सोमवार को सर्च इंजन गूगल ने डूडल बनाकर प्रसिद्ध भारतीय नृत्‍यांगना रुक्‍मिणी देवी अरुंडेल की 112 वीं जयंती मनाई। इनके बारे में बता दें कि इन्‍होंने भरतनाट्यम में भक्‍ितभाव भरा और नृत्‍य की अपनी एक अलग परंपरा प्रारंभ की। कला के क्षेत्र में इनको 1956 में पद्म भूषण से सम्‍मानित किया गया।

ऐसी है जानकारी
रुक्मिणी देवी ने 1936 में इंटरनेशनल अकेडमी फॉर आर्ट्स की स्थापना की। इसी का नाम 1938 में बदलकर 'कलाक्षेत्र' कर दिया गया। इनके निजी जीवन की बात करें तो रुक्मिणी देवी का जन्म 29 फरवरी 1904 में तमिलनाडु के मदुरै जिले में हुआ था। पारंपरिक रीति-रिवाजों के बीच पली-बढ़ी रुक्मिणी देवी ने महान संगीतकारों से भारतीय संगीत की शिक्षा ली।
खुद विकसित किए नृत्य के भाव
रुक्मिणी के पिता संस्कृत के विद्वान और एक उत्साही थियोसोफिस्ट थे। इनके समय में लड़कियों को मंच पर नृत्य करने की इजाजत नहीं थीं। ऐसे में नृत्य सीखने के साथ-साथ उन्होंने तमाम विरोधों के बावजूद इसे मंच पर प्रस्तुत भी किया। सिर्फ यही नहीं इन्होंने नृत्य की कई विधाओं को खुद बनाया भी और उन्हें अपने भाव में विकसित किया।
यहां बन गईं वह रुक्मिणी अरुंडेल
ऐसे ही एक थियोसोफिकल पार्टी में रुक्मिणी की मुलाकात जॉर्ज अरुंडेल से हुई। जॉर्ज डॉ. श्रीमती एनीबेसेंट के निकट सहयोगी थे। यहां मुलाकात के दौरान जॉर्ज को रुक्मिणी से प्यार हो गया और उन्होंने 16 साल की उम्र में ही रुक्मिणी के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया। उसके बाद 1920 में दोनों की शादी हो गई और रुक्मिणी बन गईं रुक्मिणी अरुंडेल।
जानवरों से था काफी स्नेह
रुक्मिणी को जानवरों से बहुत प्यार था। राज्यसभा सांसद बनकर इन्होंने 1952 और 1956 में पशु क्रूरता निवारण के लिए इन्होंने विधेयक का प्रस्ताव रखा। ये विधेयक 1960 में पास हो गया। बताते चलें कि वह 1962 से एनिमल वेलफेयर बोर्ड की चेयरमैन भी रहीं।

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Posted By: Ruchi D Sharma