हमें इंसान की हैसियत से बिना निराश हुए मेहनत करते रहना चाहिए तभी हम भाग्य को सहायता करने का मौका दे पाएंगे वरना भाग्य भी क्या करेगा?

नमस्कार। पिछले महीने मैंने 50—50 पर चर्चा की थी। हम सब लोगों की किस्मत 50—50 होती है। जब सहायक होती है, तब हम भूल जाते हैं कि किस्मत साथ नहीं भी दे सकती थी। प्रश्न यह है कि इस संदर्भ में इंसान क्या कर सकता है?

मैं उदाहरण स्वरूप इस साल दुबई में आयोजित एशिया कप क्रिकेट के दो मैचों के विषय में चर्चा करूंगा-भारत बनाम अफगानिस्तान और भारत बनाम बांग्लादेश। दोनों मैचों में कई आंकड़े एक जैसे थे और एक महत्वपूर्ण फर्क था। दोनों मैच में भारत अपने प्रतिद्वंद्वियों से विश्व रैंकिंग में बहुत आगे था। दोनों मैच में प्रतिद्वंद्वी टीम ने पहले बल्लेबाजी की और दोनों टीम ने ऐसा कोई टार्गेट नहीं बनाया जो भारत के लिए मुश्किल हो। फर्क इतना था कि अफगानिस्तान के खिलाफ भारत ने अधिकतर सीनियर खिलाड़ी और कप्तान को विश्राम दिया। परंतु फाइनल में पूरी टीम बांगलादेश के विरुद्ध मैदान में मुकाबला कर रही थी। अफगानिस्तान का मैच टाई हो गया। खास बात यह है कि इस मैच में करीब दो सालों के बाद भारत के सबसे सफल कप्तान टीम का नेतृत्व कर रहे थे।

हमारे पहले विश्व कप विजेता अधिनायक ने भारत के पहले टी20 विश्व कप विजय के बाद मजाक में कहा था- 'मैंने भी 1986 में शारजाह में आयोजित क्रिकेट टूर्नामेंट के फाइनल में पाकिस्तान के विरुद्ध आखिरी ओवर एक शर्मा को डालने के लिए दिया था जहां आखिरी गेंद पर पाकिस्तान के बल्लेबाज ने छक्का मारा था और आज इस टी20 फाइनल में पाकिस्तान के विरुद्ध आखिरी ओवर भी एक शर्मा ने डाला। आज के कप्तान खुशकिस्मत हैं कि पाकिस्तान के बल्लेबाज ने छक्का मारने के प्रयास में भारतीय खिलाड़ी को कैच दे दिया था। तो क्या हमारे क्रिकेट के इतिहास के सबसे सफल कप्तान केवल अपनी खुशकिस्मती के कारण सफल थे? उन्हें कप्तान 'कूल’ का विशेषण क्यों दिया गया था? कठिन परिस्थितिओं में वह विचलित क्यों नहीं होते थे? हार हो या जीत मैच के अंत में वह मीडिया के सामने सदा मुस्कुराते हुए क्यों नजर आते थे?

मेरा विश्लेषण उनके विषय में एक ही सिद्धांत की ओर ले जाता है- हमारे कप्तान कूल हारने से कभी नहीं डरते थे। उन्हें पता है कि हार-जीत खेल का एक अभिन्न अंग है। इसीलिए न ही किसी ने जीतने के बाद उन्हें जरूरत से ज्यादा सेलिब्रेट करते देखा है, न हारने के बाद उनके चेहरे पर मायूसी देखी है। अगर आपने गौर किया हो, तो हमारे कप्तान कूल विश्व कप जीतने के बाद टीम के हाथ में ट्रॉफी सौंपकर गायब से हो गए! इस बार भी उन्होंने अफगानिस्तान की उनके उम्दा प्रयास के लिए भरपूर प्रशंसा की। अगर भारत यह मैच हार भी जाता हमारे कप्तान विचलित नहीं होते क्योंकि उन्होंने 50-50 की मूल चिंता को अपना लिया है।

अब चर्चा करते हैं दूसरे मैच के विषय में। जब भारत ने बांग्लादेश के विरुद्ध अपनी पारी शुरू की, तो भारत को जीत के लिए प्रति ओवर पांच रन से कम की गति से रन बटोरने थे। जोकि आज टी20 के युग में इस भारतीय टीम के लिए बांए हाथ का खेल था परंतु बीच में भारत की पारी लडख़ड़ा गई और अंत में भारत ने आखिरी गेंद पर विजय हासिल की। भारत के कप्तान ने राहत की सांस ली होगी परंतु भारत अंत में सफल क्यों हुआ? क्या केवल भाग्य ने साथ निभाया? जरूर निभाया परंतु क्या भाग्य साथ निभा सकता अगर एक बल्लेबाज जो चोट के कारण पारी के बीच में मैदान छोड़कर चला गया था, अपनी चोट के बावजूद वापस नहीं आता? हो सकता है कि इस कारण खिलाड़ी को पूरी तरह फिट होने में अधिक समय लग जाए। अगर यह बात सच हो जाए तो खिलाड़ी अपने भाग्य को कोसेगा या फाइनल जीतने के लिए धन्यवाद करेगा?

इस उदाहरण से मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि हमें इंसान की हैसियत से बिना निराश हुए मेहनत करते रहना चाहिए तभी हम भाग्य को सहायता करने का मौका दे पाएंगे वरना भाग्य भी क्या करेगा? कल हमारे राष्ट्रपिता का जन्मदिन है। आज हम एक स्वतंत्र देश के नागरिक हैं। इसके लिए उन्हें और अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को सादर प्रणाम। उनके तरीके अलग हो सकते थे, लेकिन गोल एक ही था। और उन्होंने 50-50 पर शायद भरोसा किया होगा। दशहरा का महीना। आप सब को अग्रिम बधाई। खुश रहें।

दीपक प्रमाणिक, (Writer is a Motivator, Teacher & Trainer)

 

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Posted By: Kartikeya Tiwari