तक निकलेंगे जुलूस

वारसी समिति के सदस्यों व पदाधिकारियों की रविवार को हुई मीटिंग में कहा गया कि पहली से नौवीं तक जुलूस, अलम, मेहंदी के जुलूस निकलेंगे। दशहरा के कारण दशवां का जुलूस नहीं निकाला जाएगा।

Posted By: Inextlive