1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों ने सौ लोगों को इस पेड़ पर दी थी फांसी

तब से फांसी इमली के नाम से है प्रसिद्ध है कई साल पुराना पेड़

PRAYAGRAJ: आजादी के दीवानों का सिर कुचलने के लिए अंग्रेजों ने क्रूरता की हदें पार कर दी थी. इसी क्रूरता का जीता जागता गवाह है जीटी रोड स्थित फांसी इमली का पेड़. सैकड़ों साल पुराने इस पेड़ की अपनी कहानी है. बताया जाता है कि अंग्रेज इस पेड़ का इस्तेमाल क्रांतिकारियों के बीच डर फैलाने के लिए करते थे. जिन क्रांतिकारियों पर अभियोग नही चलाया जा सकता था उन्हें इस पेड से लटका दिया जाता था. 1857 की लडाई में सौ लोगों को इस पेड़ से फांसी दी गई थी तब से इसका नाम फांसी इमली पड़ गया है.

दिक्कत पैदा करता था दोआबा का क्षेत्र

आजादी आंदोलन के समय यह इलाहाबाद दोआबा क्षेत्र माना जाता था. इसी के चलते यह क्षेत्र अंगे्रजों को पसंद नही था. लियाकत अली महंगांव के रहने वाले थे. कहा जाता है कि उनको और उनके सहयोगियों को भी इस पेड से लटका दिया गया था. इसके अलावा जोधा सिंह नाम के क्रांतिकारी को भी इस पेड़ पर फांसी दी गई थी.

पेड़ देखने आए थे प्रथम प्रधानमंत्री

ऐतिहासिक पेड़ को देखने एक बार देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी आए थे. आजादी के बाद कई अधिकारियों ने इस पेड़ का दौरा किया और वादे भी किए लेकिन कोई हल नही निकला. फार्म बेचने वाले बृजेश धर द्विवेदी और रामजी सिंह का भला हो जिन्होंने पेड़ की ऐतिहासिकता और इतिहास को संजोने के लिए मिलकर जड़ों को घेरकर चबूतरा बना दिया. भारत माता, शहीद भगत सिंह आदि की मूर्तियां भी रखवाई. ऐतिहासिक स्थल के पुनरुद्धार की योजना बनी लेकिन वह फाइलों में कैद है.

ध्यान खींचता है टीन का बोर्ड

जीटी रोड पर महिला ग्राम इंटर कॉलेज के समीप स्थित इस इमली के पेड़ के बगल में लगा टीन का बोर्ड अनायास लोगों का ध्यान अपनी ओर खीच लेता है. यह चबूतरा अब फेरी लगाने वालों के लिए फिक्स स्पॉट बन चुका है. इतिहासकार विधि प्रताप सिंह कहते हैं कि फांसी इमली के पेड़ पर लटकाए गए लोगों के बारे में भी कुछ किताबों में लिखा गया है. हमें इस शहीद स्थल को खास इज्जत प्रदान करनी चाहिए.

Posted By: Vijay Pandey