भागवत पुराण के अनुसार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण गोवर्धन पर्वत को धारण किए रहे। आठवें दिन इन्द्र की आंख खुली और वे अहंकार रहित होकर भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आये।

गौ का माहात्म्य एवं महत्व बताने की आवश्यकता नहीं है तथा यह भी बताने का आवश्यकता नहीं है कि भगवान श्रीकृष्ण का अतिप्रिय 'गोविन्द' नाम गायों की रक्षा करने के कारण ही पड़ा। भागवत पुराण के अनुसार, कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण गोवर्धन पर्वत को धारण किए रहे। आठवें दिन इन्द्र की आंख खुली और वे अहंकार रहित होकर भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आये।

इसलिए श्रीकृष्ण का नाम पड़ा गोविन्द

कामधेनु ने भगवान का अभिषेक किया और उसी दिन भगवान का 'गोविन्द' नाम पड़ा। उसी समय से कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा, जो अब तक चला आ रहा है। जो इस वर्ष गुरुवार 15 नवम्बर 2018 को पड़ रही है।

व्रत और पूजा विधि

कार्तिक शुक्ल अष्टमी को प्रातः काल गाय को स्नान कराएं, फिर गन्ध-पुष्पादि से उनका पूजन करें और अनेक प्रकार के वस्त्रालंकारों से अलंकृत करके ग्वालों का पूजन करें। गायों को गोग्रास देकर उनकी परिक्रमा करें और थोड़ी दूर तक उनके साथ जायएं तो सब प्रकार की अभीष्ट सिद्धि होती है।

ऐसा करने से बढ़ेगा सौभाग्य

गोपाष्टमी को सायंकाल गाएं चरकर जब वापस आएं, उस समय भी उनका आतिथ्य,अभिवादन और पंचोपचार पूजन करके कुछ भोजन कराएं। उसके बाद उनकी चरण रज को मस्तक पर धारण करें, उससे सौभाग्य की वृद्धि होती है।

भारत वर्ष के प्रायः सभी भागों में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े ही उल्लास से मनाया जाता है, विशेषकर गो शालाओं तथा पिंजरापोलों के लिए यह बड़े महत्व का उत्सव है। गोशालाओं में तो गोपाष्टमी के दिन एक मेला जैसा ही लग जाता है- खाने-पीने की दुकानें आ जाती हैं, बड़ी भीड़ होती है। उसमें घूमने के अतिरिक्त लोग गोवंश के दर्शन करते हैं, उनको कुछ खिलाते हैं और गोशाला की संस्था को कुछ दान करते हैं। 

— ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र, शोध छात्र, ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

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Posted By: Kartikeya Tiwari