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LUCKNOW: फेक न्यूज को लेकर बीबीसी के एक नए रिसर्च में सामने आया है कि लोग राष्ट्र निर्माण की भावना से राष्ट्रवादी संदेशों वाले फेक न्यूज को साझा कर रहे हैं। बीबीसी द्वारा तीन देशों भारत, कीनिया और नाईजीरिया में की गयी रिसर्च के बाद अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें बताया गया कि इनक्रिप्टड मैसेजिंग एप से लोग किस तरह फेक संदेशों को फैला रहे हैं। बीबीसी के लिए ये विश्लेषण करना तब संभव हुआ जब मोबाइल यूजर्स ने बीबीसी को अपने फोन का एक्सेस दिया। लखनऊ यूनिवर्सिटी के मालवीय सभागार में इस बाबत आयोजित संवाद कार्यक्रम में डिप्टी सीएम डॉ। दिनेश शर्मा, पूर्व सीएम अखिलेश यादव, डीजीपी ओपी सिंह समेत तमाम लोगों ने शिरकत की।

रिपोर्ट की मुख्य बातें
बीबीसी की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में लोग उस तरह के संदेशों को शेयर करने में झिझक महसूस करते हैं जो उनके मुताबिक हिंसा पैदा कर सकते हैं लेकिन यही लोग राष्ट्रवादी संदेशों को शेयर करना अपना कर्तव्य समझते हैं। खासतौर पर देश की प्रगति, हिंदू शक्ति और हिंदुओं की खोई प्रतिष्ठा की दोबारा बहाली से जुड़े संदेश तथ्यों की जांच किए बिना बड़ी संख्या में शेयर किए जा रहे हैं। ट्विटर पर मौजूद नेटवर्को के डेटा एनालिसिस से बीबीसी को ये जानकारी मिली है कि भारत में वामपंथी झुकाव वाले फेक न्यूज के स्त्रोत आपस में उस तरह नहीं जुड़े हुए हैं, जिस तरह दक्षिणपंथी झुकाव वाले फेक न्यूज के स्त्रोत में तालमेल है। हालांकि तीनों देशों में यह समानता है कि आम लोग अनजाने में ये उम्मीद करते हुए संदेशों को आगे बढ़ाते हैं कि उन खबरों की सत्यता की जांच कोई और कर लेगा।

रिसर्च में आए निष्कर्ष
नाइजीरिया और कीनिया में फेसबुक यूजर समाचार के फर्जी और सच्चे स्त्रोतों का बराबर ही इस्तेमाल करते हैं और इस बात की ज्यादा परवाह नहीं करते कि कौन सा स्त्रोत भरोसेमंद है और कौन सा फर्जी। शोध दिखाता है कि भारत में एक बार फिर मामला अलग है। रिसर्च में ये भी पता चला कि जिन लोगों की रुचि फेक न्यूज के जाने-पहचाने स्त्रोतों में है, उनकी राजनीति और राजनीतिक दलों में भी ज्यादा दिलचस्पी होती है। रिसर्च से यह भी पता चलता है कि लेखों की तुलना में तस्वीरों और मीम्स के जरिए बड़ी संख्या में फेक न्यूज शेयर किए जाते हैं।

सोशल मीडिया पर काबू नहीं
कार्यक्रम में डिप्टी सीएम डॉ। दिनेश शर्मा ने कहा कि पहले न्यूज ब्रेक करने की प्रतिद्वंद्विता के कारण चैनलों के प्रति विश्वसनीयता का भाव घटा है। हालांकि इसका यह तात्पर्य यह नहीं है कि सभी फेक न्यूज फैला रहे हैं। फेक न्यूज से निपटने के लिए सरकार के पास कानून बनाने का विकल्प है हालांकि ऐसा करने पर मीडिया की आजादी को लेकर सवाल उठ सकते हैं। आज के दौर में सोशल मीडिया ने बाकी माध्यमों को पीछे छोड़ दिया है और इस पर किसी का कोई काबू भी नहीं है। फेक न्यूज के एक उदाहरण के साथ उन्होंने आश्वासन दिया कि सरकार इस दिशा में काम करेगी ताकि इसका असर कम से कम हो।

देशविरोधी काम कर रहे
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि फेक न्यूज को बढ़ावा देने वाले राष्ट्रवादी बनते हैं, लेकिन वे देश विरोधी काम कर रहे हैं। सत्ता से लाभ लेने के लिए पढ़े-लिखे लोग भी इसमें शामिल हो जाते हैं। अब तो फेक न्यूज के साथ 'फेंकू' शब्द भी बन गया। कहा कि आज के दौर में झूठ फैलाने का भी रोजगार हो गया है। जो लोग समाज में नफरत फैला रहे हैं उनको बड़े लोग फॉलो कर रहे हैं। बंद कमरों में उन्हें सम्मान मिलता है। चुनाव आने वाले है इसलिए अभी और झूठ आएगा। तकनीक का दुरुपयोग रोका जाना चाहिए। जागरूक समाज की जिम्मेदारी है कि अगर लगे कि फेक न्यूज है तो उसे बढ़ावा नहीं देना चाहिए।

स्रोत की पहचान जरूरी
डीजीपी ओपी सिंह ने कहा कि फेक न्यूज से निपटने के लिए जरूरी है कि उनकी शीघ्रता से पहचान की जाए। न्यूज आइटम, इमेज, वीडियो का स्रोत ट्रेस किया जाए। यूपी पुलिस डिजिटल वॉलंटियर्स के माध्यम से यह कार्य कर रही है। सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहों पर रोक लगाने के लिए यह योजना शुरू की गयी है। इसके तहत प्रदेश के प्रत्येक थानों में 250 डिजिटल वालंटियर बनाये जाने का लक्ष्य रखा गया था। इससे अफवाहों का शीघ्रता से खंडन किया जा सकता है। अब तक दो लाख से अधिक व्यक्तियों को वाट्सएप के माध्यम से यूपी पुलिस से जोड़ा जा चुका है।

Posted By: Inextlive