- गोरखपुर के इमामबाड़ा में है मौजूद, देखने के लिए उमड़ती है अकीदतमंदों की भीड़

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GORAKHPUR:

अपने गोरखपुर में कई ऐसी धरोहरें हैं, जो पूरे हिंदुस्तान में कहीं नहीं है। इसमें एक बड़ा नाम है इमामबाड़े में रखा सोने और चांदी के ताजिया का। इसे देखने न सिर्फ गोरखपुर, बल्कि देशभर के लोग पहुंचते हैं। साल में मोहर्रम के दौरान महज दस दिन के लिए इसकी जियारत कराई जाती है, बाकी सारे साल यह बंद रहती है और कुछ चुनिंदा लोग ही वहां पहुंच सकते हैं। वहीं करीब तीन सौ साल से बाबा रोशन अली शाह की जलाई धूनी आज भी बदस्तूर जल रही है।

बड़े इमामबाड़े के तौर पर पहचान

इमामबाड़ा सामाजिक एकता व अकीदत का ऐसा केंद्र है जहां हर धर्म और जाति के लोग पहुंचते हैं। हिन्दुस्तान में इसकी पहचान सुन्नी संप्रदाय के सबसे बड़े इमामबाड़े के तौर पर है। 18वीं सदी के सूफीसंत सैयद रोशन अली शाह का फैज बंटता है। लोगों की ऐसी आस्था है कि यहां हर मजहब के मानने वालों की दिली मुरादें पूरी होती हैं। इमामबाड़ा की शान पुरानी चमक-दमक के साथ बरकरार है।

1717 में बना था इमामबाड़ा

मियां साहब इमामबाड़ा के छठवें सज्जादानशीं मियां अदनान फर्रुख अली शाह ने बताया कि रोशन अली शाह करीब सन् 1707 ई। में गोरखपुर तशरीफ लाए। उन्होंने 1717 ई। इमामबाड़ा तामीर किया। मियां साहब की ख्याति की वजह से इस इलाके को मियां बाजार के नाम से जाना जाने लगा। अवध में नवाब आसिफुद्दौला का दौर था। इस दौरान उन्होंने रोशन अली शाह को 15 गांवों की माफी जागीर दी। एक मशहूर वाकये के दौरान नवाब आसिफुद्दौला रोशन अली शाह की बुजुर्गी के कायल हुए। रोशन अली शाह से उनके लिए कुछ करने की की इजाजत चाही। रोशन अली ने नवाब से इमामबाड़े की विस्तृत तामीर के लिए कहा जिसे नवाब ने माना और इमामबाड़ा तामीर करवाया।

12 साल तक चला काम

रोशन अली शाह की इच्छा के मुताबिक, नवाब ने छह एकड़ के इस भू-भाग पर इमाम हुसैन की याद में मरकजी इमामबाड़े की तामीर शुरू कराई। 12 साल तक तामीरी काम चलता रहा, जो 1796 ई में मुकम्मल हुआ। वहीं इमामबाड़ा आज इतिहास का साक्षी है। इमामबाड़े की तामीर करने के बाद अवध के नवाब आसिफुद्दौला ने सोने से बना ताजिया यहां भेजा था। नवाब की बेगम ने भी चांदी का ताजिया भेजा। इमामबाड़े की दरो-दीवार व सोने-चांदी की ताजिया में मुगलिया वास्तुकला रची-बसी नजर आती है, जो ऐतिहासिकता का अनुभव कराती है। जब अवध के नवाब ने गोरखपुर को अंग्रेजों को दे दिया तब अंग्रेजों ने भी इनकी माफी जागीर को स्वीकृत कर दिया।

वास्तुकला का महत्वपूर्ण नमूना फाटक

पर्यटन के अहम सेंटर के तौर पर इमामबाड़ा भी काफी अहम है। टूरिस्ट के साथ ही देशवासियों को भी अट्रैक्ट कर रहा है। इसका ऐतिहासिक फाटक वास्तुकला का अनमोल नमूना है। इस पर की गई नक्काशी लोगों को अट्रैक्ट करती है। चार फाटक चार दिशाओं में है। पश्चिम व पूरब फाटक काफी बड़े हैं। किसी जमाने में इन फाटकों से हाथियों का गुजर होता था, पूरब फाटक तो हमेशा खुला रहता है,लेकिन इसके तीन अन्य फाटक मोहर्रम के शुरुआती दस दिन ही खोले जाते हैं।

हाईलाइटर्स

18वीं सदी के सूफीसंत सैयद रोशन अली शाह का फैज बंटता है।

नवाब आसिफुद्दौला ने शुरू करवाया था निर्माण कार्य।

12 साल की मेहनत के बाद 1796 ई में हुआ मुकम्मल।

-साल भर जलती रहती है सूफी संत की धूनी

Posted By: Inextlive