- नवरात्र के दौरान भले ही पूजी जा रही हो नारी शक्ति लेकिन शहर में नारी शक्ति को पढ़ा लिखाकर आगे बढ़ाने में पीछे हैं लोग

- सेंसस के मुताबिक बनारस में पुरुषों के मुकाबले काफी कम है महिलाओं का लिट्रेसी रेट

VARANASI:

केस-क्

पाण्डेयपुर की रहने वाली कविता तीन बहनों में दूसरे नंबर पर है। पिता की मौत के बाद मां ने बड़ी बेटी को तो सिलाई कढ़ाई करके पढ़ाया लेकिन बाकी बेटियों के लिए पढ़ने का संकट था लेकिन कविता ने हार न मानी। उसने एक ब्यूटी पॉर्लर में जॉब करनी शुरू की और आज वह तो बीए में पढ़ रही रही है साथ में अपनी छोटी बहन को भी पढ़ा रही है।

केस-ख्

विद्यापीठ में बीए सेकेंड ईयर की स्टूडेंट मिली के घर की माली हालत बहुत अच्छी नहीं है। इस वजह से परिवार ने पहले तो उसकी पढ़ाई रोकी लेकिन फिर मिली की पढ़ने की इच्छा को देखते हुए उसकी पढ़ाई फिर से शुरू कर दी। इसी पढ़ाई की बदौलत मिली ने एक प्राइवेट कम्पनी में नौकरी भी कर ली और आज घर के खर्च को चलाने और पढ़ाई को कॉन्टीन्यू करने का काम मिली ही कर रही है।

दो केस ये बताने के लिए काफी हैं कि बेटियों की पढ़ाई बहुत जरूरी है। क्योंकि जब बेटी पढ़ती है तो पूरा परिवार शिक्षित होता है। ऐसे बहुत से घर हैं जहां बेटियों ने पढ़ाई कर अपने परिवार के दुखों का अंत किया लेकिन दुख इस बात का है कि आज भी बेटियों को एजुकेशन देने के नाम पर लोग पीछे हैं। हम अपने ही शहर की बात करे तो बीते कुछ सालों में यहां पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के लिट्रेसी रेट में बढ़ोत्तरी तो हुई है लेकिन ये बढ़ोत्तरी अबभी पुरुषों की संख्या में काफी कम है।

नहीं भेजना चाहते स्कूल

सुनने में भले ही खराब लगे लेकिन यही सच है कि आज भी अपने बनारस में फ्0 परसेंट से ज्यादा महिलाएं अशिक्षित हैं। ये हाल तब है जब आज महिलाएं हर क्षेत्र में बुलंदी की ऊंचाईयों को छू रही हैं। इसके बाद भी बनारस में महिलाओं का एजुकेशन लेवल उठने का नाम नहीं ले रहा है। ख्00क् की जनगणना के मुताबिक बनारस में उस वक्त पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का लिट्रेसी रेट काफी कम था। मेल लिट्रेसी रेट उस वक्त 77.87 परसेंट था जबकि फीमेल लिट्रेसी रेट महज भ्फ्.0भ् परसेंट था। हालांकि ख्0क्क् में हुई जनगणना के मुताबिक इस रेट में बढ़ोत्तरी दर्ज हुई और पुरुषों का लिट्रेसी रेट बढ़कर 8फ्.78 परसेंट और फीमेल लिट्रेसी रेट म्म्.म्9 परसेंट हो गया।

Posted By: Inextlive