शहर के अंदर होने वाली फायरिंग की घटनाओं में भूतों का हाथ होता है. गोली चलाकर भूत गायब हो जाते हैं.

- शहर की दो घटनाओं में पुलिस को नहीं मिले सुराग

- साजिश रचने वालों को बेनकाब करने में नाकाम पुलिस

Gorakhpur@inext.co.in
GORAKHPUR: शहर के अंदर होने वाली फायरिंग की घटनाओं में भूतों का हाथ होता है। गोली चलाकर भूत गायब हो जाते हैं। इसलिए पुलिस उनको पकड़ नहीं पाती है। मुकदमा दर्ज कर पुलिस अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेती है। जबकि, हमलावरों का पता नहीं लगता। फायरिंग की सनसनीखेज घटनाओं से पब्लिक भले दहशत में रहे। लेकिन पुलिस इनको भूल जाती है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि फायरिंग की घटनाओं में शामिल बदमाशों की तलाश चल रही है। सवाल उठता है कि आखिर यह तलाश कब तक पूरी हो सकेगी।

केस एक:
3 सितंबर 2018:
कैंट एरिया के बेतियाहाता, जजेज कंपाउंड के पास रोड छात्र नेता के वाहन पर बदमाशों ने गोली दागी। आधी रात को बाइक सवार दो बदमाश फायरिंग कर आराम से फरार हो गए। सूचना मिलने पर पुलिस महकमा जम गया। लेकिन चार दिन बाद इस घटना में किसी हमलावर का कोई सुराग नहीं मिता। जबकि, छात्र नेता ने दो अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज कराया था। जांच पड़ताल के बाद पुलिस इस मामले को ठंडे बस्ते में डालने की तैयारी में जुटी है।

केस दो:
10 जून 2018:
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के ऑक्सीजन कांड से चर्चा में आए डॉ। कफील खान के छोटे भाई कासिफ जमील पर बदमाशों ने हमला किया। कोतवाली एरिया में स्कूटी सवार बदमाशों ने गोरखनाथ से अकेले लौट रहे कासिफ पर हमला किया। रात में हुई घटना की सूचना पर दो-तीन हफ्ते तक पुलिस भागदौड़ करती रही। बाद में इस मामले में राजनीति शुरू होने पर पुलिस ने जांच की दिशा बदल दी। हमले के बाद तत्काल पुलिस को सूचना देने के बजाय कासिफ खुद गाड़ी चलाकर उपचार कराने नर्सिग होम पहुंच गया था। इसलिए पुलिस ने घटना पर संदेह जताया।

कौन चलाता है गोलियां, क्यों नहीं पकड़ पाती पुलिस
शहर के अंदर हुई इन सनसनीखेज घटनाओं में पुलिस खाली हाथ रही है। यूनिवर्सिटी के छात्र नेता पर हमले में चार दिन बाद भी पुलिस कोई सुराग नहीं लगा सकी है। पुलिस के ऐसा कोई सुराग नहीं, जिसके आधार पर हमलावरों तक पहुंचा जा सके। आधी रात के बाद छात्र नेता के वाहन पर पीछे की तरफ गोली दागने की घटना पुलिस के लिए पहेली बन गई है। वाहन के आगे की सीट पर दोस्त संग बैठे छात्र नेता पर सीधे सामने से गोली दागने के बजाय बदमाशों ने पीछे जाकर हमला किया। मौके पर खोखा, गोलियों के निशान से मिलने से पुलिस ने फायरिंग की तस्दीक की। लेकिन इस घटना को तरह-तरह के सवाल उठाती रही। छात्रनेता की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। विवाद की संभावना में एक छात्रनेता के परिजनों को कैंट थाना पर बैठाकर घंटों पूछताछ की गई। बावजूद इसके कोई नतीजा सामने नहीं आ सका। छात्रनेता के हमलावरों का सुराग नहीं लगने से पुलिस पूरी घटना को संदेह के नजरिए से देख रही है। उधर, जून में डॉक्टर कफील के भाई पर हुए हमले में पुलिस को अभी तक कोई सबूत नहीं मिला है। पुलिस की अलग-अलग टीमें कई बार जांच पड़ताल कर चुकी हैं। लेकिन इस बात का अंदाजा नहीं लग सका कि आखिर किसने गोली दागी थी। पुलिस का कहना है कि कासिफ का कई लोगों से प्रापर्टी का विवाद चल रहा था।

फायरिंग से दहशत में पब्लिक, पुलिस को नहीं मिले सुराग
यह दो घटनाएं यह बताने के लिए काफी है कि शहर के भीतर जब चाहे बदमाश फायरिंग करके दहशत फैला देते हैं। घटनाएं होने पर पब्लिक परेशान हो जाती है। रात में सूनी सड़कों पर निकलने से लोग डरने लगते हैं। घटनाओं को फर्जी मानकर पुलिस भले फाइल क्लोज करने की तैयारी कर ले। लेकिन कोई न कोई तो गोली चलाता ही है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर गोली चलाने वालों को बेनकाब करने से पुलिस क्यों बचती रहती है। डॉक्टर कफील के भाई के हमलावर अभी तक नहीं पकड़े नहीं गए हैं। इसलिए सबके जेहन में यह सवाल उठना लाजिमी है इसके पीछे किसका हाथ रहा है। जबकि, छात्र नेता पर हमले का मामला बिल्कुल ताजा है। इस मामले में किसी बदमाश ने छात्र नेता पर गोली तो चलाई होगी। वाहन पर गोली दागने वाले को पकड़कर पुलिस पूरे मामले से परदा उठा सकती है। फायरिंग करने वाले बदमाशों की गिरफ्तारी से ऐसी घटनाओं पर रोक लगाई जा सकती है। दूसरी ओर यदि खुद कोई साजिश रचकर पुलिस को परेशान करता है। फायरिंग कर पब्लिक में दहशत फैलाता है तो उसके खिलाफ भी मुकदमा दर्ज कर एक्शन लिया जाना चाहिए।

Posted By: Inextlive