Bareilly: दिल से उठता है जान से उठता है यह धुआं सा कहां से उठता है... मेहदी हसन की गायकी से सजी मीर की गजल वसीम बरेलवी को सबसे ज्यादा पसंद है. वे कहते हैं कि इस गजल को सुनकर लगता है कि कोई गायक गजल में डूब चुका है. उनका धुआं कहने का अंदाज तक यह एहसास देता कि जरूर कहीं धुआं उठा है. वह शब्दों को जिया करते थे.


लता जी ने भी कहावसीम बरेलवी ने बताया कभी मिला तो नहीं उनसे पर गजब के गजल गायक थे हसन साहब। लता जी ने भी उनके लिए कहा था कि मेरी सुबह भी मेहदी हसन के साथ होती है और मेरी शाम भी। वह कभी भी गायकी से इतर बात नहीं करते थे।कहीं सुनाई पड़ जाए एक गजल


प्राइम म्यूजिक के  डायरेक्टर खुर्शीद अली को पूरी रात रेडियो सुनना अच्छा लगता था। ऐसा इसलिए ताकि मेहदी हसन की कोई गजल आ जाए तो रात सुकून से बीत जाए। खुर्शीद अली बताते हैं कि इतना ही नहीं उस गजल को डायरी में नोट भी करते थे और फिर पूरे दिन उसे गाने का रियाज। पहले वो डायरी हिंदी में बनाते थे लेकिन उनकी डायरी चोरी हो गई। इसलिए वह उर्दू में डायरी लिखने लगे। कभी किसी दोस्त ने वाह-वाह कर दी तो यह जोश और भी बढ़ जाता था। अब यह यादें हैं, रंगीन यादें। आज ये यादें भीगी पलकों में भी नजर आ रही हैं। बहुत याद आती है

रफ्ता-रफ्ता वह मेरी हस्ती का सामान हो गए मेहदी हसन की ये गजल खुर्शीद अली को काफी पसंद है। खुर्शीद अली ने 1969 से रेडियो पर मेहदी हसन की गजलें सुनना शुरू किया। इसके बाद ही उन्हें भी गजल गायकी का शौक हुआ। कहते हैं मेहदी हसन की गजल सुनने के लिए वह पूरी रात रेडियो सुना करते थे। उनके पास मेहदी हसन के गजलों का अद्भुत कलेक्शन है। कुछ सीडी और कैसेट में तो कुछ डायरी में। कहते हैं कि वेडनसडे को उन्होंने जैसे ही यह सुना कि मेहदी हसन नहीं रहे, दिल को बड़ा धक्का लगा।

Posted By: Inextlive