Alumni meet में Georgians को याद आया गुजरा जमाना उम्र की ढलान पर अब भी बाकी थीं शरारतों की लकीरें


यंग जॉर्जियन अब भले ही ज्यादा पढऩे वाले स्टूडेंट्स को 'चरसीÓ और लड़कियों के करीब रहने वाले स्टूडेंट्स को 'लहुस्सीÓ कह कर बुलाते हैं लेकिन ओल्ड जॅार्जियन भी अपने जमाने के कम नोटोरियस नहीं थे। यह हॉस्टल के सबसे सीधे स्टूडेंट्स को 'चमनÓ नाम देते थे और पूरी पढ़ाई के दौरान उसको मि.चमन ही कह कर बुलाया जाता था.
ऐसे ही दर्जनों 'चमनÓ सीएसएमएमयू के एल्युमनी मीट में नजर आए। भले ही यह एक दूसरे से चालीस साल या फिर तीस साल के बाद मिल रहे थे लेकिन मुलाकात होते ही बस एक ही आवाज निकलती थी कि अरे चमन कैसा है और आगे बढ़ कर उसे गले लगा रहे थे। लग रहा था पंडाल में 50 साल पुराना केजीएमसी का जमाना वापस आ गया था। हर तरफ पुराने दोस्तों की महफिलें जमी थीं और सब एक दूसरे के पोल खोलने पर आमादा थे.
बताऊं सबको तीन-तीन जगह डाला था टेंडर
1960 बैच के जॉर्जियन एक मेज पर बैठे थे, हंसी ठिठोलों का दौर जारी था कि अचानक डॉ। वर्मा बोल उठे अरे डॉ। रस्तोगी किसी को भी अपनी किस्मत से ज्यादा नहीं मिलता है। आपने तो तीन-तीन टेंडर डाले थे। कहिए तो सबको बता दूं कि क्या निकला था टेंडर में। इतना कहना था कि डॉ। रस्तोगी की माथे पर पसीना आ गया। कुछ ऐसे ही किस्सों से जॉर्जियन ने पूरे समां को बांध रखा था। कोई अपने जमाने की मिस केजीएमसी की बातें कर रहा था तो कोई क्लास बंग करके गंजिंग करने के मजा के बारे में बात करके अपनी यादों को शेयर कर रहा था.
मेजर चमन हाजिर हों
1949 बैच के एसी जौहरी ने बताया कि हम अपने जमाने के सबसे बेवकूफ स्टूडेंट को 'चमनÓ कहते थे। इसकी भी दो कैटागिरी थी। मेजर चमन और मैनर चमन। इनको तैयार भी हम जॉर्जियन ही करते थे। हर साल हॉस्टल में बॉडी बिल्डिंग शो होता था। तो हम लोग हॉस्टल के सबसे कमजोर लड़के जिसकी हड्डियां नजर आ रही हो उसको एक सप्ताह पहले से तैयार करने लगते थे कि यार तुम्हारे हाथ पैर बहुत जबरदस्त है। उसके बाद उसकी पूरी फिल्डिंग लगाई जाती थी। जब तिनके पर चढ़ जाता था तो उसको शो में उतार देते थे। स्टेज पर पहुंचने के बाद उसे एहसास होता था कि बेटा बन गए बेवकूफ.
लड़की बनकर टहलता था
1963 बैच के जॉर्जियन डॉ। एमएन अंसारी ने बताया कि जो समय हम लोगों ने केजीएमसी में गुजारा उसको सिर्फ महसूस किया जा सकता है। मुझे आज भी याद है कि 31 मार्च की रात में मैने लड़की के कपड़े पहने और अपने हॉस्टल के साथी के साथ कमरे में चला गया कि फिर क्या था पूरे कॉलेज में हंगामा हो गया कि हॉस्टल में लड़की है। सुबह गुरूजी स्टूडेंट्स के साथ हॉस्टल के गेट पर खड़े थे। दरवाजा खोल कर जब निकाला गया कि तो मैं निकला और सब एक साथ बोले अप्रैल फूल। वही 1949 बैच के डॉ.एसी जौहरी ने बताया कि अगर हमारा साथी किसी लड़की के साथ दिख जाता था तो क्लास में हम चिल्लाकर उसकी इतनी हूटिंग करते थे कि अगले दिन वह अकेला ही दिखता था। यही नहीं कोई स्टूडेंट्स किसी प्रोफेसर से ज्यादा मेल मिलाप दिखाता तो उसको मख्खनबाज कह कर चिढ़ाते थे.
हम अपनी लिमिट जानते थे
जॅार्जियन मीट में 1936 बैच के सबसे सीनियर डॉ। जेएस रस्तोगी मौजूद थे तो 2010 तक के जार्जियन भी यहां पर देश विदेश से आए हुए थे। 1963 बैच की डॉ। सुधा, डॉ सुशीला और डॉ। स्नेहा भी चालीस साल बाद एक दूसरे से मिल कर अपनी यादें ताजा कर रही थी। डॉ सुधा ने बताया कि हम लोग अपने सीनियर के नाम रखने में माहिर थे। पूरे क्लास को पोस्टमार्टम दो मिनट में कर देना बाएं हाथ का काम था। मगर हम लोग अपनी लिमिट जानते थे। हर काम लिमिट में रह कर करते थे।

Posted By: Inextlive