- शहर की शान है 300 बरस से ज्यादा है पुरानी मस्जिद

- मुगल बादशाह ने घंटा घर में बनवाई थी

GORAKHPUR: अब तक मैं अपने इतिहास और खासियत के बारे में आपको बता रहा था। अब उन खास चीजों का जिक्र करने जा रहा हूं, जिन्होंने मुझे सिर ऊंचा करने का मौका दिया है। यूं तो यहां बहुत सी इमारतें हैं, जिनका काफी महत्व है। इनमें से एक है गोरखपुर में मुगलों के जमाने की बनी शहर की जामा मस्जिद। इस मस्जिद की तामीर भी मुगल बादशाह मुअज्जम शाह ने ही करवाई थी। घंटाघर में बनी यह मस्जिद तकरीबन 300 वर्ष से ज्यादा पुरानी है और सबको अटै्रक्ट करती है।

1120 हिजरी में बनी थी यह मस्जिद

मुगलिया दौर में नदी के किनारे बनी यह मस्जिद 1120 हिजरी में मुगल बादशाह औरंगजेब के दूसरे बेटे मुअज्जम शाह ने तामीर कराई थी। इसकी तामीर सूबेदार खलीलुर्रहमान (जिनके नाम से खलीलाबाद बना है) की निगरानी में की गई। इस मस्जिद की खास बात यह है कि नदी के किनारे बनने की वजह से इसकी बुनियाद काफी चौड़ी बनाई गई थी जोकि घंटाघर के आगे तक फैली हुई है। इसकी वजह से सैकड़ों बरस बाद भी यह यूं ही खड़ी है।

जलजले में गिर गई थी मीनार

जामा मस्जिद में पहले दो बुलंद मीनारें और थीं, मगर 1934 में आए जलजले में एक मीनार गिर गई। इसके बाद जामा मस्जिद कमेटी के मेंबर्स ने मीटिंग की, जिसमें यह तय हुआ कि दूसरी मीनार भी काफी कमजोर हो चुकी है, इसे भी हटवा दिया जाए। जिसके बाद दूसरी मीनार को भी गिरी हुई मीनार के बराबर तोड़ दिया गया और दोनों मीनारें बराबर कर दी गई। मस्जिद की दीवारें 20-20 फिट चौड़ी होने की वजह से गिरी तो नहीं, लेकिन इसमें भी दरारें आ गई।

पांच हजार नमाजी अदा करते हैं नमाज

जामा मस्जिद में नमाजियों की बात करें तो इसमें काफी जगह है। आम दिनों में जहां जुमे की नमाज में 1500 से 2000 लोग नमाज अदा करते हैं, वहीं दूसरी ओर खास दिनों जैसे ईद, बकरीद, अलविदा में मस्जिद के अंदर, छतों पर और बाहर मिलाकर तकरीबन 5000 से ज्यादा लोग नमाज अदा करते हैं। इसमें एंट्री के लिए 3 दरवाजे बनाए गए हैं, मेन दरवाजा पूरब की ओर बना हुआ है। मस्जिद के इर्द-गिर्द 98 दुकान और मकान किराए पर हैं।

अब सेफ हैं दीवारें

जामा मस्जिद की नींव तो काफी चौड़ी और मजबूत है, लेकिन कुछ साल पहले इसकी दीवारें और मेहराब काफी कमजोर हो गई थीं। इसके लिए आगरा आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट के रिटायर्ड प्रो। वकार साहब ने जामा मस्जिद का मुआयना किया था, जिसके बाद इसकी तीनों मीनार कमजोर मिली, उसके बाद उसे काफी पैसे खर्च कर ठीक कराया गया। दो-तीन साल पहले मस्जिद की मेहराब और दीवारें भी कमजोर मिलीं, जिसके बाद इसका रिनोवेशन का काम दोबारा शुरु हुआ। इसमें एक दीवार में कम से कम 20-20 बोरी सिमेंट घोलकर डाले गए, तब जाकर इमारत सेफ हो सकी। वहीं चूने और मिट्टी को हटाकर सिमेंट और मोरंग से प्लास्टर किया गया।

Posted By: Inextlive