इस 26 जनवरी को भारत अपना 69वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। दिन जब देश को अपना संविधान मिला व गणतंत्र बना। इस संविधान को बनाने में महिलाओं का भी अहम योगदान रहा है। कम ही लोग जानते हैं कि 15 महिलाएं भारत की संविधान सभा की सदस्‍य थीं। जिन्‍होंने संविधान निर्माण में अहम भूमिका निभाई। इनका योगदान देश भले ही याद रखेगा लेकिन ज्‍यादातर लोगों को उनका नाम भी नहीं पता है। आइए उन महिलाओं व उनके योगदान को याद करते हैं।


महिलाएं जो भारत की संविधान सभा की सदस्य रहीं दुर्गाबाई देशमुख, राजकुमारी अमृत कौर, हंसा मेहता, बेगम ऐजाज रसूल, अम्मू स्वामीनाथन, सुचेता कृपलानी, दकश्यानी वेलयुद्धन, रेनुका रे, पुर्निमा बनर्जी, एनी मसकैरिनी, कमला चौधरी, लीला रॉय, मालती चौधरी, सरोजिनी नायडू व विजयलक्ष्मी पंडित। आइये इनमें में से कुछ के भारत के स्वतंत्रता आंदोलन व उसके बाद दिए गए योगदान के बारे में जानते हैं। राजकुमारी अमृत कौर
राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फरवरी 1889 में तत्कालीन संयुक्त प्रांत व वर्तमान उत्तर प्रदेश के शहर लखनऊ में हुआ था। स्वतंत्रता की लडा़ई में इनका अहम योगदान रहा है। आजादी के बाद ये प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की कैबीनेट में देश की पहली महिला कैबिनेट मिनिस्टर बनीं। उन्हें हेल्थ मिनिस्टर बनाया गया। वह संविधान सभा की सलाहकार समिति व मौलिक अधिकारों की उप समिति की सदस्य थीं। सभा में वह सेंट्रल प्राविंस व बेरार की प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुई थीं। हंसा मेहता


हंसा मेहता समाज सेविका व स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही कवयित्री व लेखिका भी थीं। वह 1946 में ऑल इंडिया वुमन कांफ्रेंस की अध्यक्ष भी रहीं थीं। वह संविधान सभा की मौलिक अधिकारों की उप समिति की सदस्य थीं। उन्हें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा में 'ऑल मेन आर बॉर्न फ्री एंड इक्वल' को बदलकर 'ऑल ह्यूमन बीइंग आर बॉर्न फ्री एंड इक्वल' करवाने के अभियान के लिए भी जाना जाता है। संविधान सभा में वह मुंबई के प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुई थीं। अम्मू स्वामीनाथन अम्मू स्वामीनाथन एक सामाजिक कार्यकर्ता, स्वंत्रता संग्राम सेनानी और राजनीतिज्ञ थीं। इनका जन्म 1894 में केरल के पल्लकड़ जिले में हुआ था। इनका विवाह बहुत कम उम्र में डॉक्टर सुब्रम्मा स्वामीनाथन के साथ हो गया। संविधान सभा में ये मद्रास की प्रतिनिधि थीं। वह महात्मा गांधा के नक्शेकदम पर चलना चाहती थीं, इसलिए आजादी की लडा़ई में भाग लिया। इनके मुताबिक संविधान ऐसा होना चाहिए था जो आम आदमी की जेब में आराम से समा सके। उन्हें आजाद हिंद फौज की सदस्य कैप्टन लक्ष्मी सहगल की मां के तौर पर भी जाना जाता है।

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari