- मेडिकल कॉलेज में कैसे पलेगा डेढ़ सौ करोड़ का हाथी

- न स्टाफ, न जांच मशीनें और न ही मूलभूत सुविधाएं

- सीरियस मरीज को देखने के लिए डॉक्टर्स का भी अभाव

Meerut: लाला लाजपत राय मैमोरियल मेडिकल कॉलेज। यहां करोड़ों रुपए लगाकर इमरजेंसी तैयार की जाती है और जांच की मशीनें लगाई जाती हैं, लेकिन इस मेडिकल कॉलेज की हालत सुधरने के बजाय बिगड़ती नजर आती है। कॉलेज में डेढ़ सौ करोड़ से इमरजेंसी तैयारी की गई। साथ में ट्रॉमा सेंटर भी तैयार तैयार किया गया। अधूरी सुविधाओं के साथ इसे चालू कर दिया गया। अब देखना है इसको मेडिकल प्रशासन कब तक सही ढंग से चलाएगा।

क्भ्0 करोड़ का हाथी

सेंट्रल गवर्नमेंट द्वारा मेडिकल कॉलेज में लेवल-टू ट्रॉमा सेंटर स्वीकृत किया गया, जिसे क्भ्0 करोड़ की लागत से तैयार किया जाना है। बिल्डिंग भी तैयार हो गई। तत्कालीन प्रिंसीपल डॉ। प्रदीप भारती ने इस ट्रॉमा सेंटर को आधी-अधूरी सुविधाओं के साथ ही शुरू कर दिया, जिसमें बीस बेड का सामान्य वार्ड की व्यवस्था की गई। पुरानी इमरजेंसी पर ताला लग गया। कॉलेज के उच्चीकरण हेतु भारत सरकार की 'प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना' के तहत अब सुपर स्पेशिलिटी डिपार्टमेंट भी तैयार किए जा रहे हैं।

यह है हालत

डेढ़ सौ करोड़ से तैयार नई बिल्डिंग की हालत वैसी ही होती जा रही है, जैसी मेडिकल कॉलेज में पुरानी बिल्डिंग की। यह ट्रॉमा सेंटर व इमरजेंसी शुरू तो कर दी गई, लेकिन यहां सुविधाओं का अभाव है। पहले मेडिकल कॉलेज में इमरजेंसी गेट से बिल्कुल पास में ही थी। जांच के लिए मरीज को परेशानी होती थी लेकिन इतनी नहीं होती थी, जितनी अब हो रही है। भटकना पहले भी पड़ता था, अब भी भटक रहे हैं। क्भ्0 करोड़ से तैयार बिल्डिंग फिलहाल प्राइवेट अस्पतालों को मात देती नजर आ रहा है, लेकिन कुछ दिन में इसकी हालत पुरानी बिल्डिंग जैसी होनी तय है।

कमियों का अंबार

लेबल टू के इस ट्रॉमा सेंटर को लेविल वन में तब्दील करने के प्रयास की मंशा कॉलेज की है, लेकिन इसकी हालत अभी से बिगड़ने लगी है। यहां पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। मरीज को पानी के लिए दूर जाना पड़ता है। सेंट्रली ऑक्सीजन नहीं है। अभी सिलेंडर से ही काम चलाया जा रहा है। सबसे बड़ी बात ये कि यहां स्टाफ नहीं है। वेंटीलेटर की व्यवस्था नहीं है। मरते हुए मरीज को बचाने के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, उसे यहां से रेफर करना ही बेहतर समझा जाता है। सीनियर डॉक्टर्स सहित काफी स्टाफ की कमी है। जिनकी जगह जूनियर और ट्रेनी संभाल रहे हैं।

अभी मशीनें भी नहीं हैं

इस टॉमा सेंटर में जांच की मशीनें भी नहीं हैं। एमआरआई, अल्ट्रा साउंड, सीटी स्कैन और एक्सरे की मशीन ही नहीं हैं। नाम इसका ट्रॉमा सेंटर रख दिया गया है। हालत ये है कि ओपीडी कराने के बाद मरीज को करीब चार सौ मीटर दूर भर्ती होने के लिए जाना पड़ेगा। सबसे बड़ी बात ये कि अभी इस ट्रॉमा सेंटर में मूलभूत सुविधाएं ही नहीं है। सीरियस मरीज को संभालना यहां आसान नहीं है। ब्लड संबंधी सभी जांचें इस ट्रॉमा सेंटर में होनी चाहिएं, जबकि ऐसा नहीं है।

शिफ्टिंग की व्यवस्था नहीं

यहां क्लास वन से लेकर क्लास थर्ड तक के सभी कर्मचारियों की आवश्यकता है। सबसे बड़ी बात ये कि यहां से मरीज को आईएसयू में शिफ्ट करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं हैं। माना जा रहा है कि जिस तरह करोड़ों रुपए के पुराने वार्ड बंद पड़े हैं, उसी तरह यह भी कुछ दिन में पुराने ढर्रे पर आ जाएगा। यहां आने वाले मरीज को जांच के लिए भी पुरानी बिल्डिंग में करीब ब्00 मीटर पर जाना पड़ता है। अल्ट्रा साउंड, एक्सरे की व्यवस्था अभी पुरानी जगह पर है। ऐसे में मरीज को ले जाने की व्यवस्था बिल्कुल नहीं है। पहले भी स्ट्रेचर को तीमारदार खींचते थे अब भी वही खींच रहे हैं।

बिना मास्क के इलाज

तत्कालीन प्रिंसीपल डॉ। प्रदीप भारती ने कन्वोकेशन के दौरान इस ट्रॉमा सेंटर का गुणगान किया था, जिसमें सुपर स्पेशिलिटी की व्यवस्था के बारे में बताया गया था। साथ ही उन्होंने स्टाफ की कमी भी दर्शाई थी। ऐसे में अब देखा जाए तो इस इमरजेंसी और ट्रॉमा सेंटर की हालत अभी पूर्ण सही नहीं है। जहां मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टर और स्टाफ के पास सुरक्षा कवच नहीं हैं। स्वाइन फ्लू के कहर के बाद भी स्टाफ को एन 9भ् मास्क नहीं दिए गए हैं। काम करने वाली नर्से और डॉक्टर मास्क के बिना ही इलाज कर रहे हैं, जबकि कुछ दिन पहले जूनियर डॉक्टर्स ने मास्क के लिए काली पट्टी बांधकर विरोध जताया था।

वर्जन

अभी इसे पूरी तरह से हैंडओवर नही किया गया है। फ‌र्स्ट और सेकंड फ्लोर की तैयारी चल रही है। काफी काम लंबित है। इसको केवल शुरू ही कर दिया गया है, लेकिन काफी काम बाकी है।

- डॉ। केके गुप्ता

प्रिंसिपल मेडिकल कॉलेज

Posted By: Inextlive