सोशल मीडिया पर राजनीतिक टिप्पणियों के लिए सामाजिक कार्यकर्ता पत्रकार और शोध छात्रा शीबा असलम फ़हमी के ख़िलाफ़ दिल्ली के जामा मस्जिद नगर थाने में एफ़आईआर दर्ज की गई है.


दिल्ली की तीस हज़ारी कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करने के दौरान शीबा फ़हमी की फेसबुक टिप्पणियों को संज्ञान में लेते हुए दिल्ली पुलिस को शीबा के ख़िलाफ भारतीय दंड संहिता की धाराओं 153ए, 153 बी और 295ए के तहत मामला दर्ज करने का आदेश दिया है.दिल्ली पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज करने की बात तो स्वीकार की लेकिन अधिक विवरण देने से इनकार कर दिया.अदालत ने अपने फ़ैसले में शीबा असलम फ़हमी की गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में फ़ेसबुक पर की गई पोस्ट का ज़िक्र किया. शीबा ने अपनी टिप्पणियों में नरेंद्र मोदी को गुजरात में साल 2002 में हुए दंगों और निर्दोष मुसलमानों की मौत का ज़िम्मेदार बताया है.शीबा का पक्ष


शीबा कहती हैं, "मैं अपनी फ़ेसबुक पोस्ट बहुत ही सावधानी से करती हूँ. मैं पढ़ी लिखी इंसान हूँ, सतर्क रहती हूँ और जानती हूँ कि देश के क़ानूनी ढांचे के अंदर रहते हुए ही देश को सुधारा जा सकता है. इस ढांचे को चुनौती देकर बदलाव नहीं लाया जा सकता. मैंने कभी भी राष्ट्रहित के ख़िलाफ़ कभी कुछ नहीं लिखा है लेकिन जिन लोगों के लिए मोदीहित ही राष्ट्रहित है उनका कुछ नहीं किया जा सकता."

शीबा का मानना है कि मोदी के ख़िलाफ़ लिखी गई टिप्पणियों का ही फ़ैसले में उल्लेख किया गया है. वे कहती हैं, "कांग्रेस पार्टी, मुलायम सिंह यादव या अन्य मुद्दों पर की गई पोस्टों का संज्ञान नहीं लिया गया. सिर्फ़ मोदी पर लिखी गई पोस्ट का ही संज्ञान लिया गया है."क्या है मामलाशीबा की फ़ेसबुक टिप्पणियों से नाराज़ होकर पंकज कुमार द्विवेदी ने उन्हें ईमेल लिखकर कहा कि वे या तो लिखना बंद करे वरना अंजाम भुगतने को तैयार रहें.शीबा ने दिल्ली पुलिस में शिकायत की जिस पर पुलिस ने सूचना प्राद्योगिकी क़ानून की धारा 66ए के तहत मामला दर्ज कर अदालत में चार्जशीट दाखिल की.अक्टूबर 2013 में अदालत ने आरोपी को बरी करते हुए शीबा के ख़िलाफ आईपीसी की धाराओं 153ए, 153बी और 295ए के तहत मामला दर्ज करने का आदेश दिया.दिल्ली पुलिस ने शीबा के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की.शीबा पर गिरफ़्तारी की तलवार लटक रही है. फ़िलहाल वे गिरफ़्तारी रोकने के लिए ज़मानत लेने की तैयारी कर रही हैं.

शीबा कहती हैं, "मुज़फ़्फ़रनगर का दंगा सोशल मीडिया के ज़रिए फ़र्ज़ी वीडियो प्रसारित करके फैलाया गया. इसमें क़ानून बनाने वाले एक विधायक की संलिप्तता सामने आ रही है. जो बड़े लोग राजनीतिक फ़ायदों के लिए सोशल मीडिया के ज़रिए माहौल ख़राब कर रहे हैं और जो लोग संगठित तरीके से सोशल मीडिया का इस्तेमाल चुनाव जीतने, सामाजिक द्वेष फैलाने और ऐतिहासिक तथ्यों को झूठा साबित करने के लिए कर रहे हैं उस पर कोई बात नहीं कर रहे है लेकिन आम आदमी अगर सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहा है तो उसे मुद्दा बनाया जा रहा है."पुराना मामलापवन दुग्गल कहते हैं, "अप्रैल 2011 से भारत में नया सूचना प्राद्योगिकी क़ानून लागू हो गया है जिसके तहत सोशल मीडिया वेबसाइटों, इंटरनेट सर्विस प्रदाताओं और अन्य वेबसाइटों की ज़िम्मेदारी है कि उनके प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल सांप्रदायिक द्वेष, दहशत या शत्रुता फ़ैलाने के लिए न किया जाए और यदि फिर भी कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसके ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया जा सकता है."कड़ा कानूनशीबा असलम फ़हमी के ख़िलाफ़ दर्ज़ हुए मामले का सोशल मीडिया पर विरोध भी शुरु हो गया है. शीबा के समर्थन में इंडिया टुडे के प्रबंध संपादक दिलीप मंडल फ़ेसबुक पर लिखते हैं,"शीबा को चुप कराने की कोशिश में इमाम बुखारी और नरेंद्र मोदी समर्थकों में अद्भुत एकजुटता है. इमाम बुखारी के समर्थक घर पर हमला करते हैं और मोदी समर्थक कानूनी हमला करते हैं. दोनों तरह की सांप्रदायिकता एक दूसरे की पूरक है"
स्वतंत्र पत्रकार फ्रेंक हुज़ूर ने फ़ेसबुक पर पोस्ट किया, "शीबा असलम के साथ एकजुटता में...असंतोष की आवाज़ों को कुचलने के लिए नागरिक संस्थाओं का इस्तेमाल कर रहे फांसीवादी और दक्षिणपंथियों के खिलाफ़ आवाज़ उठाएं."

Posted By: Subhesh Sharma