जीवन और संगीत हमेशा हाथों में हाथ डाल कर चले हैं. जहां जहां जीवन है वहां संगीत स्वाभाविक रूप से मौजूद रहा है. अगर बात की जाए भारतीय जीवन शैली की तो यहां तो सुर साधे बिना रोजमर्रा के कामकाज की भी कल्पना नहीं की जा सकती. आज के यंगस्टर्स भी म्यूजिक की इस सोल से अपने आप को कनेक्टेड फील करते हैं. यही वजह है कि जब रॉकस्टाकर में सूफी सांग फायाकुन बजता है तो वह इसके साथ पूरी तौर पर जुड़ जाते हैं बेशक वह नहीं जानते कि यह गीत की कौन सी किस्म है.


बच्चे के जन्म से पहले ही उसका नाता संगीत से जुड़ जाता है। जब उसके आगमन पहले बधाई गायी जाने लगती है और गोद भराई की रस्म में महिलाएं सोहर गा कर होने वाले बच्चे और उसकी मां को बधाई देती हैं और ध्यान देने वाली बातों को समझाती हैं.  जो गीत युवा मानस में बचपन में समा जानते हैं उनसे ही रुबरु होने का लम्हा है फोक सांग्स को सुनना। चलिए चलते हैं लोकगीतों के बहुरंगी संसार में।


हमारे यहां जन्मं से मृत्यु तक 16 संस्कार होते हैं और हर संस्कार के साथ जुड़े लोकगीत प्रेगनेंसी में लेडीज की डिमांडस जिन्हें दोहदें भी कहते हैं उन पर बने गीतों से लेकर आई आई नंद जू कि पौरि बधाई लायी मालनिया, और कब से उठाय लियाई सगुना ननदी कब से उठाय लियाई सगुना, जब से भौजी तुम गरभ जनाओ तब से उठाय लियाई सगुना. जैसे बधाई और सोहर तक हर रंग लोकगीत में होता है हम जन्म से भी पहले जानते हैं लोक उल्लास को।

शादी ब्याह की तो हर रस्म। ही लोकगीतों के जरिए आगे बढ़ती है। विवाह की रौनक को कई गुना बढ़ा देते हैं यह लोकगीत। रिश्ता जुड़ने के से लेकर एक एक कदम पर कई लोकगीत बने हैं जिन्हें परिवार की महिलाएं गा गा कर रस्में निभाती हैं। इनमें रीति रिवाजों की जानकारी तो है ही भावनाओं और हंसी मजाक की पूरी खुराक शामिल होती है.  एक ओर घर से विदा होने वाली बेटी अपने पिता से सवाल कर रही है काहें बिनु सून अंगनवा हे बाबा,काहे बिनु लखराव हो। तो दूसरी ओर दुलहन लेने जा रहे बेटे से कहा जा रहा होता है तू त चलेउ पूता गौरी बिहाअन दुधवा कै मोल कइ लेहु रे आप के जीवन के संस्कार ही नहीं कार्य कलापों का हिसाब किताब लोक गीतो का विषय होता है। स्नान, पूजा,  खान पान और रोजमर्रा के काम सब लोकगीतों में शामिल हैं। महिलाओं के घर के काम मसाला, अनाज का धोना, सुखाना, काटना, पीसना, कूटना सब इन गीतों की लय पर होता है.  चक्की  चलाते हुए औरते अक्सर गाती थीं बाबा काहे के लगवल बगइला काहे के फुलवरिया लगवल ऐ राम फिल्मी बंदनी में भी नूतन पर पिक्चाराइज किया गया सांग अबके बरस मेरे भइया को भेजो भी काम करते हुए गाए जाने वाला विरहा गीत का परफेक्ट एग्जांपल है।

दूसरी तरफ पुरुष खेतों पर काम करें या अब फैक्ट्रिंयों में हर मौके के लिए उन के पास लोक गीतों के भंडार हैं। फसल बोनी हो, उसकी देखभाल करनी हो, निराई, गुड़ाई या खेतों में हल चलाना हो, पानी देने के लिए रहट चलाना हो या आज कल फैक्ट्रीक में काम करते हुए मशीन चालू करनी हो, नयी मशीन लगानी हो या विश्व़कर्मा की पूजा करनी हो हर वक्त के लिए लोक गीतों की लंबी श्रंखला मौजूद है.  जैसे दुखवा की गोठरी उठाय परमेश्वरी, लेइ चलु धोबिया के दुआर। आधा दुखवा उहइ धोबी मटिआवइ , अधवा में सब संसार।आप खुश हैं तो लोकगीत गुनगुनाइए, प्रिय के साथ हों तो गाइए, दुखी हों या प्रेमी से दूर हों तो विरह में गाइए। मेले में हों या अकेले में कहीं ठहरे हैं या  सफर में हैं धइ देत्यो हमारे मन धीरजा सबके महलिया रामा दियना,हरि लेत्यो हमरों अंधेर, हमारे मन धीरजायह है मेले का गीत तो गाइए, होली, दिवाली, तीजा, छट और वसंत पंचमी का त्योहार मना रहे हों तो गाइए। सर्दी का अहसास हो, बरखा का इंतजार हो बसंत की बहार हो या तपती गर्मी का तकलीफ देय मौसम हो आप लोकगीत गाइए गरज यह कि हर मौके के लिए हमारी लोक संस्कृयति में मौजूद है लोकगीत। आप बस सोचिए और गाते रहिए।
बात यहीं खत्म नहीं होती जीवन के आखिरी संस्कार मृत्यू के लिए भी हमारे लोकगीतो के खजाने में बहुत कुछ है। रुदाली, स्यापा और मर्सिया इसी सिलसिले का हिस्सा हैं जो हमारे जीवन के अंत से उपजे दर्द को भी सुर में बांध कर सांत्वना देते हैं.  गढ़वाली का एक लोकगीत ऐसा ही कहता है सुकी बलु डाड़ी, हरु लगलो फांगो, मारयो बल मणसात, ते जुग को बाओ मागो. जिसका मतलब है सूखता है पेड़ कहीं, कहीं हरी टहनी निकलती है, मनुष्य मरता है पर जिंदगी दूसरे जन्म का भी हिस्सा मांग कर चलती है। लाइफ के लिए इतनी ही पॉजिटिव रही है हमारी लोक संस्कृति यही असर लोकगीतों में भी दिखता है।
हमारे कल्चर में पंजाब की ओर स्यापा करने वाली स्पेशियली डेथ सेरेमनी के लिए इनवाइट की जाती हैं। और एक सर्टेन पैटर्न में वह स्यापा यानि शोक करती हैं। अगर कोई इस पेर्टन को डिर्स्टब या ब्रेक करता है तो बीच में बैठी मिरासन उसे ड्रिल से हाथ पकड़ कर बाहर कर देती है। एक स्यापे का फोक कुछ इस तरह है जिसे बैन करना कहते हैं पुत्त्त जिदे जन्मा वे कद्दा नू रंग आ गया, बीरा तेरे महला ने रंग बदला ऐ मेरी अम्मा का जाया. यानि यह शोक मां बहनों के दर्द को एक्सप्रेस कर  रहा है कि जब मां तेरा यह बेटा जन्मा था दीवारों का रंग आ गया था और मेरी मां के जाए भाई तेरे जाने से महलों के रंग उड़ गए हैं।

                                                                                                                    Text: Molly 

Posted By: Inextlive