धनतेरस 5 नवंबर को है। धनतेरस का क्या महत्व है पूजा कब करें इस खबर में पढ़ें

 

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी बाजार सज गए हैं। छोटे-मोटे से लेकर बड़े-बड़े दुकान लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति के साथ-साथ सोने-चांदी के आभूषणों, सिक्के, दैनिक जीवन में काम आने वाली मशीनों तथा अलग-अलग तरह के महंगे उपहारों से सज गए हैं। ये सभी तैयारियां धरतेरस की हैं। जहां लक्ष्मी धन की देवी मानी जाती हैं वहीं इंसान के लिए सबसे बड़ा धन उसकी निरोगी काया है। भौतिक धन से तो हम अपने जीवन की सारी जरूरतें पूरी करते हैं, लेकिन स्वस्थ तन से ही हम कई अच्छे कार्य कर पाते हैं। स्वस्थ तन में ही सुंदर मन विराजता है। इसलिए श्री लक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ धनवंतरी देवता की भी पूजा का विधान है। धनवंतरी को चिकित्सा का देवता माना जाता है। 

कथा

कथा है कि समुद्र मंथन के बाद श्री हरि विष्णु के अंश धनवंतरी हाथों में अमृत कलश लेकर अवतरित हुए थे। इसलिए इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा आज भी कायम है। धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। चांदी को चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है, जो हमें शीतलता प्रदान करता है। यदि हम चंद्रमा को एकाग्रचित्त होकर देखते हैं, तो मन शांत और क्लेश रहित हो जाता है। शांत मन में ही संतोष बसता है। संतोष सबसे बड़ा धन माना गया है। कहा भी गया है संतोषं परम सुखं। यदि हमारे पास संतोष का धन है, तो भौतिक संसाधनों की चमक-दमक हमें प्रभावित नहीं कर पाएगी। चांदी की खरीदारी संभव न हो, तो घर के लिए कोई जरूरी बर्तन भी खरीदा जा सकता है। 

शुभ मुहुर्त 

लक्ष्मी गणेश कुबेर की पूजा पंडित ऋषि द्विवेदी के अनुसार, धनतेरस का शुभ मुहुर्त 6.10 बजे से 8.06 बजे तक है। प्रथम आराध्य गणेश विघ्नविनाशक हैं। इसलिए उनकी पूजा के बाद माता लक्ष्मी तथा धन के स्वामी कुबेर की पूजा होती है। लक्ष्मी को लाल गुड़हल के फूल विशेष प्रिय हैं, इसलिए उनकी पूजा में इसका प्रयोग किया जाता है। 

ये भी पढ़ें: धनतेरस 5 नवंबर को, जानिए सप्ताह के व्रत त्योहार

Posted By: Swati Pandey