पांच रुपयों के वसीके के खातिर एक अंग्रेज ब्रिटेन से लखनऊ के 11 चक्कर लगा चुका है. इयान मैल्कम नाम का यह शख्स पिछले 34 साल से ब्रिटिश गवर्नमेंट से हक की लड़ाई लड़ रहा है. लेकिन आज तक उसका केस ब्रिटेन की कोर्ट में फाइल नहीं हो सका. इयान मैल्कम स्पियर्स बुधवार को अपने डाक्यूमेंट के सिलसिले में एक बार फिर लखनऊ आये तो आई नेक्स्ट को उन्होंने अपनी इस अनोखी लड़ाई की पूरी दास्तान सुनाई.


Lucknow: बात ईस्ट इंडिया कंपनी के जमाने की। उस समय लिए गए लोन के बदले एक एंग्लो इंडियन फैमिली को पांच रुपए वसीका मिलता था। अचानक वो वसीका मिलना बंद हो गया। उस पांच रुपए के वसीके के लिए उस फैमिली का मेंबर ब्रिटेन से लखनऊ के 11 चक्कर लगा चुकें है और लड़़ाई अभी भी जारी है। इस लड़ाई को लड़ रहे हैं इयान मैल्कम स्पीयर्स।उन्होंने बताया कि 1825 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अवध के बादशाह गाजिउद्दीन हैदर से लोन लिया था। रिश्ते में मैल्कम की दादी अमेनिया शार्ट किंग आफ अवध की कोर्टियर (लीगल एडवाइजर) थीं। किंग आफ अवध ने ईस्ट इंडिया को इस शर्त पर लोन दिया था कि वह पांच परसेंट इंट्रेस्ट मनी उनकी पत्नियों और कोर्टियर में शामिल अमेनिया शार्ट और जोसेफ शार्ट को बतौर वसीका अदा की जाएगी।


उसके बाद से अमीनिया और उनकी फैमिली को वसीके की रकम मिलती रही। ईस्ट इंडिया के बाद ब्रिटिश गवर्नमेंट और ब्रिटिश गवर्नमेंट के बाद 1947 से 1965 तक इंडियन गवर्नमेंट अमेनिया की फैमिली को वसीका अदा करती रही। इंडिया को आजादी के 18 साल बाद ख्याल आया कि वह तो अपने ही पैसे का इंट्रेस्ट अदा कर रही है जिसकी देनदारी ब्रिटिश गवनर्मेंट की है। इसके बाद से इंडियन गवर्नमेंट ने अमीनिया की फैमिली को वसीका देना बंद कर दिया।इसके बाद से उनकी फैमिली वसीके की लड़ाई लड़ रही है। 9 अक्टूबर 1960 से आठ मई 1962 तक मैल्कम स्पीयर्स के रिश्ते के अंकल आईएमएस स्पीयर्स लखनऊ के एसएसपी थे। रिटायर होने के बाद वह लामॉर्टिनियर में भी कुछ दिन रहे थे। उन्होंने भी अपने पूर्वजों को मिल रहे वसीके के लिए लड़ाई लड़ी। मैल्कम के पिता इंग्लैंड में जाकर बस गये और मैल्कम भी उन्हीं के साथ रहने लगे।वसीके के लिए मैल्कम पहली बाद 1978 में लखनऊ आये। उस वक्त उनकी एज महज 21 साल थी। कानूनी राय लेने के बाद उन्हें पता चला कि वसीके का भुगतान इंडियन गवर्नमेंट नहीं बल्कि ब्रिटिश गवर्नमेंट करेगी क्योंकि  लोन ब्रिटिश गवर्नमेंट ने लिया था। इसके बाद मैल्कम ने इंग्लैण्ड में अपने बुजुर्गों के वसीके की पैरवी शुरु की। लेकिन आज तक उनके पेपर ही पूरे नहीं हो पाये जिससे ब्रिटिश कोर्ट में पेटीशन फाइल की जा सके।

इसके बाद से मैल्कम एक एक डाक्यूमेंट पूरा करने के लिए पिछले 34 सालों में अब तक 11 बार लखनऊ आ चुके हैं। उन्होंने वसीके के लिए अब तक काफी डाक्यूमेंट इकट्ठा कर लिए हैं। मैल्कम की इस जंग में हजारों पाउंड खर्च हो चुके हैं। यहां तक कि अपने बुजुर्गों की कब्रों की फोटो तक वह एवीडेंस के तौर पर कलेक्ट कर इंग्लैंड ले जा चुके हैं। अभी भी  कोर्ट में केस फाइल करने से पहले जो भी एवीडेंस मांगा जाता है मैल्कम उसकी तलाश में लखनऊ पहुंच जाते हैं। मैल्कम का कहना है कि उनके पूर्वजों की कब्र निशातगंज में है। वह एंग्लोइण्डियन हैं।लखनऊ से है लगावमैल्कम का लखनऊ से खासा लगाव है। कुछ लोग हैं जो उनकी लखनऊ आने पर मदद करते हैं। इनकी बदौलत वह ज्यादा से ज्यादा डाक्यूमेंट कलेक्ट करने में कामयाब हो चुके हैं। मैल्कम स्पीयर्स का कहना है कि 1965 में वसीके की रकम लगभग पांच रुपये मंथली मिलती थी लेकिन अब यह एक बड़ी रकम हो चुकी है। उनके अनुसार इसके लिए ब्रिटिश गवर्नमेंट को ना सिर्फ अब तक का बकाया वसीका देना होगा बल्कि उसका इंट्रेस्ट भी गवर्नमेंट को पे करना होगा। टोनी ब्लेयर को लिख चुके हैं लेटर

मैल्कम स्पीयर्स के अनुसार उन्होंने खुद को वसीके दार साबित करने के लिए सारे डाक्यूमेंट के साथ एक पेटीशन इंग्लैंड के प्राइम मिनिस्टर टोनी ब्लेयर के यहां भी दाखिल की है। मैल्कम ने बताया कि उम्मीद है कि अगली बार जब लखनऊ आऊंगा तो वसीके के डाक्यूमेंट के सिलसिले में नहीं बल्कि लोगों से मिलने आऊंगा। क्या होता है वसीकाब्रिटिश रुल के दौरान जिन लोगों ने ब्रिटिश गवर्नमेंट की फाइनेंशियली हेल्प की थी उन्हें इंटरेस्ट के तौर पर दी जाने वाली रकम को वसीका कहते हैं। लखनऊ के कई नवाबों के वारिस आज भी वसीका पाते हैं। वसीके की अहमियत कुछ इतनी है कि पांच रुपये वसीके के लिए आज भी लोग सैकड़ों रुपये खर्च कर देते हैं। वसीका इस बात की निशानी होती है कि उनके पूर्वजों ने ब्रिटिश गवर्नमेंट को लोन दिया था। Report By: Yasir Raza for inextlive.com

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