एसटीएफ ने नोएडा से दबोचा कोटेदार और ऑपरेटर भी शामिल। लॉग इन आईडी और पासवर्ड से चला रहे थे हेराफेरी की दुकान। अब तक सात गिरफ्तारी पूर्ति निरीक्षकों पर बड़ी कार्रवाई की तैयारी।

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LUCKNOW : पीडीएस सिस्टम में पूर्ति निरीक्षकों के यूजर लॉग इन और पासवर्ड के जरिए आधार कार्ड और बायोमेट्रिक सिस्टम में सेंध लगाने वाले चार जालसाजों को एसटीएफ ने सोमवार को नोएडा से गिरफ्तार कर लिया। इनमें एक कोटेदार और कंप्यूटर ऑपरेटर शामिल हैं, जबकि तीसरा एक अन्य कोटेदार का पुत्र है। चौथा जालसाज इनके बीच मध्यस्थ था और वही लॉग इन और पासवर्ड मुहैया कराता था।  ध्यान रहे कि एसटीएफ ने इस मामले में रविवार को लखनऊ से तीन लोगों को गिरफ्तार करने के साथ साइबर थाना में अलग से एक एफआईआर भी दर्ज करायी थी। आज इसी एफआईआर के आधार पर नोएडा में यह बड़ी कार्रवाई अंजाम दी गयी है। सूत्रों की मानें तो सौ करोड़ रुपये से ज्यादा के इस घोटाले में उन पूर्ति निरीक्षकों पर कड़ी कार्रवाई करने की तैयारी शुरू हो गयी है जिन्होंने जालसाजों को अपना लॉग इन और पासवर्ड सौंपा है।
दो ई-पॉस मशीनें भी पकड़ी
एसटीफ  की नोएडा यूनिट ने इनके पास से एक कंप्यूटर व सीपीयू, दो ई-पॉस मशीन, मोबाइल फोन, जालसाजी में इस्तेमाल बड़ी संख्या में वास्तविक आधार कार्ड व अन्य दस्तावेज बरामद किए हैं। इनमें नोएडा सेक्टर 19 का कोटेदार गौरव जोशी बाकी कोटेदारों को लॉग इन और पासवर्ड मुहैया कराता था। उसने अपनी बहन का आधार इस्तेमाल कर सैंकडों फर्जी ट्रांजेक्शन भी किए है। दूसरा आरोपी नेम सिंह कंप्यूटर ऑपरेटर है जबकि तीसरा सोनू उर्फ रामकुमार मध्यस्थ और लॉग इन और पासवर्ड मुहैया कराता था। चौथा आरोपी सौरव कोटेदार जयंत कुमार का पुत्र है और वह अन्य कोटेदारों को ऑपरेटर्स उपलब्ध कराता था। सूत्रों की मानें तो जिन पूर्ति निरीक्षकों के लॉग इन और पासवर्ड का दुरुपयोग किया गया है, उन्हें एसटीएफ नोटिस देकर पूछताछ के लिए तलब करने की तैयारी है। जांच में यह भी सामने आया है कि राजधानी के आशियाना इलाके में रहने वाले जितेंद्र कुमार गुप्ता के यहां यूजर आईडी इस्तेमाल कर ई-पॉस मशीन से फर्जी राशन वितरण कराया जाता था।

डिजिटल सिग्नेचर नहीं कराने से हुआ घोटाला

जांच में यह भी सामने आया है कि विभाग द्वारा बायोमेट्रिक और आधार सिस्टम अपडेट करने के लिए पूर्ति निरीक्षकों को डिजिटल सिग्नेचर में छूट देना घोटाले की वजह बन गया। इसके अभाव में वह सिस्टम में सेंध लगाने में कामयाब हो गये। यह भी पता चला है कि कंप्यूटर ऑपरेटर की आईडी जिला पूर्ति अधिकारी बनाकर देते थे, जिससे लॉगिन एवं पासवर्ड डालकर वेबसाइट खोलकर आधार नंबर को सीड कर देते थे। यह काम अपै्रल 2018 तक चला। सीडिंग होते ही राशन कार्ड धारक की फाइल लॉक हो जाती थी। सीडिंग का काम पूरा न होने के कारण जून अंत में ऑपरेटर की आईडी फिर एक्टीवेट कर दी गयी और इस बार आधार नंबर में संशोधन करने की सुविधा दे दी गई। इसी का लाभ उठाते हुए फर्जी वितरण का गोरखधंधा शुरू हो गया। इसके अलावा तमाम पूर्ति निरीक्षकों ने अपने लॉग इन और पासवर्ड नियमों के विपरीत जाकर ऑपरेटर्स से साझा किये जिसके बाद इसका बड़े पैमाने पर दुरुपयोग शुरू हो गया। यह प्रकरण सामने आने के बाद विभाग द्वारा अब एहतियात बरती जाने लगी है। एनआईसी ने अपने सिस्टम में कुछ अहम बदलाव भी किए हैं। अब बायोमेट्रिक इमेज को सीधे सर्वर पर भेजने के बजाय उसे सेव किया जाएगा। शुरुआती जांच के बाद ही उेवेरीफाई करने को सर्वर पर अपलोड किया जाएगा।

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Posted By: Mukul Kumar