एक जापानी कंपनी के बनाए एक रोबोट ने अमरीकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन की शोध इकाई डारपा की ओर से आयोजित प्रतियोगिता जीत ली है. इस जापानी कंपनी को कुछ समय पहले ही गूगल ने खरीदा था.


फ्लोरिडा राज्य के मियामी शहर में दो दिन चली प्रतियोगिता में टीम शाफ्ट की मशीन ने बचाव से जुड़े आठों काम पूरे कर अपने प्रतिद्वंद्वियों को काफ़ी बड़े अंतर से हराया. प्रतियोगिता में 15 टीमों ने हिस्सा लिया था जिसमें से तीन टीमों को एक भी अंक नहीं मिला. टीम शाफ़्ट और शीर्ष की सात अन्य टीमें अब 2014 में होने वाली फ़ाइनल प्रतियोगिता के लिए डारपा के पास और फंड के लिए अर्ज़ी दे सकती हैं.प्रतियोगिता का मक़सदडारपा का कहना था कि उसे ये चुनौती आयोजित करने की प्रेरणा तब मिली जब ये स्पष्ट हो गया कि साल 2011 में जापान के फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में हुए रिसाव से निपटने में रोबोट केवल सीमित भूमिका ही निभा पाए.


डारपा रोबोटिक्स चैंलेंज के प्रोग्राम मैनेजर गिल प्रैट ने बताया, "(उस हादसे के बाद) हमें पता चला कि ये रोबोट देखने के अलावा कुछ और नहीं कर सकते. वहां ऐसे रोबोट की ज़रूरत थी जो परमाणु संयंत्र के अंदर जाकर वाल्व को बंद कर सके."इसलिए ज़्यादा परिष्कृत रोबोटों के विकास को प्रोत्साहन देने के लिए डारपा ने प्रतियोगियों को आठ काम दिए और इन सभी के लिए 30-30 मिनट की समय सीमा थी.

इनमें एक गाड़ी चलाना, आठ फ़ीट ऊंची सीढ़ी पर चढ़ना, दरवाज़े पर रखा मलबा हटाना, लीवर-चालित दरवाज़ा खोलना, दीवार में बिना तार वाली मशीन से त्रिकोणीय आकार काटना, तीन वाल्व बंद करना और एक पाइप को खोलकर उसके नोज़ल को दीवार में लगे कनेक्टर से जोड़ने जैसे काम शामिल थे. कुछ कंपनियों ने खुद के बनाए रोबोट का इस्तेमाल किया जबकि कुछ अन्य ने गूगल की कंपनी बॉस्टन डायनामिक्स द्वारा विकसित रोबोट एटलस का इस्तेमाल किया जिसके नियंत्रण के लिए उन्होंने अपना सॉफ़्टवेयर इस्तेमाल किया. शाफ़्ट कंपनी का रोबोट, दो पैरों वाला, चार फ़ीट 11 इंच लंबा रोबोट था. ये रोबोट एक ऐसी मोटर तकनीक का इस्तेमाल करता है जिसकी ऊर्जा बैटरी की जगह कैपेसिटर से आती है. रोबोट बनाने वाले इंजीनियरों का कहना है कि इस वजह से रोबोट के हाथ ज़्यादा तेज़ गति से चलते और घूमते हैं.ये  रोबोट टोकियो विश्वविद्यालय की जोउहोउ सिस्टम कोउगाकु शोधशाला से निकली एक टीम ने बनाया था और हाल ही में गूगल ने बताया कि उसने उस टीम को ख़रीद लिया है. 'इंसान से धीमे'

डारपा द्वारा इंटरनेट पर पोस्ट किए गए वीडियो दिखाते हैं कि रोबोट इंसानों से काफ़ी धीमे हैं और उन्होंने अकसर दो कार्यों के बीच एक मिनट या उससे ज़्यादा समय लिया. इस अवधि में रोबोट वो गणना करता है जो हर कदम उठाने के लिए उसे करनी होती है.तीन टीमें जिन्होंने अपनी डिज़ाइन किए रोबोट इस्तेमाल किए थे, वो एक भी कार्य पूरा करने में नाक़ामयाब रहे. इनमें नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर द्वारा विकसित वाल्कायरी रोबोट भी था.डारपा के मैनेजर गिल प्रैट ने कहा कि दिसंबर में होने वाली फ़ाइनल प्रतियोगिता उस समय को और नज़दीक लाएगी जब रोबोटों को असली हालात में इस्तेमाल किया जा सकेगा. प्रैट ने कहा, "आज उठाए गए छोटे कदम आगे चलकर मानवता को आपदाओं से बचाने में मदद करेंगे."प्रतियोगिता की चोटी की आठ टीमें फ़ाइनल से पहले अपने रोबोटों को बेहतर बनाने के लिए डारपा से 10 लाख डॉलर तक की राशि के लिए आवेदन दे सकती हैं. फ़ाइनल जीतने वाली टीम को 20 लाख डॉलर की इनामी राशि मिलेगी.

Posted By: Bbc Hindi